Rupee vs Dollar: भारतीय रुपये ने गुरुवार को डॉलर के मुकाबले अब तक के नए निचले स्तर 88.44 को छू लिया। इसकी मुख्य वजह आयातकों की तरफ से डॉलर की भारी मांग और अमेरिका के संभावित आयात शुल्कों (टैरिफ) को लेकर चिंताएं थीं।
चालू वित्त वर्ष में डॉलर के मुकाबले रुपया 3.36 फीसदी गिर चुका है जबकि इस वर्ष इसमें 3.20 फीसदी की गिरावट आई है। अपने इस प्रदर्शन के साथ ही रुपया, एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा बन गया। बुधवार को रुपया 88.10 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के वरिष्ठ शोध विश्लेषक दिलीप परमार ने कहा, ‘डॉलर की मांग और आपूर्ति में असंतुलन के कारण भारतीय रुपये ने अन्य एशियाई मुद्राओं के मुकाबले कमजोर प्रदर्शन किया है और यह रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। रुपये में ताजा गिरावट का मुख्य कारण आयातकों की तरफ से की गई मांग में मजबूती, प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में उछाल और बढ़ते व्यापार घाटे की चिंताएं हैं। अमेरिका द्वारा बढ़ाए गए शुल्कों और चीन के साथ नए संबंधों ने इस स्थिति को और खराब कर दिया है।’
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप द्वारा भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर दिए गए सकारात्मक संकेतों के बाद रुपये में थोड़ा सुधार देखा गया था लेकिन डॉलर की लगातार बढ़ती मांग, वैश्विक अनिश्चितताओं और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की डॉलर में दिलचस्पी बनी रहने के कारण यह अब भी कमजोर बना हुआ है जबकि कुछ सकारात्मक निवेश भी हुआ था।
इस साल अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय ऋण और इक्विटी में 11.7 अरब डॉलर की शुद्ध बिक्री की है। बाजार के भागीदारों ने बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक विनिमय दर में अधिक अस्थिरता को रोकने के लिए लगातार डॉलर की बिक्री कर विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है।
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता का कहना है, ‘रिजर्व बैंक ने जुलाई और अगस्त महीने में विदेशी मुद्रा भंडार में हस्तक्षेप किया जिससे नकदी की निकासी बढ़ गई क्योंकि टैरिफ को लेकर तनाव बढ़ने से पूंजी प्रवाह नकारात्मक हो गया है। विदेशी मुद्रा भंडार में कमी की एक वजह यह भी है कि रिजर्व बैंक ने कुछ समय पहले विदेशी मुद्रा के सौदे किए थे जो अब पूरे हो रहे हैं।’