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रीपो दर घटाने के साथ तैयार की भविष्य की राह

ब्याज दर में कटौती के साथ नीतिगत रुख में बदलाव, 2025-26 में और गिरावट के संकेत

Last Updated- April 10, 2025 | 10:52 PM IST
RBI

आखिरकार, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एक आसान एवं सहज मौद्रिक नीति व्यवस्था की तरफ कदम बढ़ा दिया है। आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने अपनी तीन दिवसीय बैठक के अंतिम दिन बुधवार को रीपो रेट 25 आधार अंक घटाकर 6 प्रतिशत कर दी। वित्त वर्ष 2025-26 में एमपीसी की यह पहली द्विमासिक बैठक थी।

फरवरी के बाद मौद्रिक नीति में लगातार दूसरी बार कमी की गई है। रीपो दर में कमी अहम है किंतु इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आरबीआई ने मौद्रिक नीति का रुख बदल दिया है और इसे ‘तटस्थ’ की जगह ‘उदार’ बना दिया है। एमपीसी के सभी छह सदस्यों ने ये दोनों ही निर्णय आपसी सहमति से लिए हैं।

एमपीसी की बैठक के बाद आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने जो कहा उससे स्पष्ट है कि मौद्रिक नीति का रुख उदार बनाने का मतलब है कि केंद्रीय बैंक ब्याज दरें नरम रखकर अर्थव्यवस्था को ताकत देने के लिए तैयार है। यानी भविष्य में नीतिगत दरों में और कमी हो सकती है।

एमपीसी की घोषणा के बाद विश्लेषक टर्मिनल इंटरेस्ट रेट का फिर से हिसाब-किताब लगाने बैठ गए हैं। टर्मिनल ब्याज दर 5.50-5.75 प्रतिशत से घट कर अब 5.25-5.50 प्रतिशत रह गई है। अगर ब्याज दर में कटौती का सिलसिला जारी रहा तो चालू वित्त वर्ष में यह दर 50-75 आधार अंक तक कम हो सकती है।

आरबीआई ने आखिरी बार जून 2019 में मौद्रिक नीति का रुख ‘तटस्थ’ से ‘उदार’ कर दिया था। उस समय केंद्रीय बैंक ने रीपो दर 25 आधार अंक घटाकर 5.75 प्रतिशत कर दी थी। आर्थिक सुस्ती से जुड़ी चिंता और अनुकूल मुद्रास्फीति के बीच अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिए आरबीआई ने यह कदम उठाया था। इससे पहले फरवरी 2017 से आरबीआई ने ‘तटस्थ’ रुख अपना रखा था।

अक्टूबर 2024 में आरबीआई ने अपना रुख ‘प्रोत्साहन वापस लेने’ की जगह ‘तटस्थ’ कर दिया था मगर रीपो दर 6.5 प्रतिशत के स्तर पर अपरिवर्तित रखी थी। यानी रुख में बदलाव के साथ आरबीआई ने भविष्य में नीतिगत दर में कटौती के संकेत दे दिए थे। दरों में कटौती के मौजूदा दौर में पहली बार फरवरी में ब्याज दर में कमी की (मई 2020 के बाद पहली बार) गई थी।

ब्याज दर में कटौती की उम्मीद तो सभी को थी मगर वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा शुरू किए गए व्यापार युद्ध के बीच आरबीआई रुख में बदलाव करेगा या नहीं इसे लेकर अर्थशास्त्रियों की राय मेल नहीं खा रही थी। तो आरबीआई ने रुख में बदलाव क्यों किया? इसका कारण बिल्कुल साफ है। आर्थिक वृद्धि दर-मुद्रास्फीति समीकरण अब बदल चुका है। मुद्रास्फीति नियंत्रण में है और अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो गई है। इसे देखते हुए आरबीआई नियंत्रित मुद्रास्फीति के बीच आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ावा देना चाहता है।

केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि का अनुमान भी 20 आधार अंक घटा कर 6.5 प्रतिशत कर दिया है। तिमाही आधार पर जीडीपी पहली तिमाही में 6.5 प्रतिशत, दूसरी तिमाही में 6.7 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 6.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 6.3 प्रतिशत के साथ बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। इस तरह, उतार-चढ़ाव अधिक नहीं नजर आ रहा है।

आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति का अनुमान भी घटा दिया है। फरवरी में प्रमुख मुद्रास्फीति दर (खाद्य वस्तुओं एवं तेल के दाम में बढ़ोतरी शामिल नहीं) बढ़ी थी मगर खाद्य वस्तुओं की कीमतों में मामूली बढ़ोतरी, कच्चे तेल में दाम में गिरावट और सामान्य मॉनसून की उम्मीदों के बीच चालू वित्त वर्ष में आरबीआई ने सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है।

इस अनुमान के मुताबिक सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाहियों में आरबीआई के लक्ष्य 4 प्रतिशत से कम (क्रमशः 3.6 प्रतिशत, 3.9 प्रतिशत और 3.8 प्रतिशत) रहेगी। इसका मतलब है कि नीतिगत दर को मानक मानते हुए वास्तविक ब्याज दर आगे चलकर 2 प्रतिशत (6 प्रतिशत में मुद्रास्फीति घटाने पर) से अधिक रह सकती है। इससे ब्याज दरों में कई बार कमी की उम्मीद बन रही है जिससे रीपो दर 5.5 प्रतिशत से कम होकर 5.25 प्रतिशत के स्तर तक आ सकती है।

फिलहाल एक आदर्श नीतिगत दर को लेकर अटकल तेज है मगर आरबीआई ने बाजार, बैंकिंग और औद्योगिक क्षेत्र को जो संदेश दिया है वह पूरी तरह स्पष्ट है। वह संदेश यह है कि फिलहाल ब्याज दरें कम ही रह सकती हैं और नकदी की उपलब्धता भी पर्याप्त बनी रहेगी। उधारी पर लागत कम कर केंद्रीय बैंक वृद्धि को ताकत देना चाहता है। इससे निश्चित रूप से नीतिगत दर में कमी का लाभ सभी क्षेत्रों को मिल पाएगा।

बुधवार को 10 वर्ष की अवधि के सरकारी बॉन्ड पर यील्ड 6.44 प्रतिशत रही, जो मंगलवार को 6.47 प्रतिशत थी। रीपो रेट में कमी की घोषणा के तत्काल बाद यील्ड 6.54 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई मगर रुख में बदलाव पर गौर करने के बाद यह कम हो गई। बुधवार को रुपया प्रति डॉलर 86.68 के स्तर पर बंद हुआ, जो पिछले कारोबारी दिवस के 86.25 के स्तर से कमजोर रहा।

नीतिगत रुख में बदलाव को समझने का एक तरीका यह हो सकता है कि व्यापार युद्ध गहराने के बाद भारत चीन और कुछ अन्य देशों की तरह अपनी मुद्रा के अवमूल्यन को एक रणनीति के तहत बढ़ावा दे रहा है। मैं इस सिद्धांत से सहमत नहीं हूं किंतु यह भी मानता हूं कि रुपये को ताकत देना फिलहाल आरबीआई की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है। आर्थिक वृद्धि दर को मजबूती देना आरबीआई का मुख्य मकसद लग रहा है। मगर इसके लिए नीतिगत दर में आगे भी कमी की जाएगी। इस पूरी प्रक्रिया में अगर रुपया कमजोर हुआ तो आरबीआई इसे अधिक तवज्जो नहीं देगा।

रीपो दर में कमी और रुख में बदलाव के बावजूद बुधवार को शेयर बाजार में गिरावट जारी रही और बैंकों के शेयर लुढ़क गए। इसके पीछे कुछ कारण हैं। पहला कारण तो यह कि आर्थिक सुस्ती से जुड़ी चिंता अब सरकारी तंत्र के स्तर पर दिखने लगी है। वास्तव में ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वित्त वर्ष 2026 के लिए आर्थिक वृद्धि का अनुमान कुछ ज्यादा ही आशावादी है। जब आर्थिक वृद्धि दर कमजोर रहती है तब शेयर बाजार में उत्साह बने रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

बैंकों के लिए आने वाला समय चुनौतीपूर्ण रहेगा। नीतिगत दर कम होने के बाद बैंकों को अपने अधिकांश ऋणों पर ब्याज दरें घटानी होंगी क्योंकि ये (ब्याज दरें) बाहर मानक जैसे रीपो दर या ट्रेजरी बिल पर यील्ड से जुड़ी होती हैं। क्या बैंक अपनी जमा दरें भी उसी अनुपात में कम कर पाएंगे? शायद नहीं। इसका मतलब है कि बैंकों के शुद्ध ब्याज मार्जिन कम हो जाएंगे। इसे देखते हुए बैंकों को भविष्य में उभरने वाली परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठाना होगा।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड में वरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published - April 10, 2025 | 10:52 PM IST

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