सिलिकन वैली (silicon valley) की कहानी आज के दौर के उद्यमियों को बहुत आकर्षित करती है। यह कहानी प्रतिभा, कल्पनाशीलता, सृजनात्मकता और लगन का प्रतीक है। साथ ही यह शहरों को अवसरों के केंद्र में बदलने का प्रतीक है।
यह एक आर्थिक विकास का खाका होने के साथ-साथ उद्यमशीलता के बढ़ने से पैदा होने वाली सामाजिक चुनौतियों को भी दर्शाता है। सैन फ्रांसिस्को के लिए, सिलिकन वैली नवाचार, तकनीक और मानव प्रगति में उत्कृष्टता हासिल करने का प्रतीक है।
हालांकि इसकी विडंबना तब सामने आती है जब वादे की इस सरजमीं पर बेघरों और गरीबी बढ़ने का मुद्दा बढ़ने लगता है। वर्ष 2024 के सिलिकन वैली इंडेक्स के मुताबिक सिलिकन वैली (केवल सैन मेटो और सैंटा क्लारा काउंटी) के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की हिस्सेदारी 12.1 प्रतिशत थी जबकि कैलिफोर्निया के कुल जीडीपी में सैन फ्रांसिस्को की हिस्सेदारी केवल 5.4 प्रतिशत थी।
हालांकि रिपोर्ट से सिलिकन वैली में आमदनी और संपत्ति की बढ़ती विषमता का अंदाजा मिलता है। शीर्ष 10 प्रतिशत परिवार 70 प्रतिशत सामूहिक संपत्ति पर अपना नियंत्रण रखते हैं जबकि औसत परिवारों की आय मुश्किल से महंगाई के साथ तालमेल बिठा पाती है।
सिलिकन वैली और अमेरिका तथा बाकी दुनिया पर इसके प्रभाव को लेकर सुर्खियां बनी रहती हैं। लेकिन अक्सर इस बात की अनदेखी की जाती है कि इस तरह की घटना का किसी क्षेत्र की व्यापक शहरी गतिशीलता पर क्या प्रभाव पड़ता है।
आर्थिक उत्पादकता से परे, संस्कृति में हो रहे बदलाव को समझना, नौकरियों की प्रकृति, श्रम-बल भागीदारी दर, जीने से जुड़ी सुगमता और नगरपालिका के कामकाज के दबाव को समझना महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण के तौर पर वर्ष 2021 में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक शीर्षक थी, ‘वे बे एरिया को जल्द नहीं छोड़ सकते’।
इसमें क्षेत्र के कई तकनीकी स्टार्टअप और इनके कामगारों के स्थानांतरण के बारे में बात की गई थी। इसके लिए जिन वजहों पर जोर दिया गया था उनमें किराये की अत्यधिक दर भी शामिल थी जिसके चलते कामगारों के लिए जीने की बढ़ती लागत का संकट पैदा हो गया था।
साथ ही गूगल और मेटा जैसी अमीर और स्थापित दिग्गज कंपनियों के ऊंचे और आलीशान दफ्तरों और बेघरों के लिए बड़ी संख्या में लगाए जा रहे टेंटों के बीच अंतर स्पष्ट था। एक ही जगह पर इस तरह की उत्कृष्टता, भव्यता और भयंकर अभाव निश्चित रूप से इस बात की तहकीकात के लिए प्रेरित करता है कि स्टार्टअप शहरी संकट का हल निकालने के लिए किस तरह के समाधान की पेशकश कर सकते हैं।
सिलिकन वैली में बेघरों की संख्या बढ़ने का एक मुख्य कारण जीवनयापन की अत्यधिक लागत है। मकान की आसमान छूती कीमतें, अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गई हैं जिससे निम्न स्तर की आमदनी वाले व्यक्तियों और परिवारों के लिए रहने की पर्याप्त जगह लेने का खर्च उठाना मुश्किल होता जा रहा है।
जैसे-जैसे तकनीकी कंपनियां अपना विस्तार करती हैं और प्रतिभाओं को अपने यहां काम करने के लिए आकर्षित करती हैं वैसे ही आवास की मांग बढ़ती जाती है जिसके चलते पहले से ही खराब हो रही स्थिति और विकट हो जाती है।
इसका नतीजा यह है कि बेघर लोगों की आबादी बढ़ रही है जो इस क्षेत्र में आवास संकट के बीच भी स्थायी आवास खोजने के लिए संघर्ष करती है।
सिलिकन वैली में रोजगार की प्रकृति भी इस तरह के हालात बनने के लिए जिम्मेदार है। तकनीकी कंपनियां कुशल श्रमिकों को ज्यादा भुगतान वाली नौकरियां देती हैं लेकिन ये ठेके वाले श्रमिकों और गिग-इकॉनमी श्रमिकों पर भी बहुत अधिक निर्भर होती हैं जिनके पास नौकरी की सुरक्षा और अन्य लाभ नहीं होते हैं।
इनमें से कई श्रमिक मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते हैं और अनिश्चित जीवन वाली परिस्थितियों के साथ-साथ वित्तीय अस्थिरता का सामना करते हैं। किफायती आवास और पर्याप्त समर्थन वाली प्रणाली न होने के चलते उनके बेघर होने का खतरा बढ़ जाता है।
