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राजस्थानः कांग्रेस में थम नहीं रही अशांति

अगर पायलट ने फिर से बगावत का झंडा बुलंद किया है तो ऐसा इसलिए कि उन्हें लगता है कि उन्हें न्याय नहीं मिला है।

Last Updated- August 24, 2023 | 6:17 PM IST
Rajasthan
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सचिन पायलट ने अपनी ही पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार से जवाबदेही की मांग करते हुए कहा है कि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार निष्क्रिय है। हालांकि पिछले साढ़े चार वर्षों में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में उथल-पुथल की स्थिति बनी रही है। राज्य में कांग्रेस के शीर्ष नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के गहलोत शासन के खिलाफ किए गए ताजा हमले ने मुख्यमंत्री के समर्थकों को नाराज और भ्रमित कर दिया है।

पायलट 11 अप्रैल को महात्मा गांधी की तस्वीर वाले एक बड़े बैनर के नीचे भूख हड़ताल पर बैठे थे। बैनर में लिखा गया था कि वह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार में भ्रष्टाचार और घोटालों पर सरकार (उनकी अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली) की निष्क्रियता का विरोध कर रहे हैं। उनके समर्थकों ने अपनी आवाज बुलंद करते हुए कहा कि पायलट को मुख्यमंत्री बनाया जाए, लेकिन उस धरना-प्रदर्शन में उनके किसी भी वफादार विधायक को नहीं देखा गया।

उन्होंने इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी के खिलाफ भी जांच शुरू करने की मांग की जिन पर काले धन को वैध बनाने और कर चोरी सहित वित्तीय अनियमितताओं के आरोप हैं। पायलट की मांगों में उन आरोपों की जांच की बात भी शामिल थी कि राजे सरकार ने सारी प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए बोली लगाने वालों को 600 से अधिक खदानें आवंटित कर दी थीं।

इस मामले को राजस्थान उच्च न्यायालय में भी ले जाया गया जिसने याचिका खारिज कर दी थी। राजे सरकार ने नए सिरे से नीलामी का आयोजन फिर से करने के साथ ही पहले की बोली रद्द कर दी। राज्य सरकार के एक कनिष्ठ कर्मचारी को गिरफ्तार भी किया गया था।

उस समय कांग्रेस इस मामले को उच्चतम न्यायालय में ले गई, जिसने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। एक तरह से अदालत ने इस मामले को सुलझा लिया है। ऐसे में राज्य में कांग्रेस के नेता हैरान हैं कि अब किस तरह की जांच की जा सकती है।

जहां तक ललित मोदी का सवाल है, मुंबई की एक विशेष अदालत सहित केंद्र सरकार की आधा दर्जन एजेंसियों ने विदेशी मुद्रा उल्लंघन के आरोपों में उनकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया है। गहलोत सरकार के लिए इस मामले में कुछ कदम उठाने के लिए ज्यादा गुंजाइश भी नहीं है। हालांकि पायलट को ऐसा नहीं लगता। उन्होंने कहा, ‘चुनाव में छह से सात महीने बचे हैं, ऐसे में विरोधी यह भ्रम फैला सकते हैं कि कुछ मिलीभगत है।’

उन्होंने कहा कि इसीलिए जल्द कार्रवाई करनी होगी ताकि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को लगे कि हमारी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है।

उनके समर्थक और पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी ने कहा, ‘मैं पायलट के आंदोलन का समर्थन करने वाले पहले लोगों में से एक था। अगर हम अपने वादे पूरे नहीं करेंगे तो मतदाता हम पर कैसे विश्वास करेंगे? भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने में कुछ भी गलत नहीं है। जांच का वादा करने के बावजूद, सरकार ने कुछ नहीं किया है। सरकार किसके दबाव में काम कर रही है?’

