भारत और अमेरिका के रिश्तों पर देसी राजनीति में हमेशा से ही गरमागरम बहस होती रही है। अमेरिका ने 1956 में भारत की गुटनिरपेक्षता को ‘अनैतिक और बेवकूफाना’ बताया था, जिसके बाद पूरी संसद पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ खड़ी हो गई थी। इंदिरा गांधी ने 1971 में तत्कालीन सोवियत संघ के साथ शांति, मैत्री तथा सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसके साथ यह बात भी साफ हो गई कि भारत सोवियत संघ के पाले में खड़ा है। उस समय अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की ओर हो रहा था। इस संधि को इंदिरा गांधी की चाल भी कहा जाता है, जो उन्होंने 1969 में कांग्रेस पार्टी के विभाजन के बाद अपने नेतृत्व को मिल रही चुनौती खत्म करने के इरादे से चली थी।
उन्होंने अमेरिका को ‘विदेशी ताकत’ करार देते हुए उसके प्रति शत्रुता की धारणा गढ़ी और उसे हवा भी दी। बाद में हुए चुनावों में यह राजनीतिक जुमला बन गया, जिसका जमकर इस्तेमाल किया गया। भारत और अमेरिका के बीच 2008 में जब असैन्य परमाणु समझौता हुआ तो मनमोहन सिंह सरकार की तीखी आलोचना के बीच वामपंथी पार्टियों ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिरते-गिरते बची। उनका कहना था कि ‘इस समझौते के जरिये भारत की विदेश नीति की संप्रभुता के साथ समझौता किया गया है’।
फिर भी अमेरिका से हथकड़ियां और बेड़ियां पहनाकर भारत भेजे गए अपमानित और हताश भारतीयों की तस्वीरों ने भी देश की राजनीति में कोई हलचल नहीं मचाई। आखिर क्यों?
नितिन पटेल के सितारे आज गर्दिश में हैं मगर उनका नाम गुजरात की राजनीति में अनजाना नहीं है। वह छह बार विधायक रह चुके हैं और 2016 से 2017 तथा फिर 2017 से 2021 तक राज्य के उप मुख्यमंत्री रहे। पिछले 20 साल में उन्होंने वित्त तथा राजस्व समेत कई मंत्रालय भी संभाले हैं। उन्होंने 2022 में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और मेहसाणा लोकसभा सीट से दावेदारी ठोकने के बाद पिछले साल बिना कोई कारण बताए अचानक दौड़ से बाहर चले गए।
इसीलिए जब पटेल ने संवाददाताओं को बुलाकर राज्य सरकार से हथकड़ी और बेड़ियों में अमेरिका से वापस भेजे गए लोगों का अधिक ध्यान रखने की बात कही तो लोगों ने उन्हें गौर से सुना। अमेरिका में अवैध रूप से रहने वाले भारतीयों में सबसे ज्यादा तादाद गुजरातियों की ही है और उनमें भी काफी लोग मेहसाणा से आते हैं, जहां पटेल का अच्छा-खासा रसूख है। पटेल ने राज्य की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की आलोचना करते हुए जब कहा, ‘मैं राज्य सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह करता हूं कि उन लोगों को परेशान नहीं किया जाए’ तो असल में वह अपने राजनीतिक करियर को नई सांस देने की कोशिश भी कर रहे थे। राज्य सरकार ने जवाब में ‘अवैध’ बांग्लादेशी प्रवासियों को धर पकड़ा और शिविरों में रख दिया, जहां से उन्हें बांग्लादेश भेज दिया जाएगा।
