Budget 2024: नरेंद्र मोदी सरकार के अपने छठे पूर्ण बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को दिखाया कि वह राजकोषीय विवेक, साहस और राजनीतिक समझदारी सब रखती हैं। उनका राजकोषीय विवेक न केवल 2024-25 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य कम करके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 फीसदी तक लाने में नजर आता है बल्कि उनकी इस घोषणा में भी दिखता है कि वह राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को 2026-27 से केंद्र सरकार के घाटे में कमी के साथ तालमेल वाला बनाएंगी।
वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में राजकोषीय घाटे के लिए 5.1 फीसदी का लक्ष्य तय किया गया था जिसका मतलब था कि सरकारी ऋण जीडीपी का 57.2 फीसदी होगा। मंगलवार को पेश बजट में घाटे के लिए 4.9 फीसदी का लक्ष्य तय किया गया जो सरकारी ऋण को कम करके जीडीपी के 56.8 फीसदी के स्तर पर लाएगा।
यकीनन कर्ज का यह स्तर अभी भी आधिकारिक समिति द्वारा कुछ माह पहले तय किए गए 40 फीसदी के लक्ष्य से अधिक है। परंतु ध्यान देने वाली बात यह है कि मंगलवार तक कोविड के बाद के अपने सभी बजट भाषणों में यह लक्ष्य रखा गया कि राजकोषीय घाटे को 2025-26 तक जीडीपी के 4.5 फीसदी तक लाना है लेकिन सरकारी ऋण के स्तर में कमी का जिक्र करने की आवश्यकता नहीं समझी गई।
वर्ष 2024-25 के बजट भाषण में सीतारमण ने राजकोषीय घाटे को इस गति से कम करने का जिक्र किया जिससे कि सरकारी ऋण के स्तर में भी कमी आए। उन्होंने कहा, ‘2026-27 के बाद से हमारा प्रयास होगा कि राजकोषीय घाटे को ऐसा रखा जाए ताकि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भी केंद्र सरकार का ऋण गिरावट पर हो।’ यह एक स्वागतयोग्य और जरूरी बात है जिस पर सरकार की राजकोषीय मजबूती की रणनीति के तहत ध्यान देना आवश्यक था। एक विकासशील अर्थव्यवस्था की अलग तरह की दिक्कतों को देखते हुए कर्ज के स्तर को राजकोषीय मजबूती के अधिक विश्वसनीय आधार के रूप में देखा जा रहा है।
सीतारमण के वित्तीय विवेक को एक और तरह से आंका जा सकता है। उन्होंने रिजर्व बैंक से अतिरिक्त लाभांश मिलने के बावजूद खुद को विभिन्न योजनाओं के लिए अतिरिक्त आवंटन करने से रोके रखा। यह लाभांश जीडीपी के 0.4 फीसदी के बराबर है। उन्होंने इस बात को सही चिह्नित किया कि यह इस वर्ष हुआ एकबारगी लाभ हो सकता है और अगले वर्ष शायद अतिरिक्त लाभांश मौजूद नहीं हो। ऐसे में इस वर्ष अतिरिक्त धनराशि होने के बावजूद उन्होंने राजस्व आवंटन को केवल छह फीसदी बढ़ने दिया। बिना ब्याज भुगतान के वास्तविक इजाफा 4.78 फीसदी रहा यानी लगभग कोई वृद्धि नहीं हुई। इसके बजाय उन्होंने पूंजीगत व्यय में 17 फीसदी इजाफा बरकरार रखा है। ऐसे में केंद्र सरकार का कुल व्यय 8.5 फीसदी बढ़ने वाला है जबकि उसका कुल राजस्व 15 फीसदी बढ़ेगा।
आखिर में सीतारमण ने अपने व्यय की गुणवत्ता और मिश्रण में भी सुधार किया। इतना ही नहीं उन्होंने राजस्व घाटे को भी निरंतर कम किया। 2022-23 के जीडीपी के 4 फीसदी के मुकाबले राजस्व घाटा 2023-24 में 2.6 फीसदी रह गया और अब उसके लिए 1.8 फीसदी का लक्ष्य है। राजस्व घाटे में कमी के साथ ही सरकार के पास यह गुंजाइश होगी कि वह पूंजीगत व्यय में उधारी का अधिक हिस्सा डाले।
