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स्मार्ट शहरः प्रभाव दिखाने के लिए होंगे तैयार! विनिर्माण क्षेत्र में निवेश को मिलेगी नई रफ्तार

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण की हिस्सेदारी 16 से 18 प्रतिशत ही है, जो भारत की आजादी के 75वें वर्ष में 25 प्रतिशत के करीब पहुंचने की उम्मीदों से बहुत दूर है।

Last Updated- September 19, 2024 | 10:24 PM IST
Smart cities: Will be ready to show impact! Investment in manufacturing sector will get new momentum स्मार्ट शहरः प्रभाव दिखाने के लिए होंगे तैयार! विनिर्माण क्षेत्र में निवेश को मिलेगी नई रफ्तार

भारत के नीति निर्माताओं ने दशकों से विनिर्माण क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के भरपूर प्रयास कर रहे हैं। किंतु सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण की हिस्सेदारी 16 से 18 प्रतिशत ही है, जो भारत की आजादी के 75वें वर्ष में 25 प्रतिशत के करीब पहुंचने की उम्मीदों से बहुत दूर है। हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स, चिप निर्माण, बैटरियों आदि में बड़े पैमाने पर निवेश की घोषणाओं ने ध्यान आकृष्ट किया है। लेकिन कुल मिलाकर विनिर्माण निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता नीतिगत चुनौती बनी हुई है।

पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने पीएलआई (उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन) योजना, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति, गति शक्ति, क्लस्टर विकास, औद्योगिक गलियारे, कारोबारी सुगमता और आने वाले निवेश के लिए पूंजी सब्सिडी जैसे कई कदम आजमाए हैं। 12 औद्योगिक स्मार्ट शहरों के विकास की घोषणा को इन कोशिशों को दम देने की बड़ी पहल माना जा रहा है। 27 अगस्त को मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने 10 राज्यों के छह प्रमुख औद्योगिक गलियारों में 12 औद्योगिक स्मार्ट शहर विकसित करने के लिए 28,602 करोड़ रुपये के सार्वजनिक निवेश को मंजूरी दी है। ये शहर इन स्थानों पर होंगे:

  • अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारे पर पांच शहर: (पंजाब में राजपुरा-पटियाला, उत्तराखंड में खुरपिया, उत्तर प्रदेश में आगरा तथा प्रयागराज और बिहार में गया)
  • दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे पर दो शहर: (राजस्थान में जोधपुर-पाली और महाराष्ट्र में दिघी)
  • विशाखापत्तनम-चेन्नई, हैदराबाद-बेंगलूरु, हैदराबाद-नागपुर और चेन्नई-बेंगलूरु के औद्योगिक गलियारों पर चार शहर (आंध्र प्रदेश में कोप्पार्थी और ओरवाकल, तेलंगाना में जहीराबाद और केरल में पलक्कड़)

आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण एक और शहर का नाम अभी तक जाहिर नहीं किया गया है।

इस तरह के प्रयास निस्संदेह संकेत देते हैं कि सरकार विनिर्माण में निवेश को बढ़ावा देने के निरंतर और ठोस प्रयास कर रही है। मगर इस बात पर जोर देने की आवश्यकता है कि औद्योगिक स्थानों की उपलब्धता जरूरी तो है, लेकिन यही इकलौती शर्त नहीं है। इसलिए और भी अधिक सक्षम तंत्र उपलब्ध कराने के लिए पहले से मौजूद स्थानों के बजाय इन 12 नए स्थानों को ज्यादा प्रभाव दिखाना होगा। अधिक कारगर दिखने के लिए सात सुझाव दिए गए हैं।

प्लग ऐंड प्ले

ऐसा प्लग ऐंड प्ले माहौल होना चाहिए, जिसमें कारोबारी सुगमता के लिए जरूरी सभी प्रक्रियागत रियायतें हर हाल में मिलें। प्रत्येक स्थान पर सुविधा केंद्र अवश्य बनें,जो उन सुधारों को प्रत्यक्ष करके दिखाएं, जो नई दिल्ली में सत्ता के केंद्र से घोषित किए जाते हैं।

सामाजिक बुनियादी ढांचा

औद्योगिक क्षेत्रों में कर्मचारियों और उनके परिवारों की ‘सामाजिक’ आवश्यकताएं लंबे समय से उपेक्षित रही हैं। स्कूल, अस्पताल, पार्क से जुड़ी जमीन, रिटेल, घूमने की जगह और मनोरंजन सुविधाएं तैयार करने की एक समानांतर योजना को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। साथ ही इसे विकास के एजेंडा की योजना का अभिन्न हिस्सा बनाया जाए।

स्मार्ट यूटिलिटीज

21वीं सदी के मध्य में बने ‘स्मार्ट’ औद्योगिक शहरों में स्मार्ट यूटिलिटीज भी अवश्य शामिल होनी चाहिए। इनमें तरल और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के साथ-साथ हरित ऊर्जा और उपलब्ध आईसीटी प्रौद्योगिकियों की पूरी व्यवस्था शामिल है।

