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अमेरिकी सरकार ने H-1B वीज़ा पर हर आवेदन के लिए 1 लाख डॉलर (₹83 लाख) की वार्षिक फीस लगाने का फैसला किया है। इसके असर को लेकर IT उद्योग संगठन Nasscom ने चेतावनी दी है कि इससे भारत के तकनीकी पेशेवरों और IT कंपनियों के व्यवसाय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
Nasscom ने कहा कि यह नीति उन भारतीय नागरिकों को प्रभावित करेगी जो H-1B वीजा पर अमेरिका में कार्यरत हैं। साथ ही, भारतीय IT कंपनियों को भी अमेरिका में चल रहे प्रोजेक्ट्स की निरंतरता बनाए रखने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। कंपनियों को अपने ग्राहकों के साथ मिलकर बदलावों का प्रबंधन करना होगा।
H-1B वीजा प्रणाली का सबसे बड़ा लाभार्थी भारतीय रहे हैं। टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी कंपनियां भारतीय इंजीनियर्स को अमेरिका भेजती हैं, जहां वे काम करने के बाद ग्रीन कार्ड प्राप्त कर स्थायी रूप से बस सकते हैं। वर्तमान में कुल H-1B वीजा का 70% से अधिक हिस्सा भारतीयों को मिलता है।
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हालांकि, भारतीय IT कंपनियों ने वर्षों में इस वीज़ा पर अपनी निर्भरता कम कर दी है। उन्होंने अमेरिकी विश्वविद्यालयों और STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथमेटिक्स) योग्य पेशेवरों की भर्ती बढ़ाई है। लेकिन मांग अभी भी आपूर्ति से अधिक है, जो चुनौती बनी हुई है।
Nasscom ने चेताया कि नीति में एक दिन की तैयारी समय सीमा भी चिंता का विषय है, क्योंकि इससे वैश्विक व्यवसायों, पेशेवरों और छात्रों में अनिश्चितता पैदा होती है। संगठन ने कहा कि इस तरह के बड़े पैमाने पर नीति बदलाव के लिए पर्याप्त संक्रमण अवधि होनी चाहिए, ताकि कंपनियां और व्यक्ति प्रभावी योजना बना सकें।
पूर्व G20 शेरपा और नीति आयोग के पूर्व CEO अमिताभ कांत ने कहा कि यह निर्णय अमेरिका की नवाचार क्षमता को प्रभावित करेगा और भारत के लिए अवसर पैदा करेगा। उन्होंने लिखा कि “अमेरिका जब वैश्विक प्रतिभा के लिए दरवाजा बंद करता है, तो अगली लहर के लैब, पेटेंट, नवाचार और स्टार्टअप भारत के बंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और गुरुग्राम की ओर जाएगी। अमेरिका का नुकसान, भारत के लिए अवसर है।”