आमतौर पर अक्षय ऊर्जा, खासकर सौर ऊर्जा किफायती कीमत पर ऊर्जा मुहैया कराने के लिहाज से एक ऐसे मुकाम पर पहुंच चुकी है जहां से एक और व्यापक बदलाव की गुंजाइश बनती है।
दूसरे तरीके से कहें तो जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल एवं गैस) की आपूर्ति में बाधा की आशंकाओं के कारण अक्षय ऊर्जा में मौजूदा दिलचस्पी तुलनात्मक रूप से शुरुआती रुझान हो सकती है। तर्क और आंकड़ों के बलबूते कोई भी इन दोनों मतों का समर्थन कर सकता है।
यूक्रेन-रूस युद्ध के साथ ही तेल एवं गैस की आपूर्ति में बाधाएं दिखनी शुरू हो गईं। इजरायल-हमास संघर्ष के कारण और अधिक बाधाओं की आशंकाएं दिख रही हैं।
आर्थिक जगत से जुड़े इतिहासकार वर्ष 1973 और 1979 के तेल संकट की याद दिला रहे हैं जब तेल निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) ने योम किप्पर युद्ध के बाद अपनी ताकत दिखाई थी और ईरानी क्रांति के कारण भू-राजनीतिक तनाव बढ़ गया था।
तेल एवं गैस की ऊंची कीमतों और अक्षय ऊर्जा में अधिक निवेश के बीच हमेशा से एक स्पष्ट संबंध रहा है। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि आपूर्ति में बाधा की आशंकाओं को देखते हुए पिछले दो वर्षों में अक्षय ऊर्जा में रिकॉर्ड निवेश हुआ है।
उदाहरण के तौर पर भारत ने जनवरी से जून 2023 के बीच कम से कम 2.6 गीगावॉट की नई अक्षय ऊर्जा क्षमताओं के सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं। कॉरपोरेट स्तर पर भी कई कंपनियां ताप बिजली के मुकाबले अक्षय ऊर्जा को ज्यादा तरजीह दे रही हैं।
भारत में विप्रो अपनी ऊर्जा जरूरतों का 75 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा से हासिल करना चाहती है। अन्य आईटी सेवा कंपनियां भी इसी राह पर हैं और वे भी भारतीय रेलवे, दूरसंचार नेटवर्क और हवाईअड्डों के जैसे ही इसी तरह के लक्ष्य लेकर चल रही हैं।
टाटा समूह अपने कई संयंत्रों में अक्षय ऊर्जा को शामिल करने पर विचार कर रहा है। इनमें से ज्यादातर अक्षय ऊर्जा टाटा पावर के संयंत्रों के जरिए ली जानी है। दक्षिण ऑस्ट्रेलिया और डेनमार्क जैसे देशों में ग्रिड 75-80 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा के माध्यम से चल रहे हैं।
मेटा, एमेजॉन, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी वैश्विक तकनीकी दिग्गज कंपनियां भी अक्षय ऊर्जा पर ध्यान दे रही हैं। वेदांत और हिंडाल्को जैसी कंपनियां भी ऐसा ही कर रही हैं।
नीतिगत आदेश के अलावा ऊर्जा मिश्रण के इस बदलाव में कीमत एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यही कारण है कि सौर ऊर्जा ने एक महत्त्वपूर्ण स्तर को छू लिया होगा। सौर ऊर्जा पहले से ही कई जगहों पर ऊर्जा का सबसे सस्ता रूप है और वर्ष 2027 तक यह कमोबेश हर जगह सबसे अधिक सस्ती होगी।
