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क्या नियामक बेवकूफ हैं? DGCA को नियम लागू करने का अधिकार होना चाहिए

वैधानिक दर्जा प्राप्त होने के बाद भी नागर विमानन महानिदेशालय को पर्याप्त अधिकार नहीं दिया जाना एक भूल है जिसे दुरुस्त किया जाना चाहिए। बता रहे हैं एके भट्टाचार्य

Last Updated- December 11, 2025 | 9:41 PM IST
IndiGo Crisis

जरा एक शहर में हजारों अपार्टमेंट के साथ एक विशाल आवासीय परिसर की कल्पना करें! इन अपार्टमेंट के बनने और लोगों के रहने के लिए पहुंचने के कई महीनों बाद उस क्षेत्र के नगर निगम अधिकारियों को अचानक इस बात का एहसास होता है कि निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस आवासीय परिसर में सिक्योरिटी गार्ड पर्याप्त संख्या में नहीं हैं।

इसके बाद नगर निगम के अधिकारी इन अपार्टमेंट का निर्माण करने वाली रियल एस्टेट कंपनी से कहते हैं वह एक निश्चित समय सीमा के भीतर आवश्यक संख्या में सुरक्षा गार्डों की व्यवस्था करे। रियल एस्टेट कंपनी यह शर्त पूरा करने के लिए समय सीमा बढ़ाने का अनुरोध करती है और नगर निगम के अधिकारी शुरू में इस पर सहमत भी हो जाते हैं। मगर बाद में वे विस्तारित समय सीमा समाप्त होने के बाद नगर निगम दिशानिर्देश प्रभावी कर देते हैं।

कोई विकल्प नहीं देख रियल एस्टेट कंपनी इस नतीजे पर पहुंचती है कि जब तक वह नगर निगम के अधिकारियों द्वारा तय शर्त को पूरा नहीं कर लेती तब तक कुछ परिवारों को आवासीय परिसर से बाहर निकलने के लिए कहेगी। इस तरह, एक यह खास उपाय अमल में लाया जाता है क्योंकि रियल एस्टेट कंपनी के लिए परिसर में रहने वाले परिवारों की संख्या के अनुपात में सुरक्षा गार्डों का न्यूनतम अनुपात बनाए रखना जरूरी है। चूंकि सुरक्षा गार्ड रखने में कुछ समय लग सकता है, इसलिए यह उन अपार्टमेंट में रहने वाले कई परिवारों को बेदखल करने का फैसला करती है। इसके बाद चारों तरफ अफरा-तफरी मच जाती है।

अधिकांश भारतीयों के लिए यह कहानी कुछ जानी-पहचानी लग रही है। जी हां, हम भारत की सबसे बड़ी विमानन कंपनी इंडिगो द्वारा पिछले सप्ताह रद्द की गई हजारों उड़ानों के बारे में बात कर रहे हैं। एक विमानन कंपनी और एक रियल एस्टेट कंपनी के बीच तुलना उचित नहीं है। फिर भी यह तुलना हमें यह समझने में मदद करती है कि वास्तव में इंडिगो को क्या हुआ और भारत के नागर विमानन क्षेत्र की नियामक प्रणाली में क्या खामी है।

तेजी से कारोबार फैलाने की चाह रखने में कोई हर्ज नहीं है मगर यह बेतरतीब ढंग से नहीं किया जाना चाहिए। जब विमानन क्षेत्र के नियामक नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने पायलटों के लिए न्यूनतम अनिवार्य साप्ताहिक आराम के घंटे 33 फीसदी बढ़ाने का निर्णय लिया तो इंडिगो सहित सभी विमानन कंपनियों को यह अवश्य समझ लेना चाहिए था कि उनके पास अपने दैनिक उड़ान कार्यक्रम अपरिवर्तित रखते हुए अपने पायलटों की संख्या बढ़ाने के सिवा कोई अन्य विकल्प नहीं है।

