यह शायद इतिहास का एक संयोग है कि भारत एक देश बन गया। मसलन, प्लासी के युद्ध में किसी की कोई एक गोली अचानक से आती और रॉबर्ट क्लाइव को मार जाती। यह हमारे राष्ट्र निर्माताओं का व्यावहारिक नजरिया ही था कि उन्होंने ऐसा संविधान तैयार किया जिसका स्वरूप संघीय है क्योंकि भारत राज्यों का ऐसा संघ है जो यूरोपीय संघ की तुलना में ज्यादा विविधता लिए हुए है।
यूरोपीय संघ में 27 देश हैं जबकि भारत में 28 राज्य और आठ केंद्र शासित प्रदेश हैं। यूरोपीय संघ की 24 आधिकारिक भाषाएं हैं। भारत की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है। साथ ही कम से कम, देश में 35 भाषाएं और हैं जो मान्यता की लगातार मांग कर रही हैं।
भारत की आबादी मोटे तौर पर यूरोपीय संघ की आबादी से करीब साढ़े तीन गुना ज्यादा है। यूरोपीय संघ की आबादी लगभग 45 करोड़ है। भारत का गिनी गुणांक या सूचकांक यूरोपीय संघ के ज्यादातर देशों की तुलना में अधिक है। किसी देश में गिनी गुणांक में शून्य का मतलब है कि उस देश में हरेक की प्रति व्यक्ति आय समान है।
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अगर इस सूचकांक में 100 है तो उसका अभिप्राय है कि उस देश में एक ही शख्स के पास सारी आय है। जर्मनी का गिनी गुणांक 32 है जबकि फ्रांस का 30 है। पूरे यूरोपीय संघ में बल्गारिया का गिनी गुणांक सबसे अधिक 39 है जबकि इसके बाद लिथुआनिया का नंबर आता है जिसका गिनी गुणांक करीब 36 है। भारत का गिनी गुणांक 2019 में 36 था। भारत में गैर-बराबरी बढ़ने के बारे में मौजूद बातों और घटनाओं को देखते हुए लगता है कि हमारे गिनी गुणांक में इसके बाद से शायद और इजाफा हुआ है यानी गैर-बराबरी बढ़ी है।
यूरोपीय संघ की एकसमान मुद्रा है जिसका 20 देशों में इस्तेमाल किया जाता है। अन्य सात देशों ने भी इस मुद्रा को लागू करने के लिए प्रतिबद्धता जता रखी है लेकिन उनको मास्ट्रिश या एकीकरण की शर्त पूरी करनी पड़ेगी। इसके तहत सरकार के घाटे की सीमा, मुद्रास्फीति, सकल घरेलू उत्पाद का सार्वजनिक ऋण से अनुपात, मौजूदा राष्ट्रीय मुद्रा की स्थिरता और लंबी अवधि की ब्याज दरों की उचित कठोर सीमा शामिल है।
सबसे अहम बात यह है कि यूरोपीय संघ एक साझा बाजार है। वहां के लोग एक से दूसरे देश में आ-जा सकते हैं और सामान भी लाया-ले जाया जा सकता है। श्रम अधिकारों के तहत स्वाभाविक निवास अधिकार शामिल है। यूरोपीय संघ के भीतर सामान को कहीं भी बेचा जा सकता है।
राजनीतिक तौर पर देखें तो हर देश के अपने कानून हैं और वह अपने हिसाब से चुनाव करवाता है जो उस देश की चुनाव प्रणाली के अनुसार होते हैं। यूरोपीय संघ सिर्फ गुप्त मतदान पर जोर देता है। कुछ देश बहुलवादी प्रणाली यानी जिसमें सबसे अधिक वोट पाने वाला जीतता है, उसका इस्तेमाल करते हैं तो कुछ देश समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली अपनाते हैं या इसका मिलाजुला रूप होता है।