नेचर पत्रिका में एक नए शोध पत्र ‘दि मोमेंटम ऑफ दि सोलर एनर्जी ट्रांजिशन’ से संकेत मिलता है कि यह और सस्ती होने के साथ ही अधिक लोकप्रिय होती जाएगी। इन शोधकर्ताओं के कई मॉडल से संकेत मिलते हैं कि सौर ऊर्जा से वर्ष 2050 तक समूची वैश्विक बिजली का कम से कम 56 प्रतिशत हिस्सा तैयार होगा।
जीवाश्म ईंधन के जरिये फिलहाल 60 प्रतिशत से अधिक बिजली का उत्पादन होता है और तब तक इनका योगदान केवल 21 प्रतिशत तक रह जाएगा।
बाकी ऊर्जा अन्य स्रोतों (पवन, पनबिजली, हाइड्रोजन और परमाणु ऊर्जा सहित) से मिलेगी। खनन, विनिर्माण, सेवा और घरेलू उपयोग (उदाहरण के तौर पर खाना पकाने के लिए रसोई गैस की जगह बिजली का इस्तेमाल) के अलावा परिवहन क्षेत्र भी अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को अपनाएगा।
इंजन, टर्बाइन और जेट की जगह इलेक्ट्रिक इंजन और अन्य कई मामलों में फ्यूल सेल ले लेंगे। अन्य मामलों को की बात करें तो वायुमंडलीय कार्बन कैप्चर पर आधारित सिंथेटिक ईंधन पेट्रोल की जगह ले सकते हैं। हालांकि इसके लिए नीतिगत समर्थन की लगातार आवश्यकता होगी।
सस्ती ग्रीन हाइड्रोजन और सिंथेटिक पेट्रोल का उत्पादन करने के लिए तकनीक के विकास पर अच्छा–खासा शोध करना होगा। भंडारण समाधान, इलेक्ट्रोलाइट्स, औद्योगिक धातुओं के बेहतर चक्रण जैसे आपूर्ति श्रृंखला के महत्त्वपूर्ण तत्वों के विकास पर भी शोध एवं विकास (आरऐंडडी) पर ध्यान देना होगा।
उदाहरण के तौर पर अमेरिकी सरकार ने वर्ष 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन लागत का लक्ष्य 1 डॉलर प्रति किलोग्राम रखा है जिसकी लागत अलग-अलग जगहों पर 3 से 8 डॉलर प्रति किलोग्राम के बीच रह सकती है।
बदलाव को टिकाऊ और सार्थक तरीके से कार्बन में कमी लाने वाला बनाने के लिए कई नई प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के साथ ही उन्हें स्थिर बनाना होगा। उदाहरण के तौर पर विमान और जहाजों के लिए इलेक्ट्रिक प्रपल्शन को अभी एक लंबा रास्ता तय करना है।
लीथियम स्टोरेज बैटरी में अड़चन आ सकती है क्योंकि वैश्विक भंडार अनुमानित मांगों को पूरा नहीं कर सकते हैं। बाकी अन्य दुर्लभ धातुओँ की भी तंगी है। इसी वजह से सोडियम बैटरी या कुछ अन्य समाधानों पर काम किया जाना चाहिए।
हाइड्रोजन का भंडारण और परिवहन भी एक बड़ी चुनौती है जिसका हल फ्यूल सेल्स के व्यापक इस्तेमाल के लिए निकाला जाना चाहिए।
ऊर्जा उत्पादन के लिए सार्थक मात्रा में जैव ईंधन का संग्रह कठिन है। स्मार्ट ग्रिड को संतुलित करना भी बड़ा काम है जो मुख्य रूप से सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों का उपयोग करते हैं। इस बदलाव से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला भी बड़े पैमाने पर बदलेगी।
यह बदलाव निवेशकों के लिए कई जोखिम पेश करने के साथ ही मौके भी देता है। जाहिर है कि भारी राशि खर्च की जाएगी। ऐतिहासिक उदाहरणों पर नजर डालें तो बड़े पैमाने उतार-चढ़ाव दिख सकते हैं क्योंकि कोई भी यह नहीं जानता कि कैसे इन नए कारोबारों को महत्त्व दिया जाए। यह फाइनेंसरों के लिए अगला बड़ा मोर्चा साबित होगा।