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विमान हादसा: ब्लैक बॉक्स की तलाश क्यों? तेज जांच के लिए सरल समाधान मौजूद

विमानों में सेंसर और रिकॉर्डर लगे होते हैं, जो हर यांत्रिक और विद्युत गतिविधि के साथ-साथ कॉकपिट की बातचीत को भी दर्ज करते हैं। बता रहे हैं

Last Updated- July 30, 2025 | 11:20 PM IST
Air India plane crash

वर्ष 1968 की बेस्टसेलर ‘एयरपोर्ट’ में आर्थर हैली ने शिकागो के ओ’हेयर एयरपोर्ट (पुस्तक में लिंकन इंटरनैशनल एयरपोर्ट) पर एक तूफान के दौरान हालात का वर्णन किया है। हैली के इस लेखन में कल्पना की कमी थी। लेकिन इन कमियों के कारण ही उनके कथानक वास्तविक जीवन के बेहद करीब प्रतीत होते थे। एयरपोर्ट में एक दिवालिया व्यवसायी की कहानी साथ-साथ चलती है, जो आत्महत्या और सामूहिक हत्याओं के बहाने बीमा धोखाधड़ी करने की कोशिश करता है। अपनी पत्नी को लाभार्थी के रूप में रखते हुए जीवन बीमा लेने के बाद वह एक सूटकेस बम के साथ हवाई जहाज में सवार हो जाता है।

यह एक वास्तविक घटना पर आधारित कहानी है। 22 मई, 1962 को शिकागो से कंसास सिटी जाने वाली कॉन्टिनेंटल एयरलाइंस की उड़ान 11 को थॉमस डोटी ने बम से उड़ा दिया था, जिससे विमान में सवार सभी 45 लोगों की मौत हो गई थी। डोटी ने अपनी पत्नी को लाभार्थी के रूप में रखते हुए 3,00,000 डॉलर (आज की मुद्रा में कई लाख डॉलर) की बीमा पॉलिसियां खरीदी थीं। उस पर सशस्त्र डकैती का मुकदमा चलने वाला था। जांचकर्ताओं ने इसका पता लगा लिया और बीमाकर्ताओं ने डोटी के दावों का भुगतान करने से इनकार कर दिया। इसके पहले वर्ष 1955 की एक और घटना में जैक गिल्बर्ट ग्राहम ने बीमा के लिए अपनी मां के साथ हवाई जहाज को उड़ा दिया था।

वर्ष 1985 में खालिस्तानी आतंकियों ने एयर इंडिया का कनिष्क जहाज विस्फोट कर उड़ा दिया था। इस घटना में 329 लोग मारे गए थे। इसके बाद हवाई जहाजों में विस्फोटकों का पता लगाने के लिए बेहद उन्नत प्रणालियां लगनी शुरू हुईं। इस घटना पर ही पृष्ठभूमि पर सलमान रुश्दी की द सैटेनिक वर्सेज आधारित है।

वर्ष 1988 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति-तानाशाह जनरल जिया-उल-हक और अमेरिकी राजदूत को ले जा रहा एक हरक्यूलिस सी-130 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें सवार सभी 30 लोग मारे गए थे। अमेरिकी जांचकर्ताओं ने इसे यांत्रिक विफलता बताया तो पाकिस्तानी एजेंसियों की जांच में आमों के टोकरे में विस्फोटक रखे जाने की बात सामने आई। इसी थीम पर मोहम्मद हनीफ ने ‘अ केस ऑफ एक्सप्लोडिंग मैंगोज’ नाम से उपन्यास लिखा है।

अमेरिका में 11 सितंबर की घटना के बाद पूरी दुनिया में विमानन सुरक्षा को और भी कड़ा किया गया। रासायनिक स्निफर और एक्स-रे मशीनों के साथ सुरक्षा जांच में कुत्ते भी तैनात किए गए। अपहरण जैसी घटनाओं को रोकने के लिए कॉकपिट को सुरक्षित रूप से बंद करने के इंतजाम किए गए। लेकिन अगर पायलट ने ही विमान को दुर्घटनाग्रस्त करने का फैसला कर लिया, तो कोई क्या कर सकता है?

