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BS Special: जानिए, देश की आधी से ज्यादा चाय उगानेवालों की कहानी, आंकड़ों की जुबानी

वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को लिखे एक पत्र में, CISTA ने चाय उत्पादकों के लिए MSP की तर्ज पर मूल्य सुरक्षा योजना लागू करने का सुझाव दिया है। 

Last Updated- July 10, 2025 | 5:06 PM IST
TEA Garden plantation in India
चाय बागान/ ITA

देश के कुल चाय उत्पादन में 52% से अधिक योगदान देने वाले छोटे चाय उत्पादकों (Small Tea Growers – STGs) ने केंद्र सरकार से एक न्यायसंगत और पारदर्शी मूल्य निर्धारण प्रणाली स्थापित करने की मांग की है, जिससे वे कारखानों को हरी पत्तियों की बिक्री के माध्यम से उचित मूल्य प्राप्त कर सकें।

कॉमर्स मंत्री पीयूष गोयल को लिखे एक पत्र में, कॉनफेडरेशन ऑफ इंडियन स्मॉल टी ग्रोवर्स एसोसिएशन (CISTA) ने चाय उत्पादकों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की तर्ज पर मूल्य सुरक्षा योजना लागू करने का सुझाव दिया है। CISTA ने कहा कि टी बोर्ड को एक विस्तृत अध्ययन करना चाहिए, जिससे यह तय किया जा सके कि छोटे उत्पादकों और फैक्ट्रियों के बीच लाभ का न्यायसंगत बंटवारा कैसे हो।

पढ़िए, कॉनफेडरेशन ऑफ इंडियन स्मॉल टी ग्रोवर्स एसोसिएशन (CISTA) की व्यथा

CISTA के अध्यक्ष बिजॉय गोपाल चक्रवर्ती ने कहा कि छोटे चाय उत्पादक लगातार कम मूल्य प्राप्ति की समस्या से जूझ रहे हैं, जो इस क्षेत्र की दीर्घकालिक स्थिरता को खतरे में डाल रहा है। उन्होंने कहा कि छोटे उत्पादक देश के कुल चाय उत्पादन में 52% से अधिक का योगदान करते हैं और उनके लिए एक उचित मूल्य निर्धारण तंत्र की पहचान करना आवश्यक है, ताकि उनकी आजीविका सुरक्षित रह सके। CISTA ने मई 2023 में वाणिज्य मंत्रालय को इस मुद्दे पर एक विस्तृत स्थिति पत्र (status paper) भी सौंपा था, जिसमें संरचनात्मक बाधाओं और मूल्य प्राप्ति में लगातार आ रही कठिनाइयों को उजागर किया गया था।

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चक्रवर्ती ने यह भी कहा कि “न्यूनतम बेंचमार्क मूल्य” की अवधारणा को समाप्त कर, एक नई प्रणाली लागू की जानी चाहिए, जो कुल बिक्री मूल्य से जुड़ी हो, जिससे उत्पादकों को उचित और लाभकारी मूल्य मिल सके। CISTA ने श्रीलंकाई मॉडल को अपनाने की वकालत की, जिसमें नीलामी औसत मूल्य से अधिक कमाई को कारखानों और उत्पादकों के बीच समान रूप से साझा किया जाता है।

मूल्य सुरक्षा योजना का प्रस्ताव रखते हुए CISTA ने कहा कि वर्तमान में हरी चाय पत्तियों का औसत मूल्य ₹22 से ₹25 प्रति किलो के बीच है, जबकि उत्पादन लागत ₹17 से ₹20 प्रति किलो के बीच बनी हुई है। ऐसे में उत्पादकों को मुश्किल से ₹5 प्रति किलो का मामूली लाभ प्राप्त होता है। वहीं दूसरी ओर, एजेंट आमतौर पर ₹2 प्रति किलो का कमीशन लेते हैं, जिससे उत्पादकों को और नुकसान होता है। CISTA का कहना है कि यह एक बड़ा अवरोधक है और उत्पादकों को सीधे कारखानों को बिक्री की अनुमति मिलनी चाहिए।

