पिछले दिनों जब मैं अपने घर की बालकनी से सुदूर रायगड की पहाड़ियों को देख रहा था तो एक सवाल मेरे दिलो दिमाग में घुमड़ने लगा: आखिर कौन हैं वे सच्चे नायक जिन्होंने इंटरनेट और वेब क्रांति को जन्म दिया, वही क्रांति जिसने जीवन के तमाम क्षेत्रों में मानव जीवन को इतना सरल-सहज बना दिया है। जाहिर है मुझे इसका कोई साफ जवाब नहीं सूझा इसलिए मैंने सोचा कि मैं हाल ही में सुर्खियों में रहे कृत्रिम मेधा का इस्तेमाल करने वाले टूल चैटजीपीटी से इसके बारे में पूछूं।
चैटजीपीटी ने इसका उत्तर भी झटपट दे दिया, ‘टिम बर्नर्स ली, स्टीव जॉब्स, बिल गेट्स, मार्क जुकरबर्ग, लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन, ईलॉन मस्क, जेफ बेजोस…,’। मेरे मन में आया कि अपने फोन को जमीन पर दे मारूं क्योंकि चैटजीपीटी के ये जवाब भी मेरे फोन पर ही आए थे। क्या टिम बर्नर्स ली के अलावा अन्य नामों के लिए चैटजीपीटी भी वॉल स्ट्रीट/ दलाल स्ट्रीट जैसी चीजों में उलझ गया जो पैसे कमाने वालों का महिमा मंडन करते हैं, न कि सच्चे आविष्कारकों का?
मैंने अपने मन में ही एक नोट तैयार किया कि जितनी जल्दी संभव होगा मैं एक विकिपीडिया पेज बनाऊंगा और उसमें तकनीकी विकास की इतिहास गाथा लिखूंगा जिसके परिणामस्वरूप वेब क्रांति का जन्म हुआ। इसकी वजह यह है कि ऐसा करने से चैटजीपीटी को भी सही जवाब पाने में मदद मिलेगी क्योंकि वह अक्सर वहीं से अपने जवाब तय करता है। इस बीच आइए वास्तविक सच के बारे में जानते हैं या कम से कम वह जानते हैं जिसे मैं सवाल का सही जवाब मानता हूं।
वर्ल्ड वाइड वेब का विचार यूरोपियन काउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सीईआरएन) जिनेवा में उत्पन्न हुआ था। सीईआरएन भौतिकी में शोध पर केंद्रित है। टिम बर्नर्स ली एक ब्रिटिश नागरिक थे जो लंदन में पैदा हुए थे और ऑक्सफर्ड से भौतिकी में स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे। उन्हें सीईआरएन में रोजगार मिला था।
वहीं पर काम करते हुए उनके मन में विश्वविद्यालयों के लिए एक ऐसी प्रणाली विकसित करने का विचार आया जहां वे कंप्यूटर आधारित जानकारी साझा करने की व्यवस्था के साथ अपनी जानकारियों का आदान प्रदान कर सकते थे। इसे सभी के इस्तेमाल के लिए नि:शुल्क उपलब्ध होना था। अब जरा इस बात पर विचार कीजिए: वेब का आविष्कार स्विट्जरलैंड में एक ब्रिटिश व्यक्ति ने किया था, न किसी बड़ी अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनी ने।
अब विकिपीडिया पर एक नजर डालते हैं। यह वह जगह है जहां मुझ समेत दुनिया भर के करीब 5.5 करोड़ लोग दिन में कई बार जाते हैं और जरूरी जानकारियां हासिल करते हैं। विकिपीडिया एक गैर लाभकारी प्रतिष्ठान है और उसके संस्थापक तथा मुख्य विचारक जिमी वेल्स भले ही अमेरिका के अल्बाना में पैदा हुए हैं लेकिन वह इंग्लैंड में रहते हैं और ब्रिटिश नागरिक हैं। यानी विकिपीडिया नामक यह मूल्यवान उपक्रम भी एक जुनूनी अन्वेषक के दिमाग की उपज है, न कि किसी बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनी की।
