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FTA: भारत के लिए रुकने का समय

यूनाइटेड किंगडम के साथ व्यापार समझौता हमें इस बारे में कुछ बताता है कि भविष्य के सौदों में किस प्रकार का नुकसान झेलना पड़ सकता है।

Last Updated- May 16, 2025 | 10:11 PM IST
India-UK FTA
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच 6  मई को घोषित किया गया व्यापार समझौता लंबे समय से चली आ रही कई सीमाओं का अतिक्रमण करता है। पहली बार किसी मुक्त व्यापार समझौते यानी एफटीए में भारत ने कार आयात शुल्क कम करने,  अपने व्यापक सरकारी खरीद बाजार को विदेशी मुल्क के लिए खोलने, और बाहरी दबाव में अपनी पेटेंट व्यवस्था को शिथिल करने पर सहमति जताई है। ये बदलाव बताते हैं कि भारत किसी सौदे को पूरा करने के लिए किस हद तक जाने को तैयार है। अभी एफटीए का पूरा ब्योरा सामने नहीं आया है लेकिन उपलब्ध जानकारियां कई चिंताजनक संकेत देती हैं। इस आलेख में हम ऐसे ही तीन बिंदुओं पर बात करेंगे।

वाहन टैरिफ कटौती:  कार आयात पर शुल्क को 100 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी करने का भारत का निर्णय किसी भी व्यापार सौदे में लिया गया अपनी तरह का पहला फैसला है। इस कटौती में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड कारें भी शामिल हैं जहां भारतीय उद्योग ने अभी शुरुआत ही की है। भारत को जल्दी ही यूरोपीय संघ, अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया से भी ऐसे अनुरोध मिलेंगे कि वह उनके लिए भी समान या अधिक टैरिफ कटौती की व्यवस्था करे।

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वैश्विक कंपनियां भारतीय फैक्टरियों में निवेश क्यों करेंगी जब वे अपने देश से ही भारत में माल बेच सकती हैं? ऑस्ट्रेलिया ने यह तरीका अपनाने का प्रयास किया था और 1990 के दशक में उसने वाहन टैरिफ 45 फीसदी से कम करके 6 फीसदी कर दिया था। दो दशक के भीतर उसका कार उद्योग समाप्त हो गया। भारत का वाहन क्षेत्र विनिर्माण क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब एक तिहाई का योगदान करता है। यह क्षेत्र करीब 4  करोड़ लोगों को रोजगार देता है। इसमें असेंबली लाइन से लेकर सड़क किनारे बने गैराज तक शामिल हैं। ऐसे में आयात में इजाफा नुकसानदेह होगा।

सरकारी खरीद: केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और सरकारी कंपनियों सहित सरकारी खरीद एक बहुत बड़ा बाजार है जिसका आकार करीब 600 अरब डॉलर सालाना है। यह देश के जीडीपी में करीब 15 फीसदी का हिस्सेदार है। अब तक भारत ने इस क्षेत्र को समझदारीपूर्वक सुरक्षित रखा था और वह विश्व व्यापार संगठन के सरकारी खरीद समझौते में शामिल नहीं था। इसके चलते उसे मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे कार्यक्रमों की मदद से भारतीय कंपनियों को सार्वजनिक अनुबंधों से बचाने में मदद मिल रही थी।

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अब यह संरक्षण खत्म हो रहा है। संयुक्त अरब अमीरात के साथ एफटीए में मामूली खुलेपन के बाद भारत ने यूनाइटेड किंगडम की कंपनियों को भारी पहुंच मुहैया करा दी है। अब करीब 40,000 उच्च मूल्य वाले भारतीय सरकारी अनुबंध उसकी कंपनियों के लिए खुले रहेंगे। इनमें परिवहन, हरित ऊर्जा और अधोसंरचना जैसे क्षेत्र शामिल होंगे। सर्वाधिक दिक्कतदेह प्रावधानों में से एक यह है कि यूनाइटेड किंगडम की कंपनियों को ‘वर्ग 2’ के भारतीय आपूर्तिकर्ताओं के समान माना जाएगा बशर्ते कि उनके उत्पाद मूल्य के महज 20  फीसदी की आपूर्ति यूनाइटेड किंगडम से हो। यह बात यूनाइटेड किंगडम को सरकारी खरीद में वही प्राथमिकता देता है जो 20 से 50 फीसदी घरेलू सामग्री वाले भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को हासिल थी। यह उन्हें इजाजत देता है कि वे 80 फीसदी तक चीनी या यूरोपीय कच्चे माल के बावजूद भारत में स्थानीय आपूर्तिकर्ता का दर्जा ले सकें।

इन कंपनियों को भारत के केंद्रीय ई-खरीद पोर्टल तक भी पहुंच मिलेगी और उन्हें सरकारी अनुबंध पाने में आसानी होगी। यह एफटीए यूनाइटेड किंगडम के व्यवसायों के लिए लाभदायक है जबकि यह उन नीतिगत उपायों को प्रभावित करता है जिनका इस्तेमाल भारत घरेलू विनिर्माण और छोटे उपक्रमों की मदद के लिए करता है।

पेटेंट कानूनों को कमजोर करना: भारत ने पहली बार किसी एफटीए में उन नियमों पर सहमति जताई है जो विश्व व्यापार संगठन के बौदि्धक संपदा अधिकारों के व्यापारिक पहलुओं के कारोबारी समझौतों की उसकी वचनबद्धता से परे जाते हैं। इससे न केवल देश में सस्ती दवाओं तक पहुंच मुश्किल होगी बल्कि वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों को जेनरिक दवाओं के आपूर्तिकर्ता की हमारी छवि पर भी असर होगा। यह कदम वैश्विक दवा कंपनियों के लिए लाभदायक होगा। हालांकि विस्तृत ब्योरे की प्रतीक्षा है।

