हमें शायद कुछ समय तक यह पता न चल पाए कि अहमदाबाद में एयर इंडिया 171 के उड़ान भरने के कुछ सेकंड बाद ही जमीन पर आ गिरने का कारण क्या था। विमान दुर्घटनाओं की जांच सबसे व्यापक जांचों में आती है। इसलिए यह बेहद महत्त्वपूर्ण है कि अटकलें लगाने के बजाय इस जांच प्रक्रिया के पूरी होने का इंतजार किया जाए।
कुल मिलाकर कुछ ऐसी चीजें हैं, जिन्हें हम पहले से ही जानते हैं: बोइंग 787 ड्रीमलाइनर के साथ पहले कभी इतना घातक हादसा नहीं हुआ। इसके विपरीत उसी कंपनी के विवादास्पद 737-मैक्स विमान अनेक दुर्घटनाओं के शिकार हुए हैं और कई बार उन्हें उड़ान भरने से रोका गया है। अभी दो सप्ताह भी नहीं हुए, जब बोइंग को 737-मैक्स की दो दुर्घटनाओं के लिए मुकदमा चलाने से बचने को 1.1 अरब डॉलर का भुगतान करने के लिए अमेरिकी सरकार के साथ समझौता करना पड़ा है।
इस विमान दुर्घटना के कारणों का पता लगाना थोड़ा कठिन हो सकता है। किसी भी प्रारंभिक धारणा और कथन में बाद में बदलाव या सुधार किया जा सकता है। विमान दुर्घटना की जांच में अक्सर ऐसा होता है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में पिछली बड़ी विमान दुर्घटना पांच साल पहले 2020 में महामारी के दौरान ‘वंदे भारत’ उड़ानों में से एक दुबई से कोझिकोड जाने वाली एयर इंडिया एक्सप्रेस 1344 के साथ हुई थी।
उससे पूरे एक दशक पहले बड़ी विमान दुर्घटना तब हुई थी जब 2010 में एयर इंडिया एक्सप्रेस 812 उड़ान दुबई से मंगलूरु जा रही थी। इन दोनों दुर्घटनाओं की जांच में व्यवहार को लेकर चौंकाने वाला समान पैटर्न सामने आया था, जो वास्तव में एयर इंडिया एक्सप्रेस और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण दोनों के लिए एक कलंक है।
दोनों दुर्घटनाओं में विमान खतरनाक ‘टेबलटॉप’ रनवे पर उतर रहे थे, जो पहाड़ी की चोटी को कृत्रिम रूप से समतल कर बनाए गए थे। दोनों ही मामलों में कप्तान ने उस समय एक जूनियर प्रथम अधिकारी की गो अराउंड यानी हवा में विमान उड़ाते रहने या उतरने से बचने की सलाह को नजरअंदाज कर दिया था। कप्तान के अपने जूनियर
अधिकारी की सलाह को नजरअंदाज करने की समस्या को एयर इंडिया एक्सप्रेस के भीतर मानव संसाधन प्रथाओं से समझा जा सकता है, जहां कप्तान या तो अंतरराष्ट्रीय स्तर के पायलट हो सकते हैं अथवा वे एयर इंडिया से प्रतिनियुक्ति पर आए हुए हो सकते हैं और खुद को एयर इंडिया एक्सप्रेस के प्रथम अधिकारियों से बेहतर मानते हैं। दोनों ही मामलों में टेबलटॉप रनवे के अंतिम छोर का रखरखाव समुचित तरीके से नहीं किया गया था। इसलिए विमानों को उतना धीमा नहीं किया जा सका जितना सुरक्षित उतरने के लिए किया जाना चाहिए था।
यह भी महत्त्वपूर्ण है कि सन 2000 के दशक की शुरुआत में अलायंस एयर की दुर्घटना को छोड़ दें जिसमें 60 लोग मारे गए थे, तो गुरुवार की दुर्घटना से पहले तक दोनों एयर इंडिया एक्सप्रेस दुर्घटनाएं इस सदी की सबसे बड़ी दुर्घटनाएं थीं। भारतीय हवाई यात्रा को झिंझोड़ देने वाली कई आपदाओं को देखते हुए देश में विमानन सुरक्षा में सुधार का स्तर भी ध्यान देने योग्य है। फिर भी इन दुर्घटनाओं में अतीत वाली समस्याओं का झलकना निराशाजनक है।
एयर इंडिया 855 सम्राट अशोक नामक विमान 1978 में नए साल के दिन उड़ान भरने के फौरन बाद ही बांद्रा से कुछ किलोमीटर दूर समुद्र में समा गया था, क्योंकि उसमें खराब एटीट्यूड इंडिकेटर ने कप्तान को गुमराह कर दिया था। इस भयावह हादसे को उस समय ‘बैंडस्टैंड क्रैश’ कहा गया था। लेकिन अमेरिकी अदालतों ने अंततः यह निष्कर्ष निकाला कि कप्तान मधुमेह की दवाओं के असर के कारण इंडिकेटर की प्रतिक्रिया को समय रहते समझ नहीं पाए थे। यही बात 2020 में दुर्घटनाग्रस्त एआई 1344 के कप्तान के लिए भी कही जा सकती है।
इससे भी अधिक विवादास्पद 1990 में बेंगलूरु में इंडियन एयरलाइंस 605 की दुर्घटना थी। कोझिकोड और मंगलूरु की तरह रनवे से आगे निकलने के बजाय यह विमान रनवे पर उतरने से ही चूक गया। फ्रांसीसी एयर शो में आगाज के दौरान की दुर्घटना को नजरअंदाज कर दें तो उस समय यह बिल्कुल नए एयरबस 320 से जुड़ी दुनिया की पहली दुर्घटना थी, जिसमें कंप्यूटरीकृत ‘फ्लाई-बाय-वायर’ उपकरण लगा था। जांच में पता चला कि पायलट की गलती से यह दुर्घटना हुई थी। हालांकि ए320 के डिजाइन में इसके बाद चुपचाप किए गए सुधारों से पता चलता है कि एक नया और भ्रमित करने वाला इंटरफेस भी कुछ हद तक इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
इसी क्रम में एक और दुखद दुर्घटना 1993 में इंडियन एयरलाइंस 491 की विफलता से जुड़ी है। यह विमान औरंगाबाद हवाई अड्डे पर उड़ान भरने के साथ ही उचित संतुलन बना पाने में नाकाम रहा और रनवे के अंतिम छोर को पार कर सड़क पर कपास के गट्ठर ले जा रहे ट्रक से टकरा गया। इस हादसे की जांच में कई खामियां एक साथ उजागर हुई थीं।
इनमें रनवे के खराब डिजाइन के साथ-साथ कप्तान का प्रथम अधिकारी (महिला) की सलाह को नजरअंदाज करना और सबसे महत्त्वपूर्ण, जमीन पर खराब सिस्टम जिसके कारण संभावित रूप से अधिक वजन वाला विमान उचित ऊंचाई हासिल करने में विफल रहा, जैसे कारक दुर्घटना के लिए जिम्मेदार पाए गए। यही स्थिति एआई 171 के साथ भी बनी। वह भी उड़ान भरने के साथ आवश्यक झुकाव प्राप्त करने में विफल रहा। लेकिन जैसा कि पूर्व की घटनाओं की जांच से पता चलता है, इसके लिए कई और चीजें भी जिम्मेदार हो सकती हैं। जल्दबाजी में किसी भी निर्णय पर पहुंचना गैर-जिम्मेदाराना रवैया ही कहा जाएगा।