केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में हाल में हुए इजाफे का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाना चाहिए? क्या वास्तव में ऐसे खर्च में तेज उछाल आई है? यकीनन नियंत्रक महालेखाकार द्वारा जारी आंकड़े यही दिखाते हैं कि अप्रैल-अगस्त 2025 की अवधि में केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय 4.31 लाख करोड़ रुपये रहा जो पिछले वर्ष की समान अवधि के 3 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 43 फीसदी अधिक है।
आश्चर्य नहीं कि इसे एक ऐसी सकारात्मक घटना माना गया जिससे आने वाले महीनों में मदद मिल सकती है और वृद्धि को बल मिल सकता है। खासतौर पर ऐसे समय में जबकि निजी क्षेत्र अभी भी नई परियोजनाओं में निवेश बढ़ाने का इच्छुक नहीं नजर आ रहा है। यह याद रहे कि पिछले पांच साल में पहली बार सरकार ने 2025-26 में पूंजीगत व्यय में एक अंक में महज 6.5 फीसदी वृद्धि का अनुमान जताया है। परंतु आरंभिक पांच महीनों में अग्रिम खर्च किए जाने से वर्ष के बाकी 7 महीनों के दौरान पूंजीगत व्यय में राहत रहेगी। इससे यह 8 फीसदी की कमी को भी वहन कर सकता है और इसके बावजूद 11.21 लाख करोड़ रुपये के बजट लक्ष्य को हासिल कर सकता है।
इस राहत के बावजूद इन आंकड़ों पर करीबी नजर डालें तो मिलीजुली तस्वीर नजर आती है। जुलाई में केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में 10 फीसदी से अधिक की कमी आई और 2025-26 के पहले चार महीनों में ऐसे व्यय में कुल इजाफा कम होकर 33 फीसदी रह गया लेकिन अगस्त में हुए तेज इजाफे ने परिदृश्य में सुधार किया है। परंतु जब हम यह विश्लेषण करते हैं कि 43 फीसदी इजाफा कैसे हुआ तो अधिकांश विश्लेषकों द्वारा दिखाया गया उत्साह कम हो जाएगा। अतिरिक्त पूंजीगत व्यय को अधोसंरचना क्षेत्र में खपाने को लेकर चिंताएं दूर नहीं होतीं।
केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में भी दो व्यापक घटक हैं। पहला घटक है केंद्रीय मंत्रालयों और सरकारी उपक्रमों को इक्विटी की मदद से दिया जाने वाला पूंजीगत समर्थन। दूसरा घटक सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत विभिन्न संस्थानों को दिए गए ऋण और उधार से संबंधित है। इनमें राज्य भी शामिल हैं। वर्ष2025-26 में केंद्र सरकार की पूंजीगत व्यय योजना कुछ हद तक ऋण और उधार पर निर्भर है जो कुल पूंजीगत व्यय का 20 फीसदी है। इसके विपरीत वर्ष2024-25 में यह हिस्सेदारी 18 फीसदी थी। वर्ष 2021-22 में जब मौजूदा पूंजीगत व्यय चक्र शुरू हुआ था, ऋण और उधार की हिस्सेदारी महज 9.9 फीसदी थी।
केंद्र सरकार की पूंजीगत व्यय योजना में ऋण और उधार की हिस्सेदारी में वृद्धि के दो संभावित कारण हो सकते हैं। पहला, योजनाओं के तहत पूंजीगत व्यय के रूप में योग्य माने जाने वाले कार्यों के लिए ऋण के रूप में धन जारी करना अपेक्षाकृत आसान होता है। जमीन पर परियोजनाओं को लागू करने के लिए पूर्व योजना की आवश्यकता होती है, जिसकी कमी के कारण अक्सर देरी होती है और वास्तविक व्यय में गिरावट आती है।
दूसरा, ऋण का एक बड़ा हिस्सा राज्यों को दिया जाता है और यह उनके द्वारा वादा किए गए सुधारों की श्रृंखला को लागू करने से जुड़ा होता है। इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि उच्च पूंजीगत व्यय योजना राज्यों में सुधारों को तेज़ी से आगे बढ़ाएगी और देश के विभिन्न हिस्सों में अधोसंरचना विकास होगा, जो केवल केंद्र की पहल पर नहीं बल्कि राज्यों की अपनी पहलों के तहत भी किया जाता है।
