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नजर आने लगी है GST की छाप, पिछले दो वर्षों में कर संग्रह में अच्छा खासा इजाफा

Last Updated- May 25, 2023 | 11:14 PM IST
Government treasury increased by 8.5%, GST collection reached Rs 1.82 lakh crore in November सरकार के खजाने में 8.5% का हुआ इजाफा, नवंबर में GST कलेक्शन 1.82 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचा

पांच वर्ष के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि GST में टिकाऊ वृद्धि दिखने लगी है। हालांकि अभी भी इसमें कई कमजोरियां हैं और इसे कई नीतिगत चुनौतियों का सामना करना है। बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य

बीते दो वर्षों में सरकार के कर संग्रह में अच्छा खासा इजाफा हुआ है। यही वह अवधि है जब अर्थव्यवस्था कोविड के झटके से उबरने में कामयाब रही। इसमें मुद्रास्फीति का भी योगदान रहा क्योंकि उसने उच्च नॉमिनल आर्थिक वृद्धि की प्राप्ति में मदद की लेकिन इसके साथ ही कुछ अन्य कारक भी इसकी वजह रहे जिन पर करीबी निगाह डालने की आवश्यकता है।

अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि विभिन्न प्रकार के करों के संग्रह में एकरूपता नहीं है और इसका भी परीक्षण करना आवश्यक है ताकि यह समझा जा सके कि क्या कोविड के बाद उच्च कर संग्रहण का रुझान टिकाऊ है भी या नहीं।

सबसे पहले प्रत्यक्ष करों पर नजर डालते हैं। 2019-20 में करीब 8 फीसदी की गिरावट और 2020-21 में 10 फीसदी की अतिरिक्त गिरावट की वजह से प्रत्यक्ष कर संग्रह काफी कम हुआ लेकिन 2021-22 में 49 फीसदी और 2022-23 में 18 फीसदी की उछाल के साथ इनकी जबरदस्त वापसी हुई।

कोविड के बाद के वर्षों में GST का प्रदर्शन और बेहतर

कोविड के बाद के वर्षों में वस्तु एवं सेवा कर (GST) का प्रदर्शन और बेहतर रहा। 2019-20 में जीएसटी कर संग्रह 4 फीसदी था लेकिन 2020-21 में कोविड के पहले वर्ष में संग्रह में 7 फीसदी की गिरावट आई। परंतु 2021-22 और 2022-23 में इसमें क्रमश: 31 फीसदी और 22 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।

सरकार के कर संबंधी प्रदर्शन में एक उल्लेखनीय बात यह रही कि जीएसटी संग्रह के प्रदर्शन और उसकी गुणवत्ता में प्रत्यक्ष करों की तुलना में अधिक उत्साहजनक सुधार नजर आया है। बीते दो वर्षों में 18-49 फीसदी की विशुद्ध वृद्धि के बाद भी देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में प्रत्यक्ष करों की हिस्सेदारी बहुत धीमी गति से बढ़ी है।

2018-19 में जीडीपी में प्रत्यक्ष करों की हिस्सेदारी 6.01 फीसदी थी। 2021-22 में भी यह कोविड पूर्व के स्तर से कम रहकर 6 फीसदी थी जो 2022-23 में मामूली बढ़कर 6.11 फीसदी तक पहुंची। दूसरे शब्दों में प्रत्यक्ष कर संग्रह में बीते चार सालों में कोई खास तेजी नहीं आई।

सवाल यह है कि प्रत्यक्ष करों में उतना सुधार क्यों नहीं होता जितना कि नॉमिनल वृद्धि में नजर आता है? कॉर्पोरेशन कर संग्रह की बात करें तो 2021-22 में इसमें 55 फीसदी और 2022-23 में 41 फीसदी की मजबूत वृद्धि देखने को मिली।

इसके विपरीत व्यक्तिगत आय कर जिसमें 2021-22 में 43 फीसदी का इजाफा हुआ था, उसमें अगले वर्ष करीब 6 फीसदी की गिरावट आई। यह गिरावट सरकार के लिए निराशा की वजह बनी होगी क्योंकि वह प्रत्यक्ष कर अनुपालन में सुधार का जश्न मनाती रही है। ऐसा क्यों हुआ?

