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लेखक : अमित कपूर

आज का अखबार, लेख

पलायन समस्या नहीं शहरी विकास का आधार, इसे दूर नहीं किया जाना चाहिए

दशकों से भारतीय शहर अवसरों के प्रमुख केंद्र रहे हैं, जो सामाजिक गतिशीलता के माध्यम से उम्मीद जगाते हैं। लाखों प्रवासी, ग्रामीण इलाकों से शहरी क्षेत्रों में चले गए हैं। मुंबई की कपड़ा मिलों से लेकर बेंगलूरु के प्रौद्योगिकी केंद्रों तक दरअसल ये प्रवासी एक ऐसी छिपी हुई ताकत हैं जो भारत के शहरी क्षेत्रों […]

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क्या Agglomeration logic अब भी है कारगर? शहरी विकास की बदलनी होगी रणनीति

शहरी अर्थव्यवस्थाओं में सामूहिकता बहुत मायने रखती है।  जब कंपनियां, कर्मचारी और योजनाकार सब एक जगह होते हैं, तो वे साझा बुनियादी ढांचे, संयुक्त श्रम और नवाचार का लाभ उठाते हैं। अल्फ्रेड मार्शल से लेकर एडवर्ड ग्लेसर तक तमाम अर्थशास्त्रियों ने एक ही जगह उपलब्ध सभी सुविधाओं वाले ऐसे केंद्रों की सराहना करते हुए इन्हें […]

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छोटे शहरों की ओर बढ़ते नियोक्ता, लेकिन ढीली गवर्नेंस कर सकती है असर कम

भारत में अवसरों का भूगोल धीरे-धीरे बदल रहा है। देश के मझोले शहर, भारत की शहरी और आर्थिक विस्तार की अगली लहर के केंद्र बिंदु के रूप में तेजी से उभर रहे हैं। कई दशकों तक, देश की आर्थिक विकास गाथा को बड़े शहरों ने एक स्वरूप दिया है और उसे प्रतीकात्मक तौर पर दर्शाया […]

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शहरों के विकास में नीली अर्थव्यवस्था का महत्त्व

एक लंबे अरसे से शहरों में जल को प्राकृतिक दृश्य या कारखानों एवं नालों से बहने वाले पानी के रूपों में देखा गया है। जल को एक रणनीति के रूप में तवज्जो नहीं दी गई है। मगर नीली अर्थव्यवस्था (ब्लू इकॉनमी) की अवधारणा में ये तीनों पहलू शामिल किए गए हैं। यह एक आशावादी सोच […]

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शहरों के विकास में नागरिकों की भागीदारी अहम

अगर आप शहर में रहते हैं तो किसी कोने में जमा कूड़े के ढेर, सड़कों पर इधर से उधर उड़ती प्लास्टिक थैलियों और सार्वजनिक नलों से टपकते पानी से जरूर रूबरू हुए होंगे। शहर की आपा-धापी की जिंदगी में हम यह सोच कर इनकी अनदेखी कर जाते हैं कि किसी न किसी का ध्यान तो […]

आज का अखबार, लेख

भारत में भी ‘15-मिनट सिटी’ की जरूरत

दुनिया भर में ’15 मिनट सिटी’ बनाने की कोशिश हो रही है, जहां शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने में केवल 15 मिनट लगें। लेकिन भारतीय महानगरों में एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक पहुंचना जंग जीतने से कम नहीं है, जिसमें 2 घंटे या उससे भी ज्यादा लग जाते हैं। हम […]

आज का अखबार, लेख

शहरीकरण के सबक सिखा रही कुंभ नगरी

संगम के तट पर बसी कुंभ नगरी किसी दिव्य मरीचिका की तरह है। प्रयागराज में सब कुछ अपने भीतर समाए यह बड़ी सी नगरी मानो अचानक प्रकट हो गई और कुछ ही दिनों में एकाएक विलीन हो जाएगी। कुछ लोग इसे क्षणिक शहरीकरण का नाम भी दे सकते हैं। कुंभ नगरी में ऐसा महानगर नजर […]

आज का अखबार, लेख

शहरों में भूजल की गुणवत्ता बनाए रखना जरूरी

पानी कभी ठहरता नहीं.. रूप बदलता रहता है। बर्फ पिघलने से पानी बनता है, जो भाप बनकर उड़ जाता है और भाप इकट्ठी होकर एक बार फिर पानी की बूंदों में तब्दील हो जाती है। यह धरती पर तो रहता है मगर कभी एक रूप में ही नहीं रहता। प्रकृति के चक्र को देखें तो […]

आज का अखबार, लेख

आत्मनिर्भर बनें शहरी स्थानीय निकाय

नगर निकायों के वित्त पर भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट बताती है कि 50 फीसदी से ज्यादा नगर निगम अपने बल पर आधे से भी कम राजस्व अर्जित कर पाते हैं और 2022-23 में सरकार से उन्हें मिलने वाली रकम 20 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ गई। नगर निकायों को अधिक प्रशासनिक स्वायत्ता तथा […]

आज का अखबार, लेख

शहरों को तैयार करने की दूरदर्शी योजना बने

शहर सिर्फ इमारतों का एक समूह नहीं है। शहर वास्तव में सामाजिक व्यवस्थाओं, सेवाओं, इमारतों के साथ-साथ बुनियादी ढांचे का गतिशील नेटवर्क होता है। शहर विभिन्न स्वरूपों और काम वाली जगह होती है जो लोगों को विविध अवसर मुहैया कराती है। इससे शहरीकरण की रफ्तार बढ़ती है और कई तरह की चुनौतियां सामने आती हैं […]

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