facebookmetapixel
बिजनेस स्टैंडर्ड समृद्धि 2025: उत्तर प्रदेश में औद्योगिक विकास ने पकड़ी रफ्तार, MSMEs में तेजीICICI बैंक ने बुजुर्गों के लिए जमा दर बढ़ाकर 7.2% की, SBI और HDFC से भी ज्यादाबॉन्ड के जरिये 3,500 करोड़ रुपये जुटाएगा केनरा बैंक, AT-1 बॉन्ड जारी करेगाInfosys का ₹18,000 करोड़ का शेयर बायबैक 20 नवंबर से हो रहा शुरू, स्टॉक में 3% से अधिक तेजीसेबी की बड़ी पहल: FPIs के लिए डिजिटल रजिस्ट्रेशन और एक ही दिन निपटान पर विचारम्युचुअल फंड लेनदेन में बढ़ रहा ‘ऑनलाइन’ दखल, ऑफलाइन निवेशक तेजी से हो रहे कमएआई और गिग अर्थव्यवस्था के दौर में कैसा होगा रोजगार का भविष्य?मीडिया में गायब जनसमूह: कैसे रीलों और निश कंटेंट ने साझा पलों की जगह ले लीट्रंप की बात को गंभीरता से लें, और टैरिफ लगने से पहले व्यापार समझौते को अंतिम रूप देंStock Market: आईटी शेयरों में जबरदस्त तेजी! सेंसेक्स 513 अंक उछला

ट्रंप की बात को गंभीरता से लें, और टैरिफ लगने से पहले व्यापार समझौते को अंतिम रूप दें

अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के लिए बातचीत पर जल्द से जल्द आगे बढ़ना चाहिए। इसके लिए अमेरिका को कुछ रियायतें भी देनी होंगी। बता रहे हैं मिहिर शर्मा

Last Updated- November 19, 2025 | 9:15 PM IST
India US Trade Deal
इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती

कार्यकारी शक्ति के एक माध्यम के रूप में शुल्क लगाने की अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ‘प्रतिबद्धता’ पर संदेह नहीं किया जा सकता। सार्वजनिक जीवन में अपनी लंबी पारी के दौरान (पहले एक व्यवसायी के रूप में, फिर एक टेलीविजन हस्ती के रूप में और अंत में एक राजनेता के रूप में) ट्रंप हमेशा व्यापार प्रतिबंधों एवं शुल्कों को हथियार बनाने के पक्ष में दलील देने में आगे रहे हैं।

व्यापार प्रतिबंधों एवं शुल्कों को लेकर उनका रुख 1980 के दशक में भी दिखाई दिया था जब जापान वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अमेरिका के प्रभुत्व को चुनौती देता दिखाई दे रहा था। वर्ष 1987 में ट्रंप ने जापान पर शुल्कों की मांग करते हुए कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में एक पूरे पन्ने का विज्ञापन प्रकाशित किया। वर्ष 1989 में उन्होंने कहा कि सफल अर्थव्यवस्थाओं पर आधार शुल्क 15 या 20 फीसदी होना चाहिए।

इस संदर्भ में यह कल्पना करना मुश्किल है कि व्यापार नीति से जुड़ी कोई भी कानूनी चुनौती, चाहे वह कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, ट्रंप को उनके मंसूबे से दूर कर पाएगी। यह सच है कि अमेरिका के उच्चतम न्यायालय ने शुल्कों को चुनौती देने वाली उस याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया है जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति के पास व्यापार नीति बदलने की शक्ति नहीं है ब​ल्कि यह विधायिका के पास है।

यह भी सच है कि इस मामले पर तेजी से सुनवाई होगी और यह बात भी उतनी ही सच है कि नौ न्यायाधीशों (इनमें ट्रंप द्वारा नियुक्त कुछ न्यायाधीश भी शामिल हैं) ने जो सवाल पूछे हैं उनसे संकेत मिलता है कि वे व्हाइट हाउस के तर्कों से प्रभावित नहीं हैं। मगर यह बात भी सच है कि लोकतंत्र में न्यायाधीश उन नीतियों को लागू करने वाले नेताओं के खिलाफ जाने से कतराते हैं जिन्हें एक चुनावी जनादेश मिला है।

इन तमाम बातों के बावजूद अगर शीर्ष न्यायालय शुल्कों पर ट्रंप के निर्णयों को पलटते हुए उन्हें अमेरिकी संसद कांग्रेस को भेजता है तो वहां संसद सदस्य राष्ट्रपति का विरोध नहीं करने का विकल्प चुन सकते हैं। इस बात की भी संभावना है कि अगर सरकार की दो अन्य शाखाएं ट्रंप के खिलाफ जाती हैं तब भी वह शुल्क लगाने के लिए सीधे कार्यकारी आदेशों के अलावा कुछ दूसरे तरीकों का सहारा ले सकते हैं। अमेरिकी कानून में ऐसे प्रावधान हैं जिनका इस्तेमाल वह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कर सकते हैं।

ट्रंप और उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने शब्दों एवं व्यवहारों दोनों माध्यमों से अपनी व्यापार नीति का बचाव किया है। ट्रंप ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि शुल्कों के विरोधी ‘मूर्ख’ हैं। उनके वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक यह कहते हुए जरा भी नहीं हिचकिचा रहे हैं कि शुल्क राष्ट्रपति के लिए एक ऐसा जरिया हैं जिनका उपयोग वह एक ‘अनुचित’ दुनिया पर ‘न्याय’ लागू करने के लिए कर रहे हैं। इसके साथ ही, ट्रंप प्रशासन उपभोक्ताओं पर शुल्कों के प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभावों को आंशिक रूप से कम करने के लिए कदम भी उठा रहा है।