सिलिकन वैली की बेघर आबादी में भी विविधता है और इसमें विभिन्न पृष्ठभूमि और परिस्थितियों वाले लोग शामिल हैं। यहां लंबे समय से रहने वाले निवासियों को इस क्षेत्र में समृद्ध लोगों की बढ़ती आबादी और बढ़ते किराये के कारण बेघर होना पड़ा है।
यहां हाल में आए लोगों का आकर्षण इस क्षेत्र में मिलने वाले विशेष अवसरों की उम्मीद के कारण हुआ है लेकिन उन्हें सड़कों पर या अस्थायी आश्रयों में अपना गुजारा करना पड़ रहा है। उनका ताल्लुक चाहे कहीं का भी हो लेकिन वे एक ऐसे क्षेत्र में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक-समान संघर्ष साझा करते हैं जो समाज में हाशिये पर रहने वालों के लिए तेजी से आक्रामक हो गया है।
हालांकि सिलिकन वैली की कहानी बेहद जानी-पहचानी है और यह सिर्फ इसी तकनीकी केंद्र की कहानी नहीं है। अपने देश में, बेंगलूरु जैसे शहर को ही देखें जिसे अक्सर भारत की सिलिकन वैली कहा जाता है तो यहां जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाले संसाधनों की कमी, विशेष रूप से पानी जैसी आवश्यक चीज के संकट के चलते जीवन जीने की बढ़ती लागत का संकट बढ़ रहा है।
इसका अर्थ स्टार्टअप की छवि खराब करना नहीं है बल्कि उनके उभार के साथ बढ़ती शहरी असमानता को दर्शाना है। इन समूहों का विस्तार शहरी विकास और समृद्धि का वादा करता है ऐसे में यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि हमारे शहर किफायती हों और ये किफायती चीजों की बढ़ती मांगों की पूर्ति करने में सक्षम हो सकें।
इसके लिए स्थान और घनत्व पर विचार करते हुए शहरी नियोजन के मामले टिकाऊ प्रक्रिया पर जोर देने की बात अहम है साथ ही इन शहरों में काम करने वाली कंपनियों द्वारा दिए गए विकल्प के भी टिकाऊ होने आवश्यकता है।
इस परिदृश्य में, शहरी नियोजन शहरों के भीतर स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्थान विशेष संगठन, बुनियादी ढांचे का प्रावधान और नियामकीय ढांचा उद्यमशीलता गतिविधि के फलने-फूलने के लिए मंच तैयार करता है।
हालांकि, मौजूदा शहरी नियोजन प्रतिमान अक्सर स्टार्टअप वृद्धि की गतिशील प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने के लिए जूझता है जिससे अपर्याप्त बुनियादी ढांचे से लेकर अचल संपत्ति की ऊंची कीमतों तक के कई मुद्दे सामने आते हैं।
स्टार्टअप के उभार से पैदा हुई महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक शहरी संसाधनों पर उनका बढ़ता दबाव है। जैसे-जैसे ये कंपनियां विस्तार करती हैं, वे बड़ी मात्रा में पानी, बिजली और अन्य चीजों का उपभोग करती हैं जिसके चलते मौजूदा संसाधनों में कमी बढ़ती है।
इससे शहरी बुनियादी ढांचे पर दबाव पड़ता है, जिससे सेवा में बाधा आने के साथ ही पर्यावरण क्षरण और जलवायु संबंधी आपदाओं के चलते असुरक्षा बढ़ जाती है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, शहरी योजनाकारों को शहरी विकास में टिकाऊपन के सिद्धांतों को एकीकृत करने वाला एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
इसमें मिश्रित उपयोग वाले विकास को बढ़ावा देना, सार्वजनिक परिवहन और स्वच्छ ऊर्जा वाले बुनियादी ढांचे में निवेश करना और ऐसे नियमन लागू करना शामिल है जो स्टार्टअप और अन्य कारोबारों के बीच टिकाऊपन वाले रुझान को प्रोत्साहित करते हैं। इसके अलावा, स्टार्टअप और शहरी नियोजकों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने से शहरों से जुड़ी चुनौतियों के लिए नए तरह के समाधान मिल सकते हैं।
प्रौद्योगिकी और डेटा-संचालित तरीकों का लाभ उठाकर स्टार्टअप, शहरों को आवंटित किए जाने वाले संसाधन को अनुकूलित करने, सेवा वितरण में सुधार करने और निवासियों के जीवन की समग्र गुणवत्ता बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं। वहीं इसके बदले में, शहरी योजनाकार स्टार्टअप को उनकी सफलता के लिए आवश्यक नियामकीय निश्चितता, बुनियादी ढांचा समर्थन और बाजारों तक पहुंच के जरिये मदद दे सकते हैं।
(कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कंपीटीटिवनेस, इंडिया के चेयर एवं स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में व्याख्याता और देवरॉय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन हैं। साथ में जेसिका दुग्गल)