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ट्रंप के दोहरे लक्ष्य में फंसे शुल्क समझौते 

ऐपल ने 2024 में भारत में 4 करोड़ आईफोन तैयार किए, जिनकी कुल कीमत 22 अरब डॉलर थी।

Last Updated- May 20, 2025 | 10:55 PM IST
Donald Trump
Donald Trump Apple iPhone policy

अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पिछले सप्ताह ऐपल के मुख्य कार्याधिकारी टिम कुक को भारत के बजाय अमेरिका में ही आईफोन बनाने की हिदायत दी। यह ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ यानी अमेरिका को सबसे ऊपर रखने की मुहिम का ही हिस्सा है। कुक की कंपनी ऐपल अमेरिका में 500 अरब डॉलर निवेश करने की घोषणा पहले ही कर चुकी है मगर ट्रंप नाखुश दिखे। ऐपल ने 2024 में भारत में 4 करोड़ आईफोन तैयार किए, जिनकी कुल कीमत 22 अरब डॉलर थी। उनमें 3.20 करोड़ फोन (17.5 अरब डॉलर मूल्य) अमेरिका, यूरोप और पश्चिम एशिया को निर्यात किए गए। कंपनी का इरादा है कि अमेरिका को निर्यात होने वाले सभी फोन की असेंबलिंग 2026 तक भारत में ही होने लगे। इसके लिए वह देश में 8 करोड़ तक आईफोन तैयार करने लगेगी। यह ऐपल के लिए भी वरदान होगा और विनिर्माण का अड्डा बनने की कोशिश कर रहे भारत के लिए भी। मगर ट्रंप की फरमाइश मामला बिगाड़ सकती है।

ट्रंप की फरमाइश याद दिलाती है कि शुल्कों पर उनकी धमकी व्यापार घाटा कम करने के लिए ही नहीं है। उनका असली मकसद विनिर्माण को वापस अमेरिका में लाना है। व्यापार घाटा कम करने और अमेरिकी उद्योग में नई जान फूंकने का उनकी दोहरी मंशा ऐपल जैसी कंपनियों की दीर्घकालीन नीतियों के आड़े आ सकती है, जो विनिर्माण को चीन से हटाकर भारत पहुंचा रही हैं। साथ ही विनिर्माण पर दांव खेलने वाले देशों के साथ भी ये नीतियां टकरा सकती हैं। मगर विनिर्माण गतिविधियां वापस लाना व्यापार वार्ता से ज्यादा पेचीदा मसला है। ऐपल को सार्वजनिक रूप से निशाना बनाना ट्रंप की इस सोच का पहला उदाहरण है। अब जर्मनी, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे विनिर्मामांग आ सकती है। व्यापार वार्ता ज्यादा आगे नहीं बढ़ी है और यह मांग उससे भी बदतर होगी।

अब तक हुए व्यापार सौदे ट्रंप ने व्यापार अधिशेष के हिसाब से शुल्क दर तय करने से लेकर ऐसे द्वीपों पर भी भारी शुल्क लगाने का ऐलान कर दिया, जहां मनुष्य नहीं केवल पेंगुइन रहते हैं। ऐसी बेतुकी और परेशान करने वाली घोषणाओं ने आपूर्ति श्रृंखलाओं, व्यापार संबंधों और कारोबार के अर्थशास्त्र को हिला दिया है। ट्रंप ने तमाम देशों को अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता के लिए 90 दिन दिए, जिसके बाद उनके दिमाग में चल रही खुराफात को समझने के लिए माथापच्ची शुरू हो गई। दुनिया भर के देश यह समझने में जुट गए कि उन्हें किस बात की सजा मिल रही है और 90 दिन में अमेरिका के साथ बातचीत कैसे की जाए। कई विशेषज्ञों को लगा कि लंबे समय से व्यापार साझेदार रहे जापान, जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे बड़े देशों के साथ बड़े समझौते कर ट्रंप चीन को वैश्विक व्यापार श्रृंखलाओं से बाहर करना चाहते हैं। मगर यह सोच गलत निकली।