अब बात करते हैं दुनिया के अगले सबसे बड़े नवाचार की। बल्कि कहें तो बीते 500 सालों का सबसे बड़ा नवाचार यानी कृत्रिम मेधा। ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब इस क्षेत्र में किसी नवाचार की खबर सामने न आती हो। फिर चाहे मामला शेयर कारोबार का हो, चिकित्सा का या स्वचालित कारों का।
ऐसी घोषणाओं के साथ अक्सर अरबों डॉलर की उन यूनिकॉर्न कंपनियों का जिक्र होता है जिन्होंने इस दिशा में कुछ किया होता है। कुछ ही लोगों को उस व्यक्ति के बारे में पता होगा जिसके विचारों के आधार पर मशीन लर्निंग की दिशा में यह प्रगति हुई है। वह व्यक्ति हैं विंबलडन में जन्मे ज्योफ्रे हिंटन। उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल की थी और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से पीएचडी की थी।
उन्होंने सबसे पहले विचार किया कि इंसानी दिमाग जिस तरह आंकड़ों का प्रसंस्करण करता है उसी शैली में गणितीय तकनीक को भी अपनाया जा सकता है। अपने नवाचार के बाद वह टोरंटो विश्वविद्यालय चले गए जहां उनकी मुलाकात फ्रांस के योशुआ बेंजियो और यान लेकन से हुई।
उन्होंने साथ मिलकर 2017 में अपने विचारों का कृत्रिम मेधा की दिशा में क्रियान्वयन आरंभ किया। उन्होंने कनाडा को इसलिए चुना कि केवल कनाडा में ही उन्हें इस प्रयोग के लिए फंड मिल रहा था बाकी जगह इसे मूर्खतापूर्ण विचार माना जा रहा था।
तीन सबसे महत्त्वपूर्ण तकनीकी आविष्कारों वर्ल्ड वाइड वेब, विकिपीडिया और कृत्रिम मेधा को उन लोगों ने बनाया जिनके भीतर दूर-दूर तक ऐसी कोई आकांक्षा नहीं थी कि वे अपने आविष्कार से अरबों रुपये कमाएंगे। वे जिन देशों में पैदा हुए और पले-बढ़े, वे भी कभी उन्हें लेकर बड़े-बड़े दावे नहीं करते।
अगर उपरोक्त बातें सच हैं तो अमेरिका ने वेब प्रौद्योगिकी को तैयार करने वाले देश की प्रतिष्ठा कैसे हासिल की और वह गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एमेजॉन और फेसबुक का घर कैसे बना? यह बात हमें दूसरे पहलू की ओर ले जाता है: नवाचार को बढ़ावा देने में अमेरिकी रक्षा प्रतिष्ठान की भूमिका।
एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर तक आंकड़ों को पहुंचाने की जरूरत ने उस बुनियाद को तैयार किया जिस पर इंटरनेट आधारित है। तकनीकी भाषा में इसे टीसीपी/आईपी कहा जाता है और इनका आविष्कार यूनाइटेड स्टेट्स डिफेंस एडवांस्ड प्रोजेक्ट्स एजेंसी (डीएआरपीए) ने सन 1970 के दशक में किया था। ऐसे में हम आसानी से कह सकते हैं कि इंटरनेट अमेरिकी रक्षा बलों का आविष्कार है।
फिलहाल यानी 2023 में दुनिया अगले बड़े तकनीकी आविष्कार को अपनाने को तैयार नजर आ रही है और वह है क्लाउड क्रांति। यह एक ऐसी दुनिया है जहां भारी भरकम गणनाएं हमारे पर्सनल कंप्यूटर पर नहीं की जाएंगी, न ही इन्हें कंपनियों के कंप्यूटर अंजाम देंगे बल्कि यह काम दूरदराज स्थित भारी भरकम कंप्यूटरों पर किया जाएगा। इसे पूरा करने वालों को क्लाउड सेवा प्रदाता कहा जाएगा। सवाल यह है कि किन देशों के कौन से आविष्कार करने वाले इस क्रांति का नेतृत्व करेंगे?
(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं)