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विज्ञान के क्षेत्र में बढ़ रहा अंतरराष्ट्रीय सहयोग

गुरुत्वाकर्षण तरंग खगोल विज्ञान ने कृष्ण छिद्र (ब्लैक होल) होने की पुष्टि कर दी।

Last Updated- July 04, 2023 | 11:54 PM IST
science

गुरुवार को भौतिकी दिवस के अवसर पर दो समूहों ने दो बड़ी घोषणाएं की। पल्सर (तेजी से घूमने वाले न्यूट्रॉन तारे) की सहायता से गुरुत्वाकर्षण तरंगों पर शोध करने वाले शोधकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने गुरुत्वाकर्षण संकेतों (ग्रैविटेशनल सिग्नल) की खोज की है, जो बिग बैंग यानी ब्रह्मांड की उत्पत्ति के वैज्ञानिक सिद्धांत से भी पूर्व के हैं। दूसरी तरफ न्यूट्रिनो (एक प्रकार का सूक्ष्म कण) का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने इन कणों की मदद से दिखी ‘मिल्की वे आकाशगंगा’ की तस्वीर तैयार की है।

ये दोनों प्रगति भविष्य को लेकर नई संभावनाओं से साक्षात्कार कराते हैं। इन अवलोकनों के लिए तैयार की गई तकनीक भी शानदार थी और इनके लिए मिलकर की गई पहल भी सराहनीय थी। ये दोनों परिणाम बड़े समूहों के प्रयासों से आए थे। ये समूह विभिन्न देशों में कई शोध संस्थानों में स्थित थे।

मानव के लिए ब्रह्मांड मनुष्यों के लिए शताब्दियों से अतृप्त जिज्ञासा का विषय रहा है। मगर अब तक ब्रह्मांड के बारे में हम जितना जान पाए हैं वह कम ही है। जो रोशनी हमें देख सकते हैं वह विद्युत-चुंबकीय स्पेक्ट्रम का महज एक मामूली हिस्सा है। जब वैज्ञानिकों ने स्पेक्ट्रम के दूसरे हिस्से का इस्तेमाल करना शुरू किया तो कुछ नई बड़ी खोजों का पता चला।

रेडियो तरंगों के खगोल विज्ञान से पल्सर और क्वासर (रेडियो तरंगों का विकिरण करने वाले तारे) का पता चला और इनके साथ ब्रह्मांडीय माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन की भी जानकारी मिली। यह बिग बैंग का साक्ष्य है।

गुरुत्वाकर्षण तरंग खगोल विज्ञान ने कृष्ण छिद्र (ब्लैक होल) होने की पुष्टि कर दी। नवीनतम खोज से हमें कृष्ण छिद्र की विचित्र एवं डरावनी प्रक्रियाओं, आकाशगंगाओं के विलय और बिग बैंग कैसे हुआ आदि समझने में मदद मिल सकती है।

न्यूट्रिनो सूक्ष्म कण होते हैं और परमाणुओं के टकराने जैसी बड़ी घटनाओं से उत्पन्न होते हैं। ये प्रयोगशालाओं में भी उत्पन्न किए जा सकते हैं और प्रकृति में काफी बड़े पैमाने पर पाए जाते हैं। इन्हें ‘घोस्ट पार्टिकल्स’ भी कहा जाता है क्योंकि इन पर बिजली का असर नहीं होता है और ठोस पदार्थों से आसानी से इस पार से उस पार जा सकते हैं। ब्रह्मांड में पाए जाने वाले न्यूट्रिनो में ऊर्जा का स्तर लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर जैसे पार्टिकल एक्सलरेटर में तैयार न्यूट्रिनो की तुलना में कहीं अधिक होता है।

हालांकि, इन दोनों ही मामलों में न्यूट्रिनो की पहचान कठिन होती है। बिग बैंग का सिद्धांत सत्य है तो गुरुत्वाकर्षण तरंगें अब भी अंतरिक्ष में मौजूद हैं। इसी तरह, कृष्ण छिद्र से निकलने वाली तरंगें भी अंतरिक्ष में मौजूद हैं। मगर ये काफी लंबी, कमजोर होती हैं और इनकी पहचान के लिए संवेदनशील उपकरण की आवश्यकता होती है। न्यूट्रिनो में जितनी ऊर्जा होती है केवल उसी की मदद से उन्हें पहचाना जा सकता है और इस कार्य में भी अत्यंत संवेदनशील प्रयासों की आवश्यकता होती है।

गुरुत्व तरंगों की पहचान सबसे पहले लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी (लिगो) से हुई। लिगो को कृष्ण छिद्रों के आपस में विलय का पहला उदाहरण 2015 में मिला। लिगो में टी-आकृति वाले चार डिटेक्टर लगे होते हैं और इनमें प्रत्येक की लंबाई 4 किलोमीटर होती है। इन डिटेक्टर से लेजर प्रवाहित किया जाता है और कुछ खास बिंदुओं पर शीशे लगा दिए जाते हैं।

जब गुरुत्वाकर्षण तरंग गुजरती है तो एक सूक्ष्म बदलाव लाता है। इसका परिणाम यह होता है कि लेजर किरणों की लंबाई में थोड़ा बदलाव आ जाता है। लिगो कुछ खास लंबाई (लगभग 3,200 किलोमीटर) वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों से संकेत प्राप्त कर सकता है। अत्यधिक बड़े कृष्ण छिद्र काफी लंबी तरंगदैर्घ्य- प्रकाश वर्ष जितनी लंबी- वाली तरंगें छोड़ती हैं।

वैज्ञानिकों ने वास्तव में लंबी गुरुत्व तरंगों वाले प्राकृतिक डिटेक्टर के रूप में पल्सर का इस्तेमाल करने का तरीका खोज निकाला है। पल्सर एक निष्क्रिय तारा होता है जो एक निश्चित गति से घूमता रहता है और नियमित रेडियो संकेत देता रहता है। इन संकेतों के समय में मामूली विचलन गुरुत्वाकर्षण तरंग की उपस्थिति का संकेत देता है। 70 पल्सरों के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिक उन क्षणों की पहचान कर पाएं हैं जब वे एक ही तरंग के प्रभाव में आए। ब्रह्मांड में दूरी के कारण वे वास्तव में लंबी तरंगों की पहचान कर पाए हैं।

सबसे संवेदनशील न्यूट्रिनो की पहचान का केंद्र ‘आइसक्यूब’ दक्षिणी ध्रुव पर स्थित है। जब घनघोर अंधेरा होता है तो 2.5 किलोमीटर बर्फ के अंदर दबे लाइट सेंसर का इस्तेमाल करता है। जब कोई न्यूट्रिनो गुजरता है तो ऊर्जा उत्सर्जित करता है। यह ऊर्जा बर्फ के साथ अभिक्रिया करती है। इससे नीला विकिरण पैदा होता है जिसे ‘सेरेन्कोव रेडिएशन’ कहते हैं। चूंकि, न्यूट्रिनो किसी भी चीज से अभिक्रिया नहीं करते हैं या अपने पथ से विचलित नहीं होते हैं इसलिए स्रोत या मूल स्थान का पता लगाने के लिए ऊर्जा के प्रवाह का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन मूल स्थानों का पता लगाकर वैज्ञानिकों ने मिल्की वे आकाशगंगा की तस्वीर तैयार की है।

यह भारी भरकम पेचीदा आंकड़ों के साथ माथापच्ची का बेहद सरल स्पष्टीकरण है। आइसक्यूब बर्फ से टकराने वाले सभी प्रकार के कणों से प्रति सेकंड 2,700 ऊर्जा अंतःक्रियाओं (एनर्जी इंटरएक्शन) का पता लगाता है। यह प्रतिदिन 17 न्यूट्रिनो को अलग करता है। गुरुत्वाकर्षण तरंग डिटेक्टर पल्सर के समय में मिली सेकंड के अंतर को अलग कर उनकी तुलना करता है।

बर्फ में 2.5 किलोमीटर गड्ढा खोदना और वहां होने वाले घटनाक्रम का पता लगाना, समय की सूक्ष्म इकाइयों को मापना, आंकड़ों का लेखा-जोखा रखने के लिए मशीन लर्निंग इन सभी कार्यों के लिए सैकड़ों विशेषज्ञ मिलकर काम करते हैं। इन तकनीकों का निश्चित रूप से व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल हो सकता है। इन शोध दलों ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग का एक अतुलनीय उदाहरण पेश किया है।

First Published - July 4, 2023 | 11:54 PM IST

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