एफटीए के अन्य प्रमुख बिंदु: भारत-यूनाइटेड किंगडम एफटीए देश का 15वां व्यापार समझौता है। यह वार्ता जनवरी 2022 में शुरू हुई थी और 6 मई को संपन्न हुई। आने वाले महीनों में दोनों देश इसके विधिक प्रारूप को अंतिम रूप देंगे, सरकार की मंजूरी लेंगे और समझौते पर हस्ताक्षर करके इसे प्रभावी बनाएंगे। इस सौदे का उद्देश्य है टैरिफ, वस्तुओं, सेवाओं, डिजिटल कारोबार, बौद्धिक संपदा,  टिकाऊपन (पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा)  और सरकारी खरीद समेत 26  क्षेत्रों में व्यापार गतिरोध कम करना और पहुंच सुधारना।

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द्विपक्षीय व्यापार: वर्ष2024 में भारत और यूनाइटेड किंगडम का व्यापार 53.3 अरब डॉलर पहुंच गया। इसमें भारत को 10.5 अरब डॉलर का अधिशेष हासिल था। भारत ने 13.5 अरब डॉलर की वस्तुओं और 18.4 अरब डॉलर की सेवाओं का निर्यात किया। वहीं यूनाइटेड किंगडम से होने वाला आयात वस्तु में 8.8  अरब डॉलर तथा सेवा क्षेत्र में 12.6 अरब डॉलर रहा। यूनाइटेड किंगडम अमेरिका के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा आईटी और कारोबारी सेवा बाजार है।

टैरिफ रियायत: करीब 6 अरब डॉलर यानी भारत के वस्तु निर्यात (कपड़ा, जूते-चप्पल, कालीन, कार, समुद्री खाद्य पदार्थ और फल) का करीब 44 फीसदी हिस्सा अब यूनाइटेड किंगडम में शुल्क मुक्त होगा। पहले इन पर 4 से 16 फीसदी कर लगता था। शेष 7.5 अरब डॉलर का निर्यात मसलन पेट्रोलियम, दवाएं, हीरे और विमान आदि पहले ही यूनाइटेड किंगडम में शुल्क मुक्त हैं इसलिए उन्हें इसका कोई फायदा नहीं होगा।

भारत यूनाइटेड किंगडम की 90 फीसदी वस्तुओं पर शुल्क समाप्त कर देगा। भारत के टैरिफ के कम होने से चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, सौंदर्य प्रसाधन, वाहन और विमानों के कलपुर्जों, मशीनरी तथा इलेक्ट्रॉनिक्स आदि कई यूरोपीय वस्तुओं को फायदा मिलेगा। यूनाइटेड किंगडम की व्हिस्की और जिन को भारी लाभ होगा क्योंकि भारत ने इसमें तत्काल शुल्क दर को 150 फीसदी से 75  फीसदी करने की बात मानी है। अगले 10 सालों में इसे और कम करके 40 फीसदी किया जाएगा।

सेवा में रियायत: यूनाइटेड किंगडम ने योग प्रशिक्षकों और शास्त्रीय संगीतकारों को सालाना 1,800 वीजा देने की पेशकश की है जबकि कारोबारी यात्री वीजा की संख्या या अवधि को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई गई। ये वीजा देश के फलते-फूलते आईटी और पेशेवर सेवा क्षेत्र के लिए अहम है। उसने अध्ययन-पश्चात वर्क वीजा को बहाल करने से भी मना कर दिया। इससे उन भारतीय बच्चों की उम्मीदों को झटका लगा है जो पढ़ाई के बाद वहां काम करना चाहते हैं। दोहरे योगदान का समझौता जरूर एक उल्लेखनीय लाभ है जो भारतीय पेशेवरों को अल्पावधि के लिए काम पर जाने की इजात देता है और जिसके तहत उन्हें यूनाइटेड किंगडम की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में पंजीयन की जरूरत नहीं होगी। दूसरी ओर यूनाइटेड किंगडम की कंपनियां अब दूरसंचार, विनिर्माण और पर्यावरण सेवाओं में काम कर सकती हैं वह भी भारत में बिना स्थानीय कार्यालय खोले। वहां के बैंक और बीमा कंपनियों को भी भारतीय कंपनियों के समान माना जाएगा।

व्यापक थीम: संयुक्त अरब अमीरात से लेकर स्विट्जरलैंड और अब यूनाइटेड किंगडम तक भारत के व्यापार समझौतों में एक खास तर्ज है। इनमें से हर एक के साथ हम उच्च जोखिम वाले क्षेत्र की ओर बढ़ रहे हैं। यूरोपीय संघ और अमेरिका से समझौता होने वाला है। ऐसे में और क्षेत्रों मसलन औषधि और वाहन आदि को खोलने का दबाव है। साथ ही सरकारी खरीद, पेटेंट और विनियमन में समर्पण करने की मांग की जा रही है। अगर ऐसा ही रहा तो भारत अपनी आर्थिक स्वायत्तता तक गंवा सकता है। अब वक्त आ गया है कि हम ठहरकर एफटीए पर पुनर्विचार करें। वरना बहुत देर हो जाएगी।

(लेखक जीटीआरआई के संस्थापक हैं)

First Published - May 16, 2025 | 9:41 PM IST

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