भारत की आधी से ज्यादा चाय उगाते है Small Tea Growers – STGs

भारत, जो विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश है, अपनी कुल चाय उत्पादन का 52% से अधिक योगदान लघु चाय उत्पादकों (Small Tea Growers – STGs) से प्राप्त करता है। ये 2.3 लाख से अधिक छोटे किसान सीमित भूमि पर चाय की खेती करते हैं, लेकिन उनके आर्थिक हालात चिंताजनक हैं। उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल रहा, जिससे उनका जीवन यापन मुश्किल हो रहा है। भारतीय चाय बोर्ड और कॉनफेडरेशन ऑफ इंडियन स्मॉल टी ग्रोवर्स एसोसिएशन्स (CISTA) की रिपोर्टें इस क्षेत्र की संरचनात्मक और आर्थिक समस्याओं को उजागर करती हैं।

राष्ट्रीय परिदृश्य: उत्पादन अधिक, स्थिरता नहीं

31 मार्च 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार:

  • भारत में कुल चाय क्षेत्र: 6,19,773.70 हेक्टेयर
  • संगठित क्षेत्र (बड़े बागान): 4,21,460.70 हेक्टेयर (1567 बागान)
  • लघु उत्पादक (STG): 1,98,313 हेक्टेयर (2,29,526 किसान)

यह स्पष्ट करता है कि STGs केवल 32% भूमि पर खेती करते हैं लेकिन उत्पादन में 52% से अधिक का योगदान करते हैं — जिससे उनकी उत्पादकता संगठित क्षेत्र से अधिक है।

मुख्य राज्य जहाँ STG सक्रिय हैं:

  • असम: 1,22,415 STGs (1,14,848 हेक्टेयर)
  • पश्चिम बंगाल: 36,559 STGs (24,212 हेक्टेयर)
  • तमिलनाडु: 46,481 STGs (34,409 हेक्टेयर) 
  • केरल: 7,923 STGs (5,344 हेक्टेयर) 

 लाभ का संकट: लागत बनाम मूल्य

CISTA के अनुसार:

  • औसत हरा पत्ता मूल्य: ₹22–₹25 प्रति किलोग्राम 
  • उत्पादन लागत: ₹17–₹20 प्रति किलोग्राम 
  • मुनाफा: केवल ₹5 प्रति किलोग्राम 
  • एजेंट का कमीशन: ₹2 प्रति किलोग्राम (मुनाफे में कटौती) 

यह लाभ बेहद सीमित है और यह भी तब जबकि किसान मौसम, कीट, श्रमिक लागत और महंगाई जैसी समस्याओं से जूझते हैं।

मूल्य निर्धारण तंत्र की आवश्यकता

CISTA ने एक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी मूल्य सुरक्षा योजना की मांग की है। उनके प्रमुख सुझाव:

  • एक पारदर्शी मूल्य निर्धारण तंत्र स्थापित किया जाए 
  • न्यूनतम बेंचमार्क मूल्य को समाप्त कर बिक्री मूल्य आधारित फार्मूला लागू हो 
  • फैक्टरी और उत्पादक में लाभ का समान वितरण (श्रीलंका मॉडल) 
  • उत्पादकों को बिचौलियों के बिना फैक्टरी को सीधे बिक्री की अनुमति दी जाए 

वैश्विक परिप्रेक्ष्य: भारत पीछे क्यों?