वर्ष 2025-26 के आरंभिक पांच महीनों में भी यही हुआ। ऋण और उधार के रूप में केंद्र के पूंजीगत व्यय में 175 फीसदी का इजाफा हुआ और यह 1.09 लाख करोड़ रुपये रहा। वर्ष2024-25 की समान अवधि में यह 40,000 करोड़ रुपये था। स्पष्ट है कि उच्च पूंजीगत व्यय से राज्यों तथा अन्य संस्थानों को लाभ मिला है। आश्चर्य की बात नहीं है कि राज्यों को पूंजीगत व्यय का हस्तांतरण अप्रैल-अगस्त 2025 में 78 फीसदी बढ़कर 51,509 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा।
इन ऋण और उधार का संबंध पूंजीगत परियोजनाओं के क्रियान्वयन से है। परंतु वह थोड़ा जटिल मुद्दा हो सकता है जिसकी बाद में करीबी पड़ताल करनी होगी। ध्यान रहे कि बिना इस ऋण और उधार के पहले पांच महीनों में पूंजीगत व्यय में इजाफा करीब 23 फीसदी था। यह अभी भी अच्छा खासा इजाफा है और भविष्य की वृद्धि पर इसका सकारात्मक प्रभाव होना चाहिए।
लेकिन किन क्षेत्रों ने इस प्रकार के व्यय में वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है? रेलवे नहीं, जिसमें पूंजीगत व्यय में केवल 8 फीसदी की एकल-अंकीय वृद्धि हुई और यह 1.1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा। सड़कों और राजमार्गों में भी केवल 11 फीसदी की वृद्धि हुई, जो 1.17 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा। वहीं, आवास और शहरी क्षेत्र में 4 फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई और यह 9,781 करोड़ रुपये रह गया। परमाणु ऊर्जा पर पूंजीगत व्यय में भी 6 फीसदी से अधिक की कमी आई है।
अधोसंरचना क्षेत्र में इकलौता क्षेत्र जिसके पूंजीगत व्यय में तेज इजाफा देखने को मिला है, वह है दूरसंचार जहां व्यय इन पांच महीनों में बढ़कर 17,853 करोड़ रुपये हो गया। अन्य जिन क्षेत्रों को इस अवधि में उच्च पूंजीगत व्यय हासिल हुआ वे हैं: रक्षा, पुलिस, पूर्वोत्तर विकास, अंतरिक्ष, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी। एक आश्वस्त करने वाली घटना यह है कि कम से कम इस वर्ष अगस्त तक, सरकार को अप्रत्याशित या बिना योजना वाले व्यय की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आर्थिक मामलों के विभाग में रखे गए पूंजीगत व्यय का अधिक उपयोग नहीं करना पड़ा।
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के लिए पूंजीगत व्यय में इजाफा एक दिलचस्प आंकड़ा है। अप्रैल-अगस्त 2025 में इस विभाग का पूंजीगत व्यय बढ़कर 50,000 करोड़ रुपये हो गया जबकि 2024 की समान अवधि में यह केवल 335 करोड़ रुपये था। कुल मिलाकर देखें तो अकेले खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग इन पांच महीनों के कुल पूंजीगत व्यय इजाफे में एक तिहाई से ज्यादा के लिए जिम्मेदार है। ऐसा लगता है कि विभाग के पूंजीगत व्यय में यह इजाफा भारतीय खाद्य निगम को उधार मुहैया कराने से संबंधित है। खाद्य निगम इस सहायता से खाद्यान्न की खरीद करता है। इससे ऐसी आवश्यकताओं के लिए बैंकों से ऋण लेने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। यह व्यय उस सब्सिडी के बदले समायोजित किया जाता है, जिसे सरकार खाद्य वितरण पर वहन करती है।
यदि यही इसका स्पष्टीकरण है, तो इस प्रकार की व्यवस्था सरकार की पूंजीगत व्यय योजना की गुणवत्ता पर और भी सवाल खड़े करती है। कुल मिलाकर, केंद्र की पूंजीगत व्यय वृद्धि दर स्वस्थ बनी हुई है, लेकिन इस वृद्धि की संरचना को गहराई से जांचना आवश्यक है ताकि यह बेहतर समझा जा सके कि इसका आर्थिक विकास पर प्रभाव कितना असरदार होगा।