कोयला मंत्रालय ने कोयला और लिग्नाइट गैसीकरण परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता योजना के तहत ‘स्वदेशी तकनीक’ की परिभाषा को व्यापक कर दिया है। इसके तहत यदि विदेशी सहयोग से भारतीय परिस्थितियों में महत्त्वपूर्ण नवाचार और व्यावसायिक व्यवहार्यता के तहत अपनाई जाने वाली या अनुकूल तकनीकों को इस व्यापक परिभाषा में शामिल किया गया है।
मंत्रालय ने परियोजनाओं के लिए प्रस्तावों के अनुरोध (आरएफपी) पर उद्योग के प्रश्नों के जवाब में कहा कि पेटेंट या बौद्धिक संपदा सहित भारत में विकसित, स्वामित्व और पर्याप्त रूप से सिद्ध तकनीक को स्वदेशी तकनीक कहा जाएगा। इसके अलावा तकनीकी सहयोग या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से अनुकूलित की गई तकनीकों को भी स्वदेशी माना जाएगा, बशर्ते वे महत्त्वपूर्ण विकास, नवाचार का प्रदर्शन करें और उसके परिणाम तकनीक भारतीय परिस्थितियों में स्वतंत्र व्यवसायीकरण में सक्षम हो। ये स्पष्टीकरण 30 सितंबर को जारी किए गए आरएफपी के बाद 10 अक्टूबर, 2025 को आयोजित पूर्व-बोली सम्मेलन के बाद जारी किए गए।
इसका उद्देश्य भारत में कोयला और लिग्नाइट गैसीकरण परियोजनाओं में निवेश में तेजी लाना है। मंत्रालय ने आवेदकों को आवेदन करने के बाद ‘व्यावसायिक रूप से स्केलेबल प्रदर्शन परियोजना’ व ‘छोटे पैमाने की उत्पाद-आधारित परियोजना’ श्रेणियों के बीच स्थानांतरित करने की अनुमति दी है, बशर्ते वे नई श्रेणी की पात्रता और योग्यता मानदंडों को पूरा करते रहें।
सरकार ने भूमिगत कोयला गैसीकरण परियोजनाओं को सिद्ध स्वदेशी तकनीक की आवश्यकता से छूट दी है। सरकार ने यह स्वीकारा कि दुनिया भर में ज्यादातर यूसीजी तकनीकें अभी भी पायलट पैमाने पर हैं। बहरहाल, ऐसी परियोजनाओं में न्यूनतम 100 करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय शामिल होना चाहिए। इसके साथ ही मंत्रालय ने वित्तीय पात्रता आवश्यकता में छूट देने के उद्योग के अनुरोधों को खारिज कर दिया। इसमें अनिवार्य है कि बोलीदाता के पास परियोजना के लिए कुल इक्विटी प्रतिबद्धता का न्यूनतम 30 प्रतिशत का नेट वर्थ होना चाहिए।