अमेरिका से हुए प्रत्यर्पण पर राजनीतिक खेमे की प्रतिक्रिया दिलचस्प है। गुजरात समेत पूरे भारत में ऐसे बहुत लोग हैं, जिन्हें उन लोगों से कोई भी सहानुभूति नहीं है और जिन्हें लगता है कि उनके साथ सही हुआ है। उदाहरण के लिए हरियाणा की राजनीति में खलबली मचाने के आदी मंत्री अनिल विज ने कहा, ‘हर देश को अवैध रूप से रहने वालों को वापस भेजने का अधिकार है और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बिल्कुल सही किया है।’ विज सात बार के भाजपा विधायक हैं और राज्य के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की आलोचना करने के कारण उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया गया है। दिलचस्प है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की राय भी विज की तरह ही थी। खट्टर ने कहा कि किसी भी देश में अवैध रूप से घुसने वाले ‘अपराधी’ होते हैं।
पड़ोसी राज्य पंजाब में वापस भेजे गए लोगों का पहला जत्था सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी सरकार के प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल से हवाई अड्डे पर मिला। उसके बाद से धालीवाल और मुख्यमंत्री भगवंत मान को हवाई अड्डा जाने से रोक दिया गया है। मान खीझकर पूछ रहे हैं कि वापस आ रहे लोगों को पंजाब के हवाई अड्डों पर ही क्यों उतारा जा रहा है। मान कहते हैं, ‘दिल्ली के बजाय आपने अमृतसर क्यों चुना? यह पंजाब और पंजाबियों को बदनाम करने के लिए किया गया।’ साथ ही वह यह भी पूछते हैं कि अगर ये लोग निर्दोष हैं और अपराधी नहीं हैं तो हरियाणा सरकार उन्हें पुलिस की गाड़ियों में आगे क्यों भेज रही है। गुजरात का विपक्ष इस पर प्रतिक्रिया जताने में ढीला दिखा। कांग्रेस को पिछले हफ्ते तब सुधि आई, जब अमेरिका से अवैध प्रवासियों के तीन जत्थे देश आ चुके थे। पार्टी के विधायक काले कपड़े पहनकर और खुद को बेड़ियों में जकड़कर विधानसभा के बाहर खड़े हो गए।
इस तरह वे लोगों को याद दिलाना चाहते थे कि सरकार को जिन्होंने वोट दिया उन्हीं के साथ किस तरह विश्वासघात किया गया है। यह बात अलग है कि विधानसभा के बाहर लोग उन पर ज्यादा ध्यान ही नहीं दे रहे थे। तेलंगाना में कांग्रेस कार्यकर्ता पार्टी के हैदराबाद दफ्तर के बाहर जमा हो गए। उनमें से कुछ हथकड़ी पहने थे और बाकी के हाथ में ‘मनुष्य हैं अपराधी नहीं’ लिखी तख्तियां थीं।
कई जत्थों की वापसी हो जाने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूछा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ अपनी दोस्ती का फायदा उठाकर यह पक्का क्यों नहीं कर रहे कि वापस भेजे जा रहे लोगों के साथ गरिमा भरा व्यवहार हो। उद्धव ठाकरे की शिव सेना के संजय राउत ने सीधे कदम उठाने की हिमायत की। उन्होंने कहा, ‘अमेरिकी जहाजों (जिन पर हथकड़ियों में लोग लाए गए थे) को उड़ने या उतरने ही नहीं दिया जाए।’संसद में भी इस मसले पर गतिरोध दिखा और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बयान भी दिया।
प्रत्यर्पण का यह मामला थकी और उबाऊ राजनीति को जगाने वाले पटाखे का काम कर सकता था मगर लोग इसके विरोध में सड़कों पर ही नहीं आए। उसके बजाय राजनेता अपनी ही पार्टी के नेतृत्व से बदला लेने के इसका इस्तेमाल कर रहे हैं या विपक्षी नेता इसके बहाने सरकार की आलोचना कर रहे हैं।
आम चर्चा का लब्बोलुआब है: इन लोगों ने भारत में मिल रहे मौके छोड़ दिए और विदेश में देश की छवि खराब की। सरकार ने भी इस मसले का इस्तेमाल कर राजनीतिक पहल कर दी है, जिससे अमेरिका की तर्ज पर वह भी भारत में बैठे अवैध घुसपैठियों को उनके देश भेज सकती है।