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OPS vs NPS: पेंशन में सुधार के मौजूद हैं तरीके

नीतियों और नियमन की सहायता से पेंशन फंड पर मिलने वाले प्रतिफल में सुधार किया जा सकता है। यदि ऐसा किया जा सका तो इस मुद्दे पर राजनीति होनी कम हो जाएगी। बता रहे हैं गुरबचन सिंह

Last Updated- July 17, 2023 | 7:54 PM IST
NPS vs UPS: If you are young and can take risk then adopt NPS आप युवा हैं और जोखिम ले सकते हैं तो अपनाएं एनपीएस
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पुरानी पेंशन योजना (OPS) और राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) को लेकर देश में जो बहस चल रही है वह आमतौर पर वितरण के इर्दगिर्द केंद्रित रहती है। यानी निवेश में किसे कितना योगदान करना चाहिए? और किसे जोखिम वहन करना चाहिए? आमतौर पर जोखिम को बाहरी माना जाता है लेकिन इस पर प्रश्नचिह्न लग सकता है। यहां तक कि अनुमानित प्रतिफल दर भी बाहरी नहीं होती है।

निवेश पर हासिल होने वाला प्रतिफल ही सेवानिवृत्ति के समय एकत्रित राशि का बड़ा हिस्सा होता है। निवेश की गई राशि महत्त्वपूर्ण है लेकिन उस समय यह राशि काफी छोटी हो जाती है। ऐसा इसलिए कि पेंशन फंड के लिए निवेश का समय बहुत लंबा होता है और चक्रवृद्धि ब्याज बहुत अधिक होता है। ऐसे में यह समझना महत्त्वपूर्ण है और निवेश पर मिलने वाले प्रतिफल में सुधार करना भी आवश्यक है।

डेट उपकरणों पर लंबी अवधि के वास्तविक प्रतिफल की दर भी कम है। इसकी दो वजह हैं। पहली, बैंकों को भारत में तथाकथित सांविधिक तरलता अनुपात पर नजर रखने की आवश्यकता है। प्रभावी तौर पर देखें तो बैंकों को अपने फंड का कम से कम 18 फीसदी हिस्सा सरकारी बॉन्ड में निवेश करना आवश्यक है। ऐसे में इस तरह के बॉन्ड की मांग अधिक है और उनकी कीमत भी अधिक है। परंतु संबंधित प्रतिफल बहुत कम थे।

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दूसरी बात, आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए रिजर्व बैंक वास्तविक रीपो दर को कम स्तर पर रखता है। दोनों नीतियों का लक्ष्य वास्तविक ब्याज दरों को अपेक्षाकृत कम स्तरों पर रखना होता है। इसका परिणाम यह होता है कि पेंशन फंड पर मिलने वाला प्रतिफल प्रभावित होता है।

निवेश पर प्रतिफल की कहानी का एक और हिस्सा तीन जोखिमों से जुड़ा है। इनमें से पहला है मुद्रास्फीति का जोखिम। अगर मुद्रास्फीति की दरें बढ़ती हैं तो इससे पेंशन फंड में एकत्रित राशि का वास्तविक मूल्य कम हो सकता है। इसके अलावा मुद्रास्फीति की दर में इजाफा नॉमिनल ब्याज दरों को भी बढ़ा सकता है जिससे फंड का मूल्य कम होगा।

दूसरा जोखिम ब्याज दर का है। ब्याज दरों में काफी उतार-चढ़ाव आ सकता है। ये बॉन्ड कीमतों को प्रभावित करता है और शेयर कीमतों पर भी असर डाल सकता है। आखिरी जोखिम यह है कि परिसंपत्ति बाजार में रुझान मामूली वजहों से भी बदल सकते हैं। शेयर मूल्य और बॉन्ड मूल्य काफी समय के लिए बदल सकते हैं। यह जोखिम पेंशन फंड पर असर डालता है।

निवेश में जोखिम एक हद तक सरकारी अधिकारियों की गतिविधियों से भी जुड़े रहते हैं। परिसंपत्ति बाजार किसी निर्वात में नहीं काम करते। ये एक वृहद आर्थिक नीति और नियामकीय ढांचे में संचालित होते हैं। अगर ये अनुकूल नहीं होंगे तो प्रतिफल जोखिम में पड़ जाएगा। वहीं अगर नियमन और नीतियां उपयुक्त रहे तो जोखिम में कमी आएगी और पेंशन फंड में सुधार होगा।

