सार्वजनिक उपक्रमों (PSU) से जुड़े म्युचुअल फंडों (PSU Mutual Fund) ने पिछले एक साल में 42 फीसदी का औसत रिटर्न दिया है। इसमें से ज्यादातर (28.9 फीसदी) तेजी पिछले छह महीने में ही आई है।
इनका प्रदर्शन चमकदार बना रह सकता है मगर निवेशकों को ऐसी तेजी आने के बाद सतर्कता बरतनी ही चाहिए। पीएसयू फंडों में तेजी की कई वजह हैं।
निप्पॉन इंडिया म्युचुअल फंड में इक्विटी रिसर्च प्रमुख आशुतोष भार्गव का कहना है, ‘इनमें से कई शेयर बुनियादी ढांचे, बिजली और बैंकिंग जैसे चक्रीय क्षेत्रों के हैं, जिनमें अच्छी तेजी देखी जा रही है।’
शेयरों की अर्निंग बेहतर हुई है। बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता कमजोर होने की वजह से वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2020 के बीच पीएसयू के नतीजों में शुद्ध मुनाफा घटता रहा था। इन्वेस्को म्युचुअल फंड में फंड प्रबंधक धीमंत कोठारी कहते हैं, ‘बैंकों की बैलेंस शीट साफ हो गई और उनकी परिसंपत्तियों की गुणवत्ता सुधर गई तो वित्त वर्ष 2020 और वित्त वर्ष 2023 के बीच मुनाफे में भी 80 फीसदी सालाना चक्रवृद्धि हुई।’
गैर-वित्तीय पीएसयू का भी कायापलट हुआ है। कोठारी कहते हैं, ‘वित्त वर्ष 2015 और 2020 के बीच सालाना 1 फीसदी चक्रवृद्धि दर से घटने के बाद वित्त वर्ष 2020 और 2023 के बीच उनके शुद्ध मुनाफे में 21 फीसदी सालाना चक्रवृद्धि हुई।’
आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल असेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) में निवेश रणनीति के प्रमुख चिंतन हरिया कहते हैं कि 2011 और 2021 के बीच प्रदर्शन कमतर रहने से मूल्यांकन बहुत आकर्षक हो गए हैं।
कोविड के बाद अर्थव्यवस्था पटरी पर आना पीएसयू के लिए अच्छा रहा। कोठारी बताते हैं, ‘कमोडिटी की कीमतें ऊंची रहने से कमोडिटी केंद्रित पीएसयू को मदद मिली और भारीभरकम ऑर्डर मिलने से रक्षा तथा रेलवे पीएसयू को फायदा हुआ।’
हरिया के मुताबिक सरकार के पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी, रक्षा में स्वदेशीकरण, चीन के अतिरिक्त देश तलाशने की मुहिम और ऊर्जा क्षेत्र का अच्छा प्रदर्शन वे कारण हैं, जिन्होंने पीएसयू शेयरों को एक बार फिर सबकी नजरों में ला दिया है। कई पीएसयू के पास संसाधन हैं, उन्हें कई क्षेत्रों में सबसे पहले आने का फायदा मिला है और कई बाजारों पर उनका ही एकाधिकार है। फंड मैनेजरों का कहना है कि सरकार का दखल कम हुआ है।
कोठारी कहते हैं, ‘सरकार ने पीएसयू के लिए मुद्रीकरण यानी कमाई करने और आधुनिकीकरण की दोतरफा रणनीति अपनाई है। दोनों ही सूरत में शेयरधारकों को को समय के साथ फायदा मिलता जाता है।’
पीएसयू में विविधता होती है। प्लूटस कैपिटल के निवेश सलाहकार अंकुर कपूर कहते हैं, ‘कमोडिटी क्षेत्र के पीएसयू केवल तभी अच्छा करते हैं, जब कमोडिटी के भाव चढ़ रहे होते हैं।’
कमोडिटी का चक्र वैश्विक घटनाक्रम पर निर्भर करता है और उसमें उफान के समय का सही अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। शेयर का मूल्यांकन करते समय अहम पैमाना यह भी होता है कि पूंजी आवंटन या निवेश के लिए प्रबंधन कितने सही फैसले लेता है।
कपूर समझाते हैं, ‘संपत्ति आवंटनकर्ता के तौर पर सरकार के साथ साझेदारी करना आपके निवेश को बढ़ाने का सबसे कारगर तरीका नहीं होता। हालांकि सभी पीएसयू के प्रबंधन खराब नहीं होते मगर पूंजी संभालने के मामले में आम तौर पर निजी क्षेत्र को ज्यादा माहिर माना जाता है।’
देसी अर्थव्यवस्था एकदम धीमी पड़े तो पीएसयू शेयरों पर असर पड़ता है क्योंकि उनमें से ज्यादातर चक्रीय क्षेत्रों से होते हैं। राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता बदलने पर सरकारी नीतियों में बदलाव भी उन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
पीएसयू शेयरों में तेजी अर्निंग में बढ़ोतरी के कारण आई है और मूल्यांकन में खास फर्क नहीं पड़ा है।
कोठारी समझाते हैं, ‘इस समय पीएसयू सूचकांक का पिछले 12 महीनों का प्राइस-टु-अर्निंग्स (पीई) अनुपात 9.5 गुना है, जबकि सेंसेक्स का पीई अनुपात 22.2 गुना है। इसका मतलब सेंसेक्स के मुकाबले 58 फीसदी कमी है, जो 10 साल के औसत 50 फीसदी से अधिक है।’
वह कहते हैं कि पीएसयू शेयर इस समय अपने दीर्घावधि के औसत मूल्यांकन 10.9 गुना से भी नीचे चल रहे हैं। उन्हें लगता है कि पीएसयू शेयरों की अर्निंग्स अच्छी रफ्तार से बढ़ती रह सकती हैं और मूल्यांकन की दोबारा रेटिंग की जा सकती है। दूसरे विशेषज्ञ इतनी तेजी आने के बाद सतर्कता बरतने की सलाह देते हैं।
हरिया कहते हैं, ‘माना जा रहा है कि भारत में पूंजीगत खर्च मध्यम अवधि में बढ़ता रहेगा। मूल्यांकन सस्ता नहीं रहेगा। निवेशकों को सोचसमझकर फंड चुनने चाहिए।’
पीएसयू फंड समेत थीम आधारित फंडों में विविधता भरे इक्विटी फंडों के मुकाबले अधिक जोखिम होता है। जो ज्यादा जोखिम लेना चाहता है, वही इन्हें चुने। मगर इन्हें मुख्य निवेश पोर्टफोलियो में नहीं रखा जाना चाहिए। कुल निवेश का 5 फीसदी से ज्यादा हिस्सा इनमें नहीं लगाएं। इनमें किस्तों में निवेश बढ़ाएं और कम से कम सात साल के लिए रकम लगाएं।