डीजीसीए ने जनवरी 2024 में अपने नए दिशानिर्देशों की घोषणा की जिन्हें जून 2024 से लागू किया जाना था। मगर विमानन कंपनियां तुरंत इनका क्रियान्वयन करने की स्थिति में नहीं थीं इसलिए नियामक ने दो चरणों में इन्हें लागू करने की व्यवस्था दी। ये दिशानिर्देश आंशिक रूप से जुलाई 2025 और पूर्ण रूप से नवंबर 2025 तक लागू किए गए। एयर इंडिया ने बिना किसी खास परेशानी से हालात संभाल लिया क्योंकि उसके काफी विमान पहले से ही उड़ान नहीं भर रहे थे। इससे उसके पास पायलट पर्याप्त संख्या में उपलब्ध थे और दूसरी बात यह थी कि यह इंडिगो की तुलना में कम उड़ानों का परिचालन करती है।

दूसरी तरफ, इंडिगो जनवरी 2024 में रोजाना 2,000 उड़ानों का परिचालन कर रही थी और उसने एक साल बाद यह संख्या बढ़ाकर 2,200 तक पहुंचा दी। एक रियल एस्टेट कंपनी के लिए सुरक्षा गार्डों को काम पर रखना अपेक्षाकृत आसान है मगर किसी विमानन कंपनी के लिए पायलट नियुक्त करना काफी कठिन है। प्रतिद्वंद्वी विमानन कंपनियों से पायलटों को झटकना भी आसान नहीं है क्योंकि इनके लिए सख्त नियम हैं (कमांडर के लिए 12 महीने सह-पायलट के लिए छह महीने की नोटिस अवधि)। इसके अलावा उपलब्ध पायलटों की संख्या भी सीमित है और एक पायलट को विमान उड़ाने के लिए पात्र होने में कई लंबी जटिल प्रमाणन प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। यहां तक कि विदेशी पायलट नियुक्त करने में भी कई महीनों का इंतजार करना पड़ता है।

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए इंडिगो को यह पहले ही समझ लेना चाहिए था कि पायलटों की कमी की समस्या आसानी से हल होने वाली नहीं है। डीजीसीए द्वारा इन दिशानिर्देशों को अगले साल फरवरी तक स्थगित करने से बहुत मदद नहीं मिलेगी जब तक कि इंडिगो अपनी दैनिक उड़ानों की संख्या कम करने का फैसला नहीं करती है। आखिर इंडिगो का शीर्ष प्रबंधन पिछले 23 महीनों में क्या कर रहा था? शायद, इंडिगो प्रबंधन को उड़ान ड्यूटी समय सीमा (एफडीटीएल) के मानदंडों को स्थगित करने और अपनी उड़ानों की संख्या कम किए बिना उन्हें जारी रखने के लिए नियामक को मनाने की अपनी क्षमता पर बहुत अधिक विश्वास था।

इन हालात में नियामक की भूमिका बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाती है और शायद उतनी ही विमानन कंपनी की भी। अगर इंडिगो नए दिशानिर्देशों का जिम्मेदारी से पालन करने में विफल रही तो नियामकों ने भी कोई उल्लेखनीय कदम नहीं उठाए। केवल विमानन नियामक ही नहीं अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन करने में विफल रहा बल्कि प्रतिस्पर्द्धा नियामक ने भी एक विमानन कंपनी के बाजार में दबदबे पर ध्यान नहीं दिया। इस वर्ष तक देश में कुल हवाई उड़ानों का 65 फीसदी हिस्सा इंडिगो ने अपने पाले में कर लिया था।

क्या भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (सीसीआई) ने इस बात की जांच की कि कहीं इंडिगो प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम की धारा 4 के तहत उपभोक्ताओं का शोषण करने के लिए अपने बाजार प्रभुत्व का दुरुपयोग तो नहीं कर रहा?

क्या उसने इस पहलू पर ध्यान दिया कि नए एफडीटीएल मानदंड लागू होने के बाद आने वाले समय में पायलटों की संभावित कमी के बावजूद किस तरह इंडिगो खुशी-खुशी अपनी उड़ानें बढ़ा रही थी और नए दिशानिर्देशों के तहत अपनी उड़ान सेवाएं देने के लिए अधिक पायलटों को काम पर रखने की एक ठोस योजना के साथ तैयार नहीं थी?

