दुनिया की शीर्ष तकनीकी कंपनियां एमेजॉन, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल की संभावनाएं तलाश रही हैं। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और कुछ हद तक क्रिप्टोकरेंसी के आगाज के बाद परमाणु ऊर्जा एक बार फिर अपना वजूद बुलंद कर सकती है।
गूगल ने छोटे परमाणु संयंत्रों से बिजली हासिल करने के लिए काइरोस पावर के साथ समझौता किया है। इस बिजली का इस्तेमाल वह एआई से चलने वाले अपने डेटा केंद्रों को चलाने में करेगी। माइक्रोसॉफ्ट ने थ्री माइल आइलैंड संयंत्र से बिजली इस्तेमाल करने के लिए कॉन्स्टेलेशन के साथ हाथ मिलाया है। थ्री माइल आइलैंड संयंत्र में बड़ी परमाणु दुर्घटना हुई थी। एमेजॉन ने भी भविष्य में अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों में निवेश के समझौते किए हैं।
ऊर्जा के इस्तेमाल में नफासत सभ्यताओं की नफासत और आधुनिकीकरण से गहराई से जुड़ी है। मिस्र के लोगों ने पिरामिड तैयार करने के लिए पनचक्की (वाटर-व्हील्स) और हाइड्रॉलिक्स यानी पानी की ताकत का इस्तेमाल किया था। नवजागरण की शुरुआत वाष्प के साथ शुरू हुई थी। बिजली आई तो दिन में अधिक घंटे तक काम करना मुमकिन हो गया और टेलीग्राफ जैसे आविष्कारों हो गए।
आर्थिक तरक्की होती है तो बिजली की मांग भी बढ़ जाती है। एआई की मदद से वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेज वृद्धि की गुंजाइश काफी बढ़ गई है, लेकिन उसकी रीढ़ की हड्डी सरीखे डेटा केंद्र चलाने के लिए भारी मात्रा में बिजली की जरूरत पड़ेगी। एआई के लिए डेटा केंद्र अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। क्रिप्टोकरेंसी तैयार करने यानी उसकी माइनिंग के लिए भी बिजली की खपत बढ़ गई है।
कार्बन के बहुत अधिक उत्सर्जन के कारण जलवायु परिवर्तन का खतरा देखते हुए ताप विद्युत यानी कोयले से बिजली बनाना बहुत आकर्षक विकल्प नहीं रह गया है। इस वजह से भी परमाणु ऊर्जा में दिलचस्पी बढ़ गई है, जो ताप विद्युत जैसे फायदे देती है मगर कार्बन उत्सर्जन बिल्कुल नहीं होता।
नवीकरणीय ऊर्जा की बात करें तो सौर, पवन और जल स्थायी या लगातार मिलने वाले स्रोत नहीं हैं। इनके लिए भंडारण की जरूरत होती है और बिजली भी सुदूर स्थानों (विशेषकर तटों से दूर पवन ऊर्जा के मामले में) से लानी पड़ती है। भू-तापीय और ज्वार से बनने वाली ऊर्जा का उत्पादन किसी खास स्थान पर ही होता है लेकिन हरित हाइड्रोजन अभी विश्वसनीय साबित नहीं हुई है और महंगी भी है।
ताप बिजली चौबीसों घंटे मिलती है मगर कोयला, गैस, बायोगैस या नेफ्था जैसे जीवाश्म ईंधन से बनने के कारण प्रदूषण करती है। परमाणु ऊर्जा एक तरह से ताप बिजली का ही स्वच्छ रूप है। किसी सामान्य ताप संयंत्र में कोयला जलाकर पानी गर्म किया जाता है, जिससे भाप बनती है। इस भाप का इस्तेमाल टरबाइन या चक्की घुमाने के लिए होता है। परमाणु संयंत्र में भाप पैदा करने के लिए परमाणु अभिक्रियाओं की मदद ली जाती है।