एक महीने बाद केवल दो समझौते हो पाए हैं जिनमें एक 295 अरब डॉलर व्यापार अधिशेष वाले दुश्मन देश चीन और दूसरा केवल 12 अरब डॉलर अधिशेष वाले ब्रिटेन के साथ है। यूरोपीय संघ के साथ व्यापार सौदा अत्यंत जटिल होगा और अभी उसकी कोई उम्मीद नहीं दिख रही। ट्रंप ने यूरोपीय संघ को चीन से ज्यादा धोखेबाज कह दिया है। जापान उनके साथ टकराने की सोच रहा है। चीन से अमेरिका को अधिकतर निर्यात वियतनाम के रास्ते आता है और उस देश के साथ अमेरिका का समझौता होता नहीं दिखता। कनाडा और मेक्सिको के साथ समझौते भी लटके हुए हैं। माना यही जा रहा है कि ट्रंप के तीखे तेवरों से कुछ व्यापार वार्ताएं हो जाएंगी मगर 90 दिन की मियाद नहीं चलेगी और 90 देशों के साथ 90 समझौते तब तक नहीं हो पाएंगे। इसके बाद ट्रंप एक बार फिर शुरू हो जाएंगे, जिससे आर्थिक अनिश्चितत उत्पन्न होगी।

मगर ऐपल का उदाहरण बता रहा है कि उत्पादन वापस अमेरिका ले जाना विवाद का बड़ा मसला होगा। ट्रंप केवल व्यापार खाता सही करने की कोशिश में नहीं हैं। ऐसा होता तो दूसरे देश अमेरिका से भारी मात्रा में तेल-गैस और कीमती हथियार खरीदकर अधिशेष को कुछ कम करते। ट्रंप चाहते हैं कि व्यापार सौदे भी हों और उत्पादन वापस भी आए। लेकिन यूरोपीय संघ के देश कमजोर वृद्धि, घटती आबादी और बढ़ते सामाजिक खर्च से जूझ रहे हैं। उनके बाजार चीन के उत्पादों से पटे हुए हैं, इसलिए वे विनिर्माण कम करने की सोच भी नहीं सकते। विकासशील देश अपने यहां लाखों-करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की जद्दोजहद में लगे हैं। विनिर्माण इसका सबसे अच्छा रास्ता हो सकता है क्योंकि इसी को बढ़ाया जा सकता है और रोजगार के बहुत मौके तैयार हो सकते हैं। कृषि क्षेत्र ऐसा नहीं कर सकता। सेवा क्षेत्र गांव-कस्बों में बेरोजगारी कम कर सकते हैं।

यह भी सच है कि ट्रंप ऐपल को अमेरिका में आईफोन बनाने पर मजबूर नहीं कर सकते। अमेरिका में आईफोन असेंबल करने के लिए कुशल लोगों की कमी है, इसके पुर्जे  (चिप, डिसप्ले, कैमरा मॉड्यूल आदि) बनाने वाली कंपनियां चीन, ताइवान, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में हैं तथा विनिर्माण के लिए जरूरी टूलिंग, परिवहन, सब-कॉन्ट्रैक्टर तथा आपूर्ति नेटवर्क जैसी सुविधाओं की भी भारी कमी है। ऐपल चुटकियों में यह सब तैयार नहीं कर सकती। इसमें बहुत खर्च और कई साल लग सकते हैं। दवा क्षेत्र की भी स्थिति भी यही है, जहां भारत होड़ में आगे है। मगर यह भी सच है कि ट्रंप को इन बातों से कोई मतलब नहीं होगा। विनिर्माण अमेरिका में वापस लाने की उनकी मांग कितनी भी बेतुकी हो, सबको परेशान करती रहेगी। पिछले चार महीनों में सबने तमाशा देखा है। मगर तमाम देशों और कंपनियों को सकते में डालने वाला दौर खत्म नहीं हुआ है। अगर आपको खामोशी दिख रही है तो वह केवल इसलिए है क्योंकि अभी व्यापार युद्ध का पहला चरण खत्म हुआ है।

(लेखक डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक एवं मनीलाइफ फाउंडेशन के न्यासी हैं)

First Published - May 20, 2025 | 10:43 PM IST

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