एकीकरण और मिलान

इसका अर्थ है कि राष्ट्रीय एकल खिड़की व्यवस्था, एक जिला एक उत्पाद, सागरमाला, अमृत, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत, जल शक्ति, आवास योजना, कौशल विकास केंद्र, संशोधित विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) योजना, चैलेंज फंड सिटीज और अन्य ऊर्जा, दूरसंचार तथा सार्वजनिक परिवहन परियोजनाओं के बीच सहज रूप से निर्बाध तालमेल बैठना चाहिए। कई माध्यमों वाली योजनाओं और अंतर्देशीय कंटेनर डिपो को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए।

अतीत की योजनाओं से सबक

दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा विकास निगम (डीएमआईसीडीसी) ने पहली खेप में जिन सात औद्योगिक स्थलों का काम शुरू किया था, उनमें से धोलेरा और शेंद्रा-बिदकिन अभी तक पूरी क्षमता के साथ तैयार नहीं हो पाए हैं। इन परियोजनाओं को भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास, बुनियादी ढांचे के विकास में देर के साथ ही कई हितधारकों के बीच तालमेल की कमी से जूझना पड़ा है।

को-डेवलपर से निजी पूंजी

करीब 28,602 करोड़ रुपये के केंद्रीय आवंटन में से हर स्थान के लिए औसत आवंटन करीब 2,400 करोड़ रुपये बैठता है। माना जाता है कि राज्य सरकारें जमीन मुहैया कराएंगी और अपने हिस्से की पूंजी भी देंगी। लेकिन यह सब मिलकर बाहरी विकास के लिए पूंजी ही जुटा पाएंगे।

ऐसे में सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) की रचनात्मक योजनाएं बनानी होंगी ताकि करोड़ों में निजी पूंजी आए और सामाजिक बुनियादी ढांचा विकास और परिचालन एवं प्रबंधन में मदद भी मिले। कुछ देश को-डेवलपर बनने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जिस पर गंभीरता से काम होना चाहिए।

तटीय आर्थिक क्षेत्र (सीईजेड)

भारत में निर्यात के लिहाज से विनिर्माण में होड़ को बढ़ाने के लिए सीईजेड को अभी तक ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई है। वर्ष 2015 में नीति आयोग के तत्कालीन प्रमुख अरविंद पानगड़िया ने चीन के उदाहरणों से प्रेरणा लेते हुए बड़े सीईजेड स्थापित करने के विचार की वकालत की, जिन्हें मुक्त व्यापार क्षेत्रों के रूप में वैसे ही तैयार किया जाए, जैसे वित्तीय क्षेत्र के लिए अहमदाबाद में गिफ्ट सिटी है। इन सीईजेड में नियामकीय झंझट नहीं होते और श्रम के अधिक इस्तेमाल वाले मूल्यवर्द्धित निर्यात में भारत के बड़े कदम के लिए यह सही आधार मुहैया कराते। इस सुझाव को आगे बढ़ाने में अभी देर नहीं हुई है।

भारत विशेष क्षेत्र तैयार कर विनिर्माण निवेश आकर्षित करने की कोशिश लंबे समय से करता रहा है। समाजवादी दौर में भी लगभग हर राज्य में औद्योगिक क्षेत्र तैयार हुए थे, जिनमें से कई आज जीर्ण-शीर्ण स्थिति में हैं। इसके बाद क्लस्टर विकास की कोशिश हुई और स्मार्ट सिटी के लिए पहल की गई।

निजी क्षेत्र इसमें कदम रखने के लिए तैयार था और महिंद्रा तथा श्रीसिटी इंडस्ट्रियल एनक्लेव उल्लेखनीय सफलता की मिसाल बने हुए हैं। डीएमआईसीडीसी ने सात नए स्थानों के लिए कोशिश की। सेज से जुड़ी गतिविधियां काफी सुर्खियों में रहीं, लेकिन दुर्भाग्य से इसमें चूक दिखने लगी और डेवलपमेंट ऑफ एंटरप्राइज ऐंड सर्विस हब्स (देश) बिल, 2023 की पहल हुई। अब हमारे पास ये 12 औद्योगिक स्मार्ट शहर हैं।

कुल मिलाकर इन 12 औद्योगिक स्मार्ट शहरों को केंद्र और राज्य सरकारों से प्राथमिकता मिलनी चाहिए। लेकिन इन्हें पहले के प्रयासों की तुलना में अलग तरीके से देखा जाना चाहिए। इन्हें दमखम के साथ अधिक प्रभाव दिखाने का प्रयास करना चाहिए।

(लेखक बुनियादी ढांचा विशेषज्ञ हैं। वह द इन्फ्राविजन फाउंडेशन (टीआईएफ) के संस्थापक एवं प्रबंध न्यासी हैं और सीआईआई की राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा परिषद के चेयरमैन भी हैं। लेख में टीआईएफ के सीईओ जगन शाह का भी योगदान रहा)

First Published - September 19, 2024 | 10:21 PM IST

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