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पड़ोस से जुड़ी चिंता

Last Updated- May 07, 2023 | 8:28 PM IST
Indias Foreign Minister Jaishankar and Chinese counterpart Qin Gang
PTI

यह सही है कि शुक्रवार को गोवा में आयोजित शांघाई सहयोग संगठन (SCO) की विदेश मंत्रियों की बैठक से कोई खास अपेक्षाएं नहीं थीं लेकिन वहां जो घटनाएं घटीं वे इस अहम क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन की अध्यक्षता से भारत के लिए कुछ खास उम्मीदें नहीं जगातीं।

गोवा में आयोजित बैठक का प्रमुख लक्ष्य था जुलाई में आगामी SCO राष्ट्र प्रमुखों की ​शिखर बैठक की तैयारी करना। बैठक का एजेंडा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के दूसरे वर्ष में उस समय आयोजित हो रहा है जब आतंकवाद विरोध को लेकर चिंता का माहौल है, खासतौर पर अफगानिस्तान में और व्यापार को राष्ट्रीय मुद्राओं में निपटाने पर जोर है। इनमें से आ​खिरी मुद्दे ने रूसी कच्चे तेल पर प​श्चिमी प्रतिबंधों के बाद जोर पकड़ा है।

SCO की अध्यक्षता भारत के लिए इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि यह अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन, रूसी कच्चे तेल की खरीद जारी रखने और नाटो (NATO) को पूर्व के उत्तर के रूप में बनी संस्था की सदस्यता के रूप में एक नाजुक संतुलन कायम करता है।

माना जा रहा था कि SCO की अध्यक्षता भारत के क्षेत्रीय और वै​श्विक कद में इजाफा करेगी। गोवा में आयोजित बैठक ने उस समय इसमें एक और पहलू जोड़ दिया जब पाकिस्तान के बिलावल भुट्टो जरदारी इसमें शामिल होने को तैयार हो गए। वह 2011 के बाद भारत आने वाले पहले पाकिस्तानी विदेश मंत्री हैं। परंतु भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच जाहिर मौ​खिक शत्रुता के माहौल में किसी प्रकार की सार्थक चर्चा की आशा जाती रही।

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पाकिस्तान के साथ भारतीय विदेश मंत्री की कोई द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई। लेकिन दोनो देशों के विदेश मंत्रियों ने SCO के प्रतिनि​धियों के समक्ष एक दूसरे पर हमले जरूर किए।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत के हित के मुद्दों पर ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया, मसलन गैर सरकारी तत्त्वों का आतंकवाद, आतंकियों को पैसे देना और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की आवश्यकता जिसमें चीन पाकिस्तान आ​र्थिक कॉरिडोर के निर्माण की बात शामिल है जो पाकिस्तान अ​धिकृत कश्मीर से गुजरता है और इस प्रकार भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है।

ये मुद्दे भारत के लिए अहमियत रखते हैं क्योंकि जरदारी की भारत यात्रा के दौरान ही राजौरी में आतंकी हमले में पांच भारतीय जवान मारे गए ब​ल्कि अगर एक द्विपक्षीय बैठक आयोजित की जाती तो इन बातों के लिए वह अ​धिक उपयुक्त मंच होता।

निश्चित तौर पर एक खुली बैठक में पाकिस्तान पर हमलों ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री को यह अवसर प्रदान किया कि वह संवाददाता सम्मेलन में इनका जवाब दें। भारतीय विदेश मंत्री ने इसका भी उत्तर दिया और जरदारी पर आरोप लगाया कि वह आतंकवाद के उद्योग को बढ़ावा देने वाले, उसे उचित ठहराने वाले और उसके प्रवक्ता बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि यह आतंकवाद उद्योग पाकिस्तान का आधार है। उच्च स्तरीय कूटनीति में ऐसी बातों की जगह नहीं होती।

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चीन को लेकर जयशंकर ने कहा कि चीनी विदेश मंत्री ​चिन गांग के साथ सीमा के मुद्दों को लेकर खुली चर्चा हुई। यह मुलाकात द्विपक्षीय बैठक की आड़ में हुई। परंतु विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि भारत और चीन के रिश्ते सामान्य नहीं हैं और वे तब तक सामान्य नहीं हो सकते हैं जब तक कि सीमावर्ती इलाकों में शांति को बा​धित किया जाता रहेगा।

यह बात भी शायद मददगार साबित न हो। यह बात उस व्यावहारिक रूप से स्थापित ​स्थिति के साथ विरोधाभासी है कि भारत और चीन सीमा को लेकर होने वाली बातचीत को अन्य अहम मुद्दों मसलन आ​र्थिक संबंधों से अलग रखेंगे।

इस कूटनीतिक आक्रामकता का नतीजा पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ में मजबूती के रूप में सामने आया। भारत द्वारा प्रश्नचिह्न लगाए जाने के एक दिन बाद चीन और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने इस्लामाबाद में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबो​धित करते हुए चीन-पाकिस्तान आ​र्थिक गलियारे की उपयोगिता की बात की। एक क्षेत्रीय मंच पर अपने हितों पर जोर देकर भरत ने शायद वै​श्विक मंच पर अपनी परिपक्व भूमिका को कमजोर ही किया।

First Published - May 7, 2023 | 8:28 PM IST

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