शुक्रवार को प्रशासन ने एक नया कार्यकारी आदेश जारी किया जिसके तहत बीफ से लेकर कॉफी, संतरे और उर्वरकों तक सौ से अधिक वस्तुओं पर अगस्त में लगाए शुल्क कम कर दिए गए हैं। त्योहारों के दौरान खाद्य वस्तुओं की कीमतें चिंता का विषय हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रंप इससे निपटने में दिलचस्पी ले रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया है कि संघ सरकार को शुल्कों से मिल रही रकम करदाताओं को 2,000 डॉलर के चेक के रूप में भेजी जा सकती है। अगर यह अदालतों के फैसले से पहले होता है तो इससे अमेरिका का वित्तीय गणित गंभीर रूप से जटिल हो जाएगा क्योंकि शुल्क संबंधी आदेश रद्द होने पर उन कंपनियों को भी मुआवजा देना होगा जिन्होंने उनका (शुल्कों) का भुगतान किया था।

दो बातें एक साथ स्पष्ट हैं। पहली बात, ट्रंप अपनी आधारभूत मान्यता से पीछे नहीं हटेंगे कि कुछ शुल्क दरें (कम से कम 15 या 20 फीसदी) उचित हैं। दूसरी बात, वह शायद विशिष्ट उत्पाद श्रेणियों या देशों पर विशेष दरें समायोजित करने के लिए तैयार हो जाएंगे ताकि आर्थिक या भू-राजनीतिक व्यवधान कम किए जा सकें। इसका मतलब है कि भारत को विशेष रूप से अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौता करने के अपने प्रयास जारी रखने चाहिए जिससे उसके निर्यात पर वर्तमान 50 फीसदी शुल्क कम हो जाएगा।

भारत को ट्रंप को उसी रूप में स्वीकार करना होगा जो वह हैं और उनका मिजाज बदलने की उम्मीद छोड़ देनी होगी। अच्छी बात यह है कि राष्ट्रपति स्वयं इस संबंध में सकारात्मक बयान दे चुके हैं। उन्होंने पिछले सप्ताह भारत में नए राजदूत को शपथ दिलवाई। उन्होंने कहा,‘हम भारत के साथ एक समझौते पर काम कर रहे हैं, जो पहले से बहुत अलग है।’ उन्होंने बाद में कहा कि ‘किसी बिंदु पर, हम शुल्क नीचे लाएंगे।’

हालांकि ये उत्साहजनक संकेत हैं लेकिन अगला कदम भारतीय वार्ताकारों को उठाना होगा। राष्ट्रपति को किसी न किसी प्रकार की स्पष्ट बढ़त देनी होगी जिसे वह उस समय अपने मतदाताओं के बीच भुना सकें जब उन्हें ऐसा करने की जरूरत पेश आएगी। भारतीय अधिकारी विशेष रूप से कृषि और दुग्ध उत्पादों पर किसी तरह का समझौता करने के लिए तैयार नहीं हैं मगर सच्चाई यह है कि इन क्षेत्रों में कुछ रियायतें अमेरिका को देनी होंगी। ऑस्ट्रेलिया के साथ पिछले समझौतों और न्यूजीलैंड के साथ चल रही चर्चा से यह स्पष्ट है कि कुछ ऐसे समझौते हैं जिन पर काम किया जा सकता है। भारत इस बिंदु पर सख्त रुख नहीं अपनाकर सकारात्मक परिणाम की उम्मीद नहीं कर सकता है।

भारतीय वार्ताकार इस तथ्य से खुशी का अनुभव कर सकते हैं कि व्यापार तनाव के कारण अभी तक आर्थिक संकेतक कमजोर नहीं हुए हैं। जैसा कि इसी पृष्ठ पर अजय शाह ने भी अपने स्तंभ में कहा है कि अप्रैल में लगे पहले चरण के ट्रंप के शुल्कों के बाद अमेरिकी आयात बास्केट में भारत की हिस्सेदारी वर्ष की शुरुआत की 3.7 फीसदी से घटकर जुलाई में 3.1 फीसदी रह गई। इतना तो प्रबंधित किया जा सकता है।

मगर यह आंकड़ा उस 50 फीसदी शुल्क प्रभाव नहीं दिखाता जिसकी घोषणा बाद में की गई थी। अमेरिकी बाजारों पर निर्भर क्षेत्रों से हाल में आईं खबरें अधिक चिंताजनक हैं। उदाहरण के लिए ‘द इकनॉमिक टाइम्स’ ने बताया है कि खिलौना निर्यातकों के अनुसार पिछले साल की तुलना में त्योहारों के दौरान ऑर्डर लगभग आधे कम हो गए हैं। 50 फीसदी शुल्क जितने लंबे समय तक जारी रहेगा उन श्रम-आधारित क्षेत्रों में उतना ही अधिक व्यवधान होगा जो अमेरिकी व्यापार पर निर्भर हैं।

सरकार के कदम स्पष्ट हैं। इसे अमेरिका के साथ बातचीत पर जल्द से जल्द आगे बढ़ना चाहिए। इसे निर्यातकों द्वारा अनुपालन और नियामक बोझ कम करने की मांगों के प्रति भी उत्तरदायी होना चाहिए। उदाहरण के लिए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश आंशिक रूप से वापस लेने का सिलसिला जारी रहना चाहिए और इसका लाभ अधिक से अधिक क्षेत्रों को भी मिलना चाहिए। अंत में, इसे निर्यातकों के लिए अतिरिक्त बाजार खोलने चाहिए। अमेरिकी व्यापार साझेदारी पर ध्यान देने के बीच अगले साल की शुरुआत से पहले यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौते को निष्कर्ष पर पहुंचाने से भी पीछे नहीं रहना चाहिए।

First Published - November 19, 2025 | 9:07 PM IST

संबंधित पोस्ट