देश उत्पादन (2022 – मिलियन किग्रा) निर्यात (2022 – मिलियन किग्रा)
चीन 3,090.00 375.23
भारत 1,365.23 226.98
केन्या 530.00 456.00
श्रीलंका 251.50 247.15

भारत उत्पादन में दूसरे स्थान पर, लेकिन निर्यात में चौथे स्थान पर है। इससे पता चलता है कि ब्रांडिंग और वैल्यू एडिशन में भारत पिछड़ रहा है।

भारत का औसत नीलामी मूल्य (2022) था $2.28/किग्रा, जबकि श्रीलंका का $3.86/किग्रा था।

क्षेत्रीय ध्यान: उत्तर बंगाल और बिहार

तराई, डुआर्स (प. बंगाल) और किशनगंज (बिहार) जैसे क्षेत्र तेजी से उभरते हुए STG केंद्र बन रहे हैं:

क्षेत्र STGs चाय क्षेत्र (हेक्टेयर)
उत्तर बंगाल 36,559 24,212.41
बिहार (किशनगंज) 2,813 2,521.78

इन क्षेत्रों में संभावना तो है, लेकिन साथ में बाजार की पहुंच की कमी, फैक्टरी का एकाधिकार, और तकनीकी सहायता का अभाव भी प्रमुख समस्याएं हैं।

वैश्विक आपूर्ति-खपत रुझान

वर्ष उत्पादन (M.kg) खपत (M.kg) अधिशेष
2018 5,966 5,681 +285
2022 6,423 6,098 +325

हालांकि आपूर्ति लगातार खपत से अधिक रही है, लेकिन यह अधिशेष भारतीय उत्पादकों को बेहतर मूल्य दिलाने में विफल रहा है।

आगे क्या किया जाए?

नीतिगत हस्तक्षेप:

  • मूल्य साझा करने के लिए नियमन हो
  • मूल्य निर्धारण में नीलामी औसत और अधिशेष लाभ शामिल हो 

बाजार पहुंच:

  • सहकारी विपणन मंच बनाए जाएं 
  • प्रत्यक्ष बिक्री समझौते को बढ़ावा दें

निर्यात को बढ़ावा:

  • GI टैगिंग, ब्रांडिंग के माध्यम से भारतीय चाय को बढ़ावा
  • ऑर्गेनिक और वैल्यू-एडेड चाय निर्यात को प्रोत्साहन

आधुनिकीकरण:

  • सस्ती दरों पर ऋण सुविधा
  • गुणवत्ता और टिकाऊ खेती में प्रशिक्षण

यदि भारत को चाय क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व बनाए रखना है, तो उसे अपने लघु चाय उत्पादकों को न्यायसंगत मूल्य, संस्थागत सहायता और बाजार पहुंच देनी होगी। नहीं तो, यह क्षेत्र अपनी समृद्ध विरासत के बावजूद धीरे-धीरे क्षीण हो सकता है।

CISTA अध्यक्ष बिजॉय गोपाल चक्रवर्ती का कहना है: “यह केवल चाय की बात नहीं है, यह जीवन, न्याय और भारतीय कृषि के भविष्य की बात है।”

केंद्र सरकार के नियंत्रण में आता है चाय उद्योग

चाय उद्योग देश के उन चुनिंदा क्षेत्रों में से एक है, जो संसद द्वारा पारित अधिनियम के तहत प्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार के नियंत्रण में आता है। वर्तमान में कार्यरत टी बोर्ड की स्थापना 1 अप्रैल 1954 को टी अधिनियम, 1953 की धारा 4 के अंतर्गत की गई थी। यह बोर्ड भारतीय चाय उद्योग के विकास, विनियमन और प्रचार के लिए एक केंद्रीय निकाय के रूप में कार्य करता है।

टी बोर्ड इंडिया (Tea Board India) की स्थापना की पृष्ठभूमि वर्ष 1903 से जुड़ी है, जब ‘इंडियन टी सेस बिल’ पारित किया गया था। इस विधेयक के माध्यम से चाय निर्यात पर एक सेस (कर) लगाने का प्रावधान किया गया, जिससे प्राप्त राशि का उपयोग देश और विदेश में भारतीय चाय के प्रचार-प्रसार के लिए किया जाना था।