याद रहे कि कॉर्पोरेशन कर दरों में 2015 के बाद लगभग हर वर्ष कमी की गई है और इन्हें रियायतों के समापन से जोड़ दिया गया। 2019 में तो नई कंपनियों के लिए भी इसमें काफी कमी की गई। उन निर्णयों का असर कॉर्पोरेशन कर संग्रह में सुधार के रूप में अवश्य नजर आया होगा।

इसके साथ ही कोविड का प्रभाव समाप्त होने के तत्काल बाद कंपनियों ने वापसी की। अब कई क्षेत्रों में कॉर्पोरेट मुनाफे की वृद्धि कम हो रही है। नजर इस बात पर रहेगी कि क्या 2023-24 में भी कॉर्पोरेशन कर स्वस्थ वृद्धि दर्ज करता रह सकता है क्योंकि इस दौरान कई क्षेत्रों में कंपनियों का मुनाफा दबाव में आया है।

वित्त मंत्रालय की बात करें तो व्यक्तिगत आय कर संग्रह के ताजा रुझान चिंतित करने वाले हैं। सन 2021-22 में उसने वैकल्पिक रियायत रहित कर प्रणाली पेश करने की कोशिश की ताकि कर आधार को बढ़ाया जा सके और संग्रह में सुधार किया जा सके। इस योजना के साथ दिक्कतें थीं।

खासतौर पर दरों की बहुलता और इस अवधारणा के चलते कि नई प्रणाली को अपनाना कर दरों के लिहाज से आकर्षक नहीं है। इस वर्ष के बजट में संशोधन का प्रयास किया गया है लेकिन इसके परिणाम एक वर्ष बाद ही सामने आएंगे।

मंत्रालय ने हाल ही में नए राजस्व संसाधन जुटाने की कोशिश में कहा है कि सालाना सात लाख रुपये से अधिक अंतरराष्ट्रीय लेनदेन क्रेडिट कार्ड से करने पर 20 फीसदी कर लगाया जाएगा। यह कोशिश व्यक्तिगत आय कर संग्रह बढ़ाने के प्रयासों से जुड़ी हो सकती है। परंतु ऐसे प्रयास अदूरदर्शी कर नीति का संकेत हैं।

इसके बजाय मंत्रालय को वैकल्पिक रियायत रहित कर व्यवस्था को सफल बनाने के प्रयास करने चाहिए। दूसरी ओर, जीएसटी संग्रह में बीते कुछ वर्षों में निरंतर सुधार हुआ और अब यह स्थापित रुझान हो गया है। जीएसटी के मूल डिजाइन में दिक्कतें थीं क्योंकि दरों में बहुलता थी और अनुपालन जटिल था।

गत वर्षों में अनुपालन की दिक्कतें कम हुई हैं और अन्य प्रक्रियाओं को भी सहज बनाया गया है। यह मानना उचित होगा कि जीएसटी संग्रह में बीते दो वर्षों आई तेजी की एक वजह बेहतर कवरेज, अनुपालन में सुधार और मुद्रास्फीति की बढ़ती दर भी है।

परंतु अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जीएसटी संग्रह में सुधार के कारण जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी भी बढ़ रही है। यह कोविड के झटके से प्रत्यक्ष करों की तुलना में तेजी से निपटा। 2018-19 में जीडीपी में जीएसटी की हिस्सेदारी 6.22 फीसदी थी।

अगले दो वर्षों की गिरावट के बाद 2021-22 में यह सुधरकर 6.31 फीसदी और 2022-23 में 6.65 फीसदी हो गया। यकीनन आयात शुल्क दरों में इजाफे ने भी इसमें योगदान किया। 2018-19 में आयात पर जीएसटी से करीब 2.88 लाख करोड़ रुपये का राजस्व आया जो कुल अप्रत्यक्ष कर का 24 फीसदी था।

2023-24 में यह 26 फीसदी बढ़कर 4.7 लाख करोड़ रुपये हो गया। निश्चित रूप से आयात पर लगने वाले जीएसटी में इजाफा केंद्रीय जीएसटी, राज्य जीएसटी, उपकर और आईजीएसटी से काफी अधिक रहा। अगर सीमा शुल्क को शामिल कर दें तो वह 2022-23 में जीडीपी का 2.5 फीसदी रहा जो 2016-17 की तुलना में 1.5 फीसदी अधिक रहा।

2016-17 वह आखिरी पूर्ण वर्ष था जब तमाम आयात शुल्क सीमा शुल्क के जरिये बटोरे गए थे। हालिया संरक्षणवादी रुझान के तहत आयात शुल्क बढ़ाया गया जिसका नतीजा सीमा शुल्क और जीएसटी के उच्च संग्रह के रूप में सामने आया।

जाहिर सवाल है कि क्या जीएसटी संग्रह में इस इजाफे को आने वाले वर्षों में बरकरार रखा जा सकेगा? इस दिशा में कई चुनौतियां हैं। कई दरों की दिक्कत तो है ही, साथ ही कई वस्तुओं की दरों में भी कोई कमी नहीं की गई है। पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने के कारण भी इस व्यवस्था का पूरा लाभ सामने नहीं आ पा रहा है।

क्षतिपूर्ति उपकर को चरणबद्ध ढंग से समाप्त करने का एजेंडा भी अधूरा है। जीएसटी में अच्छी वृद्धि का मौजूदा दौर सरकार के लिए यह अवसर हो सकता है कि वह अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में लंबे समय से व्याप्त समस्याओं को दूर करे।

First Published - May 25, 2023 | 11:14 PM IST

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