मौजूदा वृहद आर्थिक नीति कैसी है? अब हमें रिजर्व बैंक पर ध्यान देना होगा। उसका लक्ष्य मुद्रास्फीति को खुदरा मूल्य सूचकांक के चार फीसदी के दायरे में रखना है। इसमें दो फीसदी घटोतरी या बढ़ोतरी की संभावना रखी गई है। यानी इसमें 50 फीसदी की गुंजाइश छोड़ी गई है जबकि 2019 से अब तक हमने देखा है कि यह इससे अधिक ही रहा है। मुद्रास्फीति की दरों में संभावित इजाफा परिसंपत्ति बजारों के लिए जोखिम बढ़ा देता है यह बात पेंशन फंड पर नकारात्मक असर डालती है।

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रिजर्व बैंक वृहद आर्थिक स्थिरता के मुख्य उपकरण के रूप में रीपो दर का इस्तेमाल करता है। औसत इसे कम स्तर पर रखने के अलावा बैंक पूरे आर्थिक चक्र के दौरान इसमें निरंतर बदलाव करता रहता है। यह बदलाव ब्याज दरों को तो प्रभावित करता ही है, साथ ही परिसंपत्ति बाजार में अक्सर इसे लेकर अतिरिक्त प्रतिक्रिया देखने को मिलती है। जाहिर है यह भी पेंशन फंड के लिए जोखिम पैदा करता है।

आखिर में, उस नियामकीय ढांचे पर विचार करते हैं जिसके तहत निवेश किया जाता है। परिसंपत्ति बाजारों में रुझान की भूमिका काफी व्यापक होती है परंतु नियमन इस विषय पर ज्यादातर खामोश ही नजर आते हैं। यह सही है कि नियामकीय ढांचा प्रतिभागियों की अतार्किकता को दूर नहीं कर सकता है लेकिन वह ऐसा बाजार मुहैया करा सकता है जहां विश्वसनीय, स्वतंत्र, मजबूत, आसान पहुंच वाली और उचित मूल्य पर वित्तीय सलाह मिल सके। ऐसे उपाय भावनाओं की भूमिका को काफी कम कर सकते हैं और परिसंपत्ति कीमतों की अस्थिरता को कम करता है। इसी प्रकार पेंशन फंड पर इनका असर भी कम होगा।

उपरोक्त विश्लेषण से निम्नलि​खित सवाल भी पैदा होते हैं। क्या यह संभव है कि बचतकर्ताओं के लिए ब्याज दरों में सार्थक कमी की जा सके? दूसरा, क्या यह संभव है कि एक ऐसी नीति अपनाई जाए जहां कम और स्थिर मुद्रास्फीति बरकरार रखते हुए अन्य वृहद आर्थिक लक्ष्यों का ध्यान रखा जाए तथा इस दौरान परिसंपत्ति बाजारों के लिए ब्याज दरों का जोखिम नहीं बढ़ने दिया जाए?

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आखिर में क्या यह संभव है कि एक ऐसा नियामकीय ढांचा तैयार किया जाए जो परिसंपत्ति बाजार में बदलते रुझान के अनुसार जोखिम में उल्लेखनीय कमी कर सके? आमतौर पर इनके जवाब हां हैं। मेरी आगामी पुस्तक ‘मैक्रोइकनॉमिक्स ऐंड ऐसेट प्राइजेज-थिंकिंग अफ्रेश ऑन पॉलिसी’ दिखाती है कि ऐसा कैसे और क्यों है। परंतु यह एक लंबी कहानी है। यहां मुद्दा यह है कि नीति और नियमन पेंशन फंड के जोखिम को कम कर सकते हैं और मुद्रास्फीति समायोजित प्रतिफल को बढ़ा सकते हैं। यदि ऐसा किया गया तो इस मुद्दे को लेकर होने वाली राजनीति में भी कमी आएगी।

(लेखक अशोक यूनिवर्सिटी में अति​थि प्राध्यापक हैं। वं​शिका टंडन का लेख में योगदान)

First Published - July 17, 2023 | 7:54 PM IST

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