वित्त मंत्री इसलिए भी साहसी हैं क्योंकि उन्होंने हर प्रकार की परिसंपत्तियों से हासिल पूंजीगत लाभ पर कर का पुनर्गठन किया है। इसका परिणाम अल्पावधि और दीर्घावधि के पूंजीगत लाभ कर में इजाफे के रूप में सामने आया है। इसके अलावा उन्होंने प्रतिभूतियों के वायदा एवं विकल्प कारोबार पर लगने वाले प्रतिभूति विनिमय कर (एसटीटी) में भी इजाफा किया है। याद रहे कि बजट के पहले आर्थिक समीक्षा में अर्थव्यवस्था के जरूरत से अधिक वित्तीयकरण के जोखिम को रेखांकित किया गया था। शेयर बाजार में वास्तविक अर्थव्यवस्था की तुलना में तेज वृद्धि इसमें शामिल है। समीक्षा में कर नीतियों और पूंजी और श्रम आय के साथ उसके व्यवहार के महत्त्व को भी रेखांकित किया गया है।
ऐसा लगता है कि वित्त मंत्री ने पूंजीगत लाभ कर और एसटीटी को लेकर जो घोषणाएं की हैं वे दरअसल समीक्षा में जताई चिंताओं की बदौलत हैं। परंतु जब बात सालाना बजट तैयार करने की आती है तो शेयर मार्केट के मामले में वित्त मंत्रियों को जोखिम से बचने के लिए जाना जाता है। कुछ ही वित्त मंत्री शेयर बाजार को निराश करने वाली घोषणा करते हैं। सीतारमण ने यह जोखिम उठाने का निर्णय लिया। आश्चर्य नहीं कि घरेलू स्टॉक एक्सचेंज के मानक सूचकांकों में मंगलवार को तेजी से गिरावट आई लेकिन बाद में उनमें सुधार देखने को मिला।
वित्त मंत्री की राजनीतिक समझदारी तब नजर आई जब उन्होंने रोजगार से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए एक के बाद एक कई घोषणाएं कीं। इनमें केंद्र सरकार की ओर से निजी क्षेत्र को लोगों को काम पर रखने में वित्तीय मदद प्रदान करने की योजना शामिल है। सरकारी नौकरी की बात करने के बजाय उन्होंने निजी क्षेत्र में रोजगार देने के साथ प्रोत्साहन शामिल कर दिए हैं। सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों की बात करें तो उन्होंने संकटग्रस्त इकाइयों के लिए अधिक ऋण और कुछ नियामकीय सहनशीलता दिखाने की घोषणा की।
इससे भी अहम बात यह है कि उन्होंने बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए योजनाओं और परियोजनाओं की भरमार कर दी। इन दोनों राज्यों में केंद्र सरकार के गठबंधन साझेदारों की सरकार है। उन्होंने ऐसा करते समय ध्यान रखा कि राजकोषीय सेहत पर बुरा असर नहीं पड़े। इन योजनाओं में से कई तो राज्यों के साथ मिली जुली होंगी और आवंटन भी अगले पांच साल के दौरान किया जाएगा।
केंद्र सरकार की पीएम किसान और मनरेगा जैसी योजनओं में आवंटन नहीं बढ़ा है। प्रमुख सब्सिडी पर होने वाले व्यय में 2024-25 में 8 फीसदी की कमी आने की उम्मीद है। ऐसा गेहूं और धान की कम खरीद तथा उर्वरक कीमतों को युक्तिसंगत बनाए जाने के कारण हो रहा है।
ज्यादा चिंता की बात यह है कि कुल रक्षा आवंटन में ऐसे समय में गिरावट देखने को मिली है जबकि रक्षा तैयारी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। दूसरी ओर, कुछ प्रमुख योजनाएं जिनके आवंटन में अहम इजाफा हुआ है वे हैं ग्रामीण और शहरी आवास योजना, स्वास्थ्य आदि।
जहां तक बजट के दूरगामी नजरिये की बात है, वित्त मंत्री ने कुछ आश्वस्त करने वाले संदेश दिए हैं। विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ाने के लिए एक नए आर्थिक नीति ढांचे की बात कही गई है जिसे राज्यों के साथ मिलकर अंतिम रूप दिया जाएगा।
आयकर अधिनियम की एक व्यापक समीक्षा होनी है ताकि इसे सरल बनाया जा सके और करदाताओं को निश्चिंतता प्रदान करते हुए विवाद कम किए जा सकें। सीमा शुल्क दरों की नए सिरे से समीक्षा होनी है और यह सब आगामी छह माह में पूरा करना है। वित्त मंत्री ने पहले ही एक दर्जन क्षेत्रों की करीब 50 वस्तुओं की सीमा शुल्क दरों में कमी करके शुरुआत कर दी है। इस भावना को छह महीने में पूरी होने वाली समीक्षा के दौरान बरकरार रखा जाना चाहिए तथा उम्मीद है कि इसे अगले बजट में प्रस्तुत किया जाएगा।