सामान्य ताप बिजली संयंत्र में कार्बन उत्सर्जन अधिक होता है। परमाणु संयंत्र में विकिरण तो निकलता है मगर कार्बन उत्सर्जन शून्य होता है। सिद्धांत के तौर पर परमाणु ऊर्जा बहुत कारगर है क्योंकि नाभिकीय विखंडन कराने वाली मामूली सी सामग्री से अपार ऊर्जा पैदा हो सकती है। विकिरण को काबू में रखा जाए तो चौबीसों घंटे सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत तैयार किया जा सकता है। ऐसे में हाइपरस्केल डेटा सेंटर और क्लाउड सेवा प्रदाताओं की दिलचस्पी इसमें होनी ही है क्योंकि उन्हें हमेशा स्थिर और विश्वसनीय ऊर्जा की जरूरत होती है।
परमाणु ऊर्जा के साथ जुड़ी समस्याओं पर भी चर्चा की जा सकती है। इस्तेमाल हो चुका ईंधन खत्म करना या उसे दोबारा काम में लेना जरूरी है। इस्तेमाल होने के बाद ईंधन सदियों तक जानलेवा हो सकता है। इसका निस्तारण करने के लिए एक बड़ा गड्ढा तैयार करना होता है और उसे सुरक्षित आवरण से ढकना पड़ता है। इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि वहां दबा ईंधन सैकड़ों वर्षों तक छुआ नहीं जाए वरना बड़ी तबाही मच सकती है।
अगर इसका प्रसंस्करण किया जाता है तो इसका दोबारा इस्तेमाल भी हो सकता है। मगर दोबारा प्रसंस्करण करने पर यह हथियारों में इस्तेमाल के लायक बन जाता है यानी तबाही लाने का जरिया बन सकता है। इस खतरे को ध्यान में रखते हुए ही पुनर्प्रसंस्करण के संबंध में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा के मानक तैयार किए गए हैं। आखिर में परमाणु संयंत्र को बंद करने की जरूरत पड़ती है जिस पर भारी भरकम खर्च आता है। जमीन में अपशिष्ट ईंधन दबाकर रखने की तुलना में यह काम अधिक पेचीदा है, इसलिए सस्ता नहीं पड़ता।
तीन बड़ी दुर्घटनाएं होने के बाद लोग परमाणु ऊर्जा के खिलाफ हो गए थे। वर्ष 1986 में चेर्नोबिल में हुई दुर्घटना सबसे बड़ी त्रासदी थी, जिसके बाद इस संयंत्र के चारों तरफ 900 वर्ग किलोमीटर जमीन को अलग-थलग कर दिया गया। वर्ष 2011 में फुकुशिमा में सुनामी के कारण त्रासदी आई थी। थ्री माइल आइलैंड (टीएमआई) दुर्घटना टीएमआई यूनिट-2 के पिघलने का परिणाम थी (माइक्रोसॉफ्ट ने कॉन्स्टेलेशन को टीआईएमआई यूनिट-1 खोलने के लिए कहा है)। फुकुशिमा दुर्घटना के बाद जर्मनी ने अपने परमाणु संयंत्र बंद कर दिए और जापान ने उनमें कमी कर दी। फ्रांस यूरोपीय संघ एकमात्र ऐसा देश है जो बड़े पैमाने पर परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल करता है (ईंधन का प्रसंस्करण भी करता है)।
तीनों दुर्घटनाएं पुराने संयंत्रों में होने के कराण परमाणु ढांचे में काफी सुधार हो चुका है। मगर किसी संयंत्र में दुर्घटना होने की आशंका पूरी तरह कभी नकारी नहीं जा सकती। परमाणु ऊर्जा के साथ दो पहलू जुड़े हैं।
पहली बात तो दुर्घटना की आशंका पूरी तरह खारिज नहीं कर इससे बचने या निपटने के उपाय करने होंगे क्योंकि हम ऐसे अनुभव से पहले भी गुजर चुके हैं। दूसरी बात यह है कि परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल से आने वाले कई दशकों तक सस्ती एवं स्वच्छ बिजली उत्पन्न की जा सकती है। इस नफा-नुकसान पर कई बार चर्चा भी हो चुकी है। एआई ने परमाणु ऊर्जा एक बार फिर अपनाने की संभावनाओं को मजबूत कर दिया है।