वहीं दूसरी तरफ पार्टी के आदेश का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री के समर्थकों ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। लेकिन महासचिव जयराम रमेश की टिप्पणी से स्पष्ट है कि गहलोत के पीछे केंद्रीय पार्टी का ही हाथ है। उन्होंने पिछले हफ्ते कहा था, ‘अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री के रूप में राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने बड़ी संख्या में योजनाएं लागू करने के साथ ही कई नई पहल की है जिससे लोग बेहद प्रभावित हुए हैं। इसकी वजह से हमारे देश में राज्य, शासन में नेतृत्वकर्ता की स्थिति में आ गया है। इस साल के अंत में, कांग्रेस इन ऐतिहासिक उपलब्धियों और हमारे संगठन के सामूहिक प्रयासों के बल पर लोगों से नए सिरे से जनादेश मांगेगी।’

वहीं कांग्रेसी दो सवाल पूछ रहे हैं, अब क्यों, और अब क्या? पहले के जवाब के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के हाथों गहलोत सरकार को मुंह की खानी पड़ी थी जिसके बाद वसुंधरा राजे सत्ता में आईं थी। उस वक्त कांग्रेस सिर्फ 21 सीट ही जीत सकी थी जो इतिहास में उसकी सबसे कम सीटें हैं। वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने शानदार जीत दर्ज करते हुए 163 सीट पा लीं जो अब तक की सबसे अधिक सीटें हैं।

वर्ष 2014 में पार्टी का मनोबल बढ़ाने के मकसद से पायलट को प्रदेश में पार्टी प्रमुख बनाया गया था। उन्होंने 2018 के चुनाव अभियान का नेतृत्व किया, जिसमें कांग्रेस को जीत मिली।

इस जीत का इनाम उन्हें उप मुख्यमंत्री पद के रूप में मिला। संभव है कि उन्हें ऐसा लगा हो कि वह और अधिक के हकदार है। उनके समर्थकों को यह मौका 2020 में मिला, जब उन्हें लगा कि उन्हें भाजपा से कुछ आश्वासन मिल सकता है। उसी दौरान पायलट और उनके समर्थक मानेसर जाकर इकट्ठा हुए और मुख्यमंत्री बदलने की मांग करने लगे।

हालांकि वह चुनौती उस वक्त दबा दी गई लेकिन यह चुनौती फिर से सामने आई जब गहलोत को कांग्रेस के अध्यक्ष पद की पेशकश की गई, लेकिन उसके साथ यह शर्त जुड़ी थी कि उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना होगा। यह बात राहुल गांधी ने उदयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर में साफ कर दी थी।

गहलोत ने अध्यक्ष पद के चुनाव से बाहर रहने का विकल्प उस वक्त चुना जब उनके समर्थक सड़कों पर उतर आए और मांग की कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखा जाए। हालांकि कुछ लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात की गई लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। उस वक्त सरकार में पायलट के अधिकांश समर्थकों को हटा दिया गया था।

अगर पायलट ने फिर से बगावत का झंडा बुलंद किया है तो ऐसा इसलिए कि उन्हें लगता है कि उन्हें न्याय नहीं मिला है। उनके समर्थकों को इस बात में कोई संदेह नहीं दिखता है कि अगर वह अभी इस मुद्दे को नहीं उठाते हैं तब बहुत देर हो जाएगी।

पार्टी ने राजस्थान के प्रभारी एस एस रंधावा को उनका आकलन करने के लिए भेजा था। रंधावा ने अब तक सिर्फ इतना कहा है कि कार्रवाई होगी। इस बीच, कहा जा रहा है कि पायलट ‘आम आदमी पार्टी’ के संपर्क में भी हैं, हालांकि जानकार लोगों का कहना है कि चीजें अभी तक किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंची हैं। लेकिन यह बात स्पष्ट है कि राजस्थान कांग्रेस में विद्रोह के सुर उभर रहे हैं और यह और बढ़ सकता है।

First Published - April 19, 2023 | 8:42 PM IST

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