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कुछ देश रैंकिंग (तरजीही) वोटिंग प्रणाली अपनाते हैं। हर देश की अपनी संसदीय प्रणाली है और वह अपने कानून खुद बनाता है। यूरोपीय संघ के सदस्य देश अपने कर की दरें खुद तय करते हैं जो अलग-अलग देश में अलग-अलग हैं। जैसे, हंगरी में आयकर की उच्च दर 15 प्रतिशत है तो फ्रांस में यह 55 फीसदी है। अप्रत्यक्ष कर भी स्थानीय रूप से ही तय किए जाते हैं लेकिन ये मूल्य वर्धित कर श्रेणियों के दायरे के भीतर ही रहते हैं जिस पर यूरोपीय संघ में सहमति बनी हुई है। यूरोपीय केंद्रीय बैंक न केवल नीतिगत ब्याज दरें तय करता है बल्कि जरूरत के अनुसार अन्य मौद्रिक उपाय भी करता है।
यूरोपीय संघ का संचालन स्ट्रॉसबर्ग (फ्रांस) स्थित यूरोपीय संसद के जरिए किया जाता है। यूरोपीय संसद के सदस्यों का चुनाव हर पांच साल में सदस्य देशों के नागरिकों द्वारा प्रत्यक्ष रुप से किया जाता है। हरेक देश के लिए गुप्त मतदान का इस्तेमाल करना जरूरी होता है और यूरोपीय संसद में उसका समानुपातिक प्रतिनिधित्व होता है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि यूरोपीय संसद के सदस्यों को उनकी राष्ट्रीय संबद्धता के बजाय राजनीतिक संबद्धता के अनुसार समूह में रखा जा सकता है। ठीक वैसे ही, जैसे भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश के सांसद को उप्र के समाजवादी पार्टी के सांसद के बजाय महाराष्ट्र के भाजपा सांसद के साथ रखा जाए। यूरोपीय संसद के अगले चुनाव मई 2024 में लगभग उसी समय होने हैं जब भारत में लोकसभा के चुनाव होंगे।
यूरोपीय संसद कानून और नीति निर्देशक सिद्धांतों पर मतदान करती है। अगर जरूरी होता है तो वह यूरोपीय संघ की तरफ से बातचीत भी करती है। उसे यूरोपीय संघ की संयुक्त संस्थाओं की निगरानी और मौद्रिक नीति पर केंद्रीय बैंक से पूछताछ करने का अधिकार है। वह किसी भी क्षेत्र में आयोग गठित कर सकती है। उदाहरण के लिए जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेग्युलेशन यूरोपीय संसद के कानून पर आधारित है। एक बार जब यूरोपीय संसद विधान बना देती है तो सदस्य देशों को उसके निर्देशों के अनुरूप अपने स्थानीय कानून बनाने होते हैं।
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यह कुछ-कुछ भारत के संघीय स्वरूप से मिलता जुलता है। भारतीय राज्य अपने खुद के कई कानून बना सकते हैं लेकिन ये कानून संसदीय विधानों के अनुरूप होने चाहिए। निश्चित ही, यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को भारतीय राज्यों की तुलना में ज्यादा आजादी है।
यूरोपीय संघ के सदस्य देश जब उनको अनुकूल होता है तो अपने राष्ट्रीय चुनाव कराते हैं लेकिन ये चुनाव यूरोपीय संसद के चुनाव के साथ नहीं होते हैं। राष्ट्रीय चुनावों में स्थानीय मुद्दों पर चर्चा होती है जो यूरोपीय संसद के चुनाव में होने वाली बहस से पूरी तरह अलग होते हैं। दोनों चुनाव को अलग-अलग रखकर हर सदस्य देश यह सुनिश्चित करता है कि उसका जोर स्थानीय मुद्दों पर ही हो, न कि उन मसलों पर जो पूरे यूरोप को प्रभावित करते हैं। भारत में भी इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाया जाता है और उसे भी ठीक इन्हीं कारणों से लोकसभा चुनाव को राज्यों के चुनाव से अलग ही रखना चाहिए।