वर्ष 2022 को नकदी की आसान उपलब्धता की समाप्ति वाला वर्ष माना जा सकता है। कम से कम अब तक तो ऐसा ही है। यही वजह है कि आने वाला वर्ष ऊंची ब्याज दरों और धीमी वैश्विक वृद्धि वाला होगा। भारत में भी विभिन्न चैनलों के जरिये आर्थिक नतीजों पर इसका असर पड़ेगा। थोड़ी बहुत अनिच्छा के बाद बड़े केंद्रीय बैंक अंतत: एक साथ मिलकर मुद्रास्फीति का मुकाबला कर रहे हैं क्योंकि यह स्पष्ट हो चुका है कि मुद्रास्फीति में इजाफा अस्थायी नहीं था। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में दो अंकों की या लगभग दो अंकों की मुद्रास्फीति दर के कारण मुद्रास्फीति के अनुमानों के अनियंत्रित होने का खतरा है जिससे मूल्य स्थिरता हासिल करने की लागत में काफी इजाफा संभव है।
विकसित देशों में उच्च मुद्रास्फीति आंशिक रूप से इस वजह से भी है क्योंकि महामारी के दौरान अतिरिक्त मौद्रिक और राजकोषीय प्रोत्साहन उपलब्ध कराया गया। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जो उथलपुथल मची उसने भी मूल्यों पर दबाव बढ़ा दिया है। चीन में कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण आपूर्ति श्रृंखला के निकट भविष्य में सामान्य होने की संभावना नहीं है। चीन में मंदी आ रही है जबकि हालिया दशकों में वह वैश्विक वृद्धि का अहम कारक रहा है। जाहिर है यह मंदी समग्र वैश्विक वृद्धि को प्रभावित करेगी।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक के अक्टूबर संस्करण में अनुमान जताया था कि 2023 में वैश्विक वृद्धि दर घटकर 2.7 फीसदी रह जाएगी जबकि 2021 में यह 6 फीसदी थी। विकसित विश्व का एक बड़ा हिस्सा 2023 में मंदी का शिकार हो सकता है। काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि मुद्रास्फीति पर कितनी जल्दी नियंत्रण हासिल किया जाता है। धीमी होती वैश्विक वृद्धि तथा विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ऊंची ब्याज दरें बड़ी तादाद में विकासशील देशों को प्रभावित कर रही हैं। आईएमएफ द्वारा संकटग्रस्त देशों को दिए जाने वाले कर्ज ने 2022 में रिकॉर्ड ऊंचाई छू ली। चूंकि निकट भविष्य में हालात सुधरते नहीं दिख रहे हैं इसलिए और अधिक देशों को मदद की आवश्यकता होगी।
इस संदर्भ में भारत की स्थिति मजबूत है लेकिन बाहरी क्षेत्र की चुनौतियां 2023 में भी जारी रहने की उम्मीद है। पेशेवर अनुमान लगाने वालों ने भारतीय रिजर्व बैंक के लिए अनुमान लगाया है कि चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 3.4 फीसदी के बराबर हो जाएगा। हालांकि अनुमान है कि 2023-24 में यह घटकर 2.7 फीसदी रह जाएगी लेकिन वैश्विक अनिश्चितता के कारण हालात बदल भी सकते हैं। निर्यात और पूंजी प्रवाह दोनों प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि वैश्विक मांग में कमी आई है और विकसित देशों, खासकर अमेरिका में ब्याज दरें ऊंची हैं।
इन हालात में भारतीय नीति निर्माताओं के लिए वृद्धि पर जोर देना एक चुनौती होगी। रिजर्व बैंक ने जहां चालू चक्र में नीतिगत दरों में 225 आधार अंकों का इजाफा किया है, वहीं और इजाफे की उम्मीद है। चूंकि वह मुद्रास्फीति का लक्ष्य हासिल करने में चूक गया है इसलिए उच्च दरों को तब तक बरकरार रखना होगा जब तक कि मुद्रास्फीति स्थायी रूप से 4 फीसदी के लक्ष्य के करीब नहीं हो जाती।
तुलनात्मक रूप से ऊंची ब्याज दरें आर्थिक गतिविधियों को बाधित करती हैं। हालांकि आईएमएफ का अनुमान है कि 2023-24 में वृद्धि दर घटकर 6.1 फीसदी रह जाएगी जबकि इस वर्ष यह 6.8 फीसदी है। हालांकि वास्तविक परिणाम इससे भी कम रह सकता है। राजकोषीय मोर्चे पर देखें तो एक ओर जहां सरकार चालू वर्ष में घाटे का लक्ष्य हासिल करने को लेकर आश्वस्त है, वहीं यह देखना होगा कि सरकार अगले वर्ष सुदृढ़ीकरण के पथ पर किस प्रकार बढ़ती है।
गत सप्ताह सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मुफ्त खाद्यान्न मुहैया कराने का जो निर्णय लिया उसने भी इस विश्वास को क्षति पहुंचाई है। चूंकि 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले 2023 में नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं इसलिए यह जोखिम भी है राजकोषीय जवाबदेही की चिंता कहीं पीछे न छूट जाए। सार्वजनिक ऋण और बजट घाटे के स्तर को देखते हुए इसके चलते दीर्घावधि में वृद्धि और वृहद स्थिरता के लिए जोखिम उत्पन्न हो सकता है।