ऐसा मलेशिया एयरलाइंस की फ्लाइट एमएच370 के साथ होने की आशंका जताई जाती है।  8 मार्च, 2014 को कुआलालंपुर से पेइचिंग की उड़ान बीच रास्ते गायब हो गई। इसका रेडियो संपर्क टूट गया। आखिरी बार जब इसे ट्रैक किया गया तो विमान पूरी तरह गलत दिशा में जा रहा था। रेडियो और सैटेलाइट फोन द्वारा पायलटों से संपर्क करने के सभी प्रयास विफल रहे। रडार सिग्नल प्रसारित करने वाला ट्रांसपोंडर भी बंद हो गया था।

विमान द्वारा स्वचालित रूप से सैटेलाइट को भेजे गए डेटा से संकेत मिला कि विमान के इंजन ठीक थे और यह दक्षिणी हिंद महासागर के ऊपर तब तक उड़ता रहा जब तक कि उसका ईंधन खत्म नहीं हो गया। हादसे के समय यह भूमि से हजारों किलोमीटर दूर समुद्र के ऊपर उड़ रहा था। 50 लाख वर्ग किलोमीटर समुद्री दायरे में हाईटेक खोज अभियान चलाया गया, लेकिन विमान नहीं मिला। बाद में इसमें सवार सभी 239 लोगों को मृत मान लिया गया।

जांचकर्ताओं ने सबसे अधिक संभावना इस बात की जताई कि एक पायलट ने सहयोगी पायलट और अन्य कर्मियों को अक्षम कर दिया या उन्हें कॉकपिट से बाहर बंद कर दिया। उसके बाद अंटार्कटिका की दिशा में ईंधन खत्म होने तक उड़ता रहा। हालांकि यह भी सवाल उठा कि एक पायलट इस तरह सामूहिक हत्या क्यों करना चाहेगा?

बेहतरीन साहित्यिक कृतियों के कथानकों को आइडिया देने को परे रखें तो विमानन हादसों से पर्दा उठाने के लिए भारी-भरकम रकम खर्च होती है। बीमाकर्ता बीमित राशि का भुगतान करने से पहले हादसे के कारण जानना चाहते हैं। विमान निर्माता यह उम्मीद लगाते हैं कि भविष्य में उनकी बिक्री प्रभावित न हो। यही नहीं, यात्री भी हादसे की शिकार एयरलाइन और उसके उस विमान मॉडल में सफर करने से कतराते हैं। यह सब नुकसान अरबों में पहुंच जाता है।

एयर इंडिया 171 उड़ान का हादसा अभी भी रहस्य बना हुआ है। जानबूझ कर विमान को गिराने समेत कई तरह की साजिशों की आशंकाएं हवा में तैर रही हैं। जांच में तमाम प्रयास और पैसे के साथ-साथ प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। इसके निष्कर्ष कुछ भी निकलें, लेकिन वे सभी षड्यंत्रों के सिद्धांतों को खारिज नहीं कर पाएंगे।

लेकिन, अपेक्षाकृत एक सरल तकनीकी उपाय है, जो भविष्य में विमानन घटनाओं में रहस्य के तत्व को कम कर सकता है। विमान में सेंसर और रिकॉर्डर लगे होते हैं, जो यांत्रिक और विद्युत संबंधी तमाम गतिविधियों के साथ कॉकपिट की बातचीत तक को रिकॉर्ड करते हैं। हर दुर्घटना के बाद विमान के मलबे में ब्लैक बॉक्स की तलाश की जाती है। जैसा कि एमएच 370 घटना से पता चलता है, विमान स्वचालित रूप से भी सैटेलाइट को डेटा भेजते हैं। तो हादसे के बाद जांच से छेड़छाड़ की संभावना कम से कम हो, इसके लिए क्यों न ऐसा किया जाए कि विमान का सभी तरह का डेटा वास्तविक समय में कई जगह भेजा जाए? यह तकनीकी रूप से संभव है। ऐसा करने के लिए सिस्टम को दोबारा तैयार करने में कुछ लागत जरूर आएगी, लेकिन दांव पर लगे अरबों रुपये के संदर्भ में यह खर्च बहुत कम होगा। बड़ी बात, इससे विमानन घटनाओं की जांच बहुत आसान और अधिक पारदर्शी हो जाएगी।

 

First Published - July 30, 2025 | 10:49 PM IST

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