क्या ऐसी लापरवाही उपभोक्ताओं का शोषण करने के लिए अपने बाजार प्रभुत्व का दुरुपयोग करने जैसा नहीं है? आखिरकार, उड़ानों के बड़े पैमाने पर रद्द होने के कारण उपभोक्ताओं (यात्रियों) का शोषण हुआ। अगर प्रतिस्पर्द्धा नियामक थोड़ा अधिक सतर्क रहता और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत होता तो ऐसी नौबत नहीं आती!

एक बड़ी समस्या डीजीसीए के कारण हुई। वर्ष 1994 में वायु निगम अधिनियम देश में अधिसूचित निजी विमानन कंपनियों को परिचालन की सुविधा देने के लिए निरस्त कर दिया गया था। यह अधिनियम 1953 में भारत में नागर विमानन का राष्ट्रीयकरण करने के लिए पारित किया गया था। डीजीसीए राष्ट्रीयकरण से पूर्व भी अस्तित्व में था और वह नागर विमानन मंत्रालय के एक संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य करता रहा। अचरज की बात है कि डीजीसीए को वर्ष2020 में सुरक्षा निरीक्षण करने के साथ-साथ नागर विमानन क्षेत्र को विनियमित करने के लिए वैधानिक शक्तियां भी दी गईं।

सुधारों को बढ़ावा देने वाली पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और यहां तक कि नरेंद्र मोदी (अपने पहले कार्यकाल में) सरकारें क्या कर रही थीं? मोदी सरकार द्वारा दूसरे कार्यकाल के दौरान वर्ष 2020 में लिए गए निर्णय से थोड़ा ही फर्क पड़ा। डीजीसीए अपनी वेबसाइट पर अब भी स्वयं को नागर विमानन मंत्रालय के एक संलग्न कार्यालय के रूप में परिभाषित करता है। डीजीसीए का संचालन ज्यादातर सेवारत सरकारी अधिकारी ही कर रहे हैं।

इतना ही नहीं, डीजीसीए में कर्मचारियों की भारी कमी है और स्वीकृत पदों में आधे रिक्त हैं। क्या डीजीसीए को नागर विमानन मंत्रालय के केवल एक संलग्न कार्यालय के रूप में नहीं बल्कि एक स्वतंत्र वैधानिक रूप से अनुमोदित नियामक के रूप में सशक्त करने का समय नहीं आ गया है? डीजीसीए का वैधानिक रुतबा केवल कागजों पर है और इस बीच नागर विमानन मंत्रालय इस बात पर अधिक ऊंचे स्वरों में बात कर रहा है कि इंडिगो के खिलाफ क्या कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

इंडिगो विवाद का सबसे अधिक जटिल पहलू यह है कि नियामकों ने किस तरह बिना उचित निगरानी के कमजोर और अप्रभावी ढंग से काम किया है। वहीं नागर विमानन मंत्रालय इंडिगो के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने और अन्य विमानन कंपनियों के लिए हवाई किराए की सीमा तय करने की धमकी देने में अधिक सक्रिय और मुखर हो गया है। सरकार और संसद हवाई यात्रियों की चिंता दूर करने के लिए अपने अधिकारों की सीमा में हैं लेकिन उनका प्राथमिक कार्य उपयुक्त एवं ठोस नीतियां बना कर यह सुनिश्चित करना है कि नियामक उन्हें लागू करने में पूरी तरह सशक्त एवं सक्षम हों।

इसके साथ ही सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी समस्याओं को भांपने और अग्रिम उपचारात्मक उपाय करने में विफल रहने के लिए उन्हें बख्शा नहीं जाए। समय आ गया है कि सरकार डीजीसीए को पर्याप्त रूप से सशक्त बनाकर नियामक स्तर पर खामियां दूर करे ताकि नागर विमानन क्षेत्र में दोबारा ऐसी अराजकता की स्थिति उत्पन्न न हो। इंडिगो का व्यवहार गैर-जिम्मेदाराना था मगर नियामक तंत्र भी उतना ही गैर-जिम्मेदार और अप्रभावी साबित हुआ। विमानन क्षेत्र में वर्तमान संकट देश में नियामक ढांचे में सुधार करने का एक अवसर है।

First Published - December 11, 2025 | 9:36 PM IST

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