वर्षों के चिंतन-मनन और विवादों के बाद अंतत: भारत सरकार अपने आंतरिक संवाद के लिए एक नहीं, बल्कि दो मेसेजिंग प्लेटफॉर्म का परीक्षण कर रही है। ‘संदेश’ और ‘संवाद’ वे दो ऐप हैं जिन्हें सरकार के दो अलग-अलग विभागों द्वारा निर्मित किया गया है और अंतिम रूप से शुरुआत की जाने से पहले फिलहाल इनकी जांच की जा रही है।
इस संबंध में जानकारी रखने वाले लोगों के अनुसार इसके पीछे यह योजना है कि सरकारी उपयोग के लिए तत्काल संदेश भेजने वाली एक सुरक्षित प्रणाली हो और किसी बाहरी प्रणाली पर निर्भर न रहना पड़े, विशेष रूप से व्हाट्सऐप, सिग्नल आदि जैसी विदेशी स्वामित्व वाली ऐप पर।
संदेश का विकास इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत सरकार की प्रौद्योगिकी अवसंरचना शाखा- राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केंद्र द्वारा किया जा रहा है। संदेश ऐपल ऐप स्टोर में तो डाउनलोड के लिए उपलब्ध है, लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि कुछ दिनों तक गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध रहने के बाद इसे वहां से हटा दिया गया है। दूसरी ओर संवाद अभी सर्वसाधारण के लिए उपलब्ध नहीं है और इसे संचार मंत्रालय के तहत सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स द्वारा विकसित किया जा रहा है। इन ऐप की योजनाओं से अवगत एक सूत्र ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों के लिए सुरक्षित संवाद के इंतजाम की योजना है। फिलहाल इन दोनों ऐप का परीक्षण किया जा रहा है, लेकिन अब तक कोई ठोस योजना नहीं है। इनमें से एक को हम जनता के लिए और दूसरी को आधिकारिक उपयोग के लिए शुरू कर सकते हैं या फिर दोनों ही को अधिकारियों द्वारा उपयोग के लिए रख सकते हैं, लेकिन ये केवल संभावनाएं ही हैं।
संदेश किसी समूह या सरकारी टीमों तक पहुंच में एन्क्रिप्टेड संदेशों और बातचीत की सुविधा प्रदान करती है। एक बार जब आप इस ऐप को डाउनलोड कर लेते हैं, तो यह आपको बता देती है कि आप सत्यापित सरकारी सहयोगियों और अधिकारियों से सुरक्षित रूप से जुड़ सकते हैं, एन्क्रिप्टेड संदेशों को स्वत: डिलीट कर सकते हैं और उन्हें गोपनीय रूप से चिह्नित कर सकते हैं। डेटा को सर्वाधिक सुरक्षा प्रोटोकॉल द्वारा संरक्षित रखा जाता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष केएन गोविंदाचार्य मामले, जिसके बाद सरकारी अधिकारियों के लिए सोशल मीडिया नीति अधिसूचित की गई थी, में दलील पेश करने वाले वकील विराग गुप्ता ने कहा कि सार्वजनिक रिकॉर्ड अधिनियम और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सरकारी अधिकारियों के लिए एक सुरक्षित डिजिटल नेटवर्क उपलब्ध करना आवश्यक है। निजी उपयोगकर्ताओं के लिए कोई ऐप निर्मित और शुरू करना एक ऐसा पहलू है, जिसके लिए इसकी व्यावसायिक व्यावहारिकता के वास्ते जांचने की जरूरत होती है। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा सरकारी संगठनों के लिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल की खातिर तैयार की गई रूपरेखा और दिशानिर्देशों में कहा गया है कि सरकारी एजेंसियां मौजूदा बाहरी प्लेटफार्मों का उपयोग करते हुए या अपने स्वयं के संचार प्लेटफार्मों का निर्माण करके सोशल मीडिया से जुड़ सकती हैं।
संदेश का इंतजार
जहां एक ओर ये समस्याएं हैं, जो वक्त के साथ और अधिक साफ हो जाएंगी, वहीं दूसरी ओर संदेश के परीक्षण संस्करण में कुछ दिलचस्प खूबियां हैं जिनका बिज़नेस स्टैंडर्ड ने अवलोकन किया है।
एक दिलचस्प बात उस चीज का इस्तेमाल है, जिसे ऐप डेवलपर गीमोजी या सरकारी इमोजी कहते हैं। इस तरह मुस्कान, हंसी, रोना या इमोजी के सामान्य रूप (जिसका प्रयोग चैट में भी किया जा सकता है) के बजाय इस ऐप में स्वीकृत, आज जारी, पुन: जांच, स्पष्टीकरण आवश्यक, प्रेस नोट जारी करें आदि जैसी इमोजी हैं। संदेशों को गोपनीय, प्राथमिकता या ऑटो डिलीट के रूप में टैग किया जा सकता है। व्हाट्सऐप के विपरीत यह ऐप प्रयोग करने वाले हर व्यक्ति को नहीं दिखाता, बल्कि संदेश पर उपलब्ध सरकारी कर्मचारियों को ही दिखाता है। यह अन्य मेसेजिंग ऐप सिग्नल से काफी मिलती-जुलती है और ऐप पर समूहों से जुडऩे और फीडबैक देने का भी विकल्प है।
ई-मेल या मोबाइल नंबर के जरिये लॉगइन किया जा सकता है और एक वन-टाइम पासवर्ड भेजा जाता है, उपयोगकर्ता चाहे जिस भी तरह से इसमें एंटर करे। पिछले कम से कम कुछेक सालों से व्हाट्सऐप, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच संवाद के लिए अधिक व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है, को लेकर आशंकाएं रही हैं।