भारत का चाय क्षेत्र: उत्पादन, आयात, निर्यात, खपत और नीलामी मूल्य (1998–2024)

वर्ष उत्पादन (मिलियन किग्रा) आयात (मिलियन किग्रा) निर्यात (मिलियन किग्रा) घरेलू खपत (मिलियन किग्रा) नीलामी मूल्य (₹/किग्रा)
1998 874 9 210 650 76.73
2015 1209 19 229 1012 128.60
2016 1267 21 223 1035 135.93
2017 1322 21 252 1059 134.81
2018 1339 25 256 1084 140.30
2019 1390 16 252 1109 142.15
2020 1258 24 210 1134 190.96
2021 1343 27 197 1161 174.84
2022 1366 30 231 1188 180.92
2023 1394 24 232 1215 169.02
2024 1285 44 255 1243 198.73

विश्व स्तर पर चाय क्षेत्र के आँकड़े: उत्पादन, आयात, निर्यात और खपत (1998–2024)

वर्ष उत्पादन (मिलियन किग्रा) आयात (मिलियन किग्रा) निर्यात (मिलियन किग्रा) वैश्विक खपत (मिलियन किग्रा)
1998 2987 1236 1303 2920
2015 5306 1719 1798 5053
2016 5595 1729 1802 2047 (संभावित त्रुटि)
2017 5719 1725 1800 5493
2018 5967 1741 1864 5683
2019 6162 1790 1907 5895
2020 6287 1759 1849 5944
2021 6449 1775 1918 6173
2022 6486 1763 1818 6233
2023 6727 1681 1847 6351
2024 7053 1746 1944 6635

क्या है भारतीय चाय का इतिहास

अंग्रेजों द्वारा भारत में चाय की खोज और खेती से जुड़ा हुआ है। 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने चीन से मंगवाए बीजों को भूटान में बोने के लिए भेजा, लेकिन यह प्रयास सफल नहीं रहा। 1780 में रॉबर्ट किड ने चीन से आए बीजों के साथ भारत में चाय की खेती का प्रयोग किया। इसके कुछ दशक बाद रॉबर्ट ब्रूस ने असम के ब्रह्मपुत्र घाटी में चाय के पौधों को स्वाभाविक रूप से उगते हुए पाया। 1838 में असम से बनी पहली भारतीय चाय इंग्लैंड भेजी गई, जहाँ उसकी सार्वजनिक बिक्री हुई। चीनी पौधे असम की गर्मी में टिक नहीं पाए जबकि स्थानीय पौधों ने बेहतर परिणाम दिए, जिसके बाद इन्हीं से आगे की खेती शुरू हुई। लंदन में ‘असम कंपनी’ और कोलकाता में ‘बंगाल टी एसोसिएशन’ की स्थापना ने चाय उद्योग को संगठित रूप दिया। बाद में दार्जिलिंग, कुमाऊं, देहरादून, कांगड़ा और कुल्लू जैसे क्षेत्रों में भी चाय की खेती शुरू हुई। 1881 में इंडियन टी एसोसिएशन और 1895 में दक्षिण भारत के लिए UPASI की स्थापना हुई। 1853 में जहाँ भारत ने केवल 183.4 टन चाय निर्यात की थी, वहीं 1885 तक यह मात्रा बढ़कर 35,274 टन हो गई। आज भारत विश्व के सबसे बड़े चाय उत्पादक देशों में से एक है, जिसमें लगभग 13,000 चाय बागान और 20 लाख से अधिक लोग कार्यरत हैं।
(with CISTA, Tea Board (Govt of India), Ministry of Commerce, ITA, agency inputs) 
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https://hindi.business-standard.com/commodities/bs-special-experts-says-that-mustard-can-bring-special-attention-to-crops-self-sufficiency-in-domestic-edible-oil-production-id-454572

First Published - July 10, 2025 | 4:54 PM IST

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