भारतीय बाजार के लिए मौजूदा कैलेंडर वर्ष यानी 2025 मायूसी भरा रहा है। भारतीय बाजार अपने अब तक के शीर्ष स्तर के करीब जरूर है मगर यह दुनिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला प्रमुख इक्विटी बाजार रहा है। अमेरिकी डॉलर में हिसाब-किताब लगाने पर हम वैश्विक उभरते बाजार (ईएम) सूचकांकों से पिछड़ गए हैं जो नवंबर 2025 के अंत तक डॉलर में 29 फीसदी उछल चुके हैं। इन सूचकांकों के मुकाबले वर्ष 1993 के बाद भारत का यह सबसे खराब प्रदर्शन है। ईएम भार के मामले में भारत अब तीसरे स्थान पर आ गया है और चीन के भार का आधा रह गया है। महज 15 महीने पहले कहा जा रहा था कि तेजी से उभरते बाजारों में भारत चीन को पछाड़ देगा मगर पूरा मामला अचानक पलट गया है!
विदेशी निवेशकों ने भी भारत से दूरी बना ली है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) 2025 में अब तक 18 अरब डॉलर से अधिक की बिकवाली कर चुके हैं और इस प्रकार पिछले पांच वर्षों में उनकी तरफ से वास्तविक निवेश गतिविधियां पूरी तरह थम गई हैं। हालांकि, घरेलू स्तर पर निवेश एक बड़ी राहत की बात रही है जो लगातार बढ़ता जा रहा है। घरेलू संस्थागत निवेशक (डीआईआई) अब तक करीब 80 अरब डॉलर निवेश कर चुके हैं और निवेशकों की संख्या भी 13.5 करोड़ पार कर गई है।
वैश्विक निवेशकों के बीच भारत की साख भी कमजोर हुई है। ज्यादातर भारत को लेकर अब अधिक उत्साहित नहीं हैं और उन्हें यहां बड़े दांव लगाने में कोई खास फायदा नजर नहीं आ रहा है। हम आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) क्षेत्र में चल रही होड़ में भी पूरी तरह शामिल नहीं हो पाए हैं और वृद्धि एवं कमाई दोनों मोर्चों पर निराशा हाथ लगी है। भारत 2025 में एक महंगा बाजार साबित हुआ और फिर रिटर्न कम होकर एक अंक में रह गया है। इन बातों से विदेशी निवेशकों की नजर में भारत का वजूद कमजोर हुआ है।
हालांकि, 2026 में कम से कम मुझे तो संभावनाएं बेहतर दिख रही हैं। मेरा यह अधिक आशावादी दृष्टिकोण कुछ मान्यताओं पर आधारित है। भारत के नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि में तेजी दिखनी चाहिए। कंपनियों की आय काफी हद तक नॉमिनल जीडीपी पर निर्भर करती है। सितंबर तिमाही में देश की वास्तविक वृद्धि दर 8.2 फीसदी के साथ मजबूत रही थी मगर जीडीपी डिफ्लेटर केवल 0.5 फीसदी था जिससे नॉमिनल जीडीपी 8.7 फीसदी तक सीमित हो गई।
इस बात पर विचार करते हुए कि जीडीपी डिफ्लेटर के लिए 10 साल का औसत लगभग 5 फीसदी है इससे 4 फीसदी (+/- 2 फीसदी) का औपचारिक मुद्रास्फीति लक्ष्य और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा दरों में कटौती एवं नकदी बढ़ाने की चाहत के साथ मुद्रास्फीति दर सामान्य हो जानी चाहिए। जैसे ही नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर दो अंक में वापस पहुंचेगी वैसे ही कंपनियों की आय में स्पष्ट रूप से तेजी आएगी। कमाई इस कारण से भी और बढ़ सकती है कि जमीनी स्तर पर सभी क्षेत्रों में मांग मजबूत हो रही है। माल और सेवा कर (जीएसटी) दरों में संशोधन के बाद देश में खपत में तेजी आई है।
विदेशी निवेशक थोड़े हतोत्साहित जरूर दिख रहे हैं। मैंने इससे पहले कभी भारत को लेकर उनका ऐसा मायूस नजरिया नहीं देखा था। अगर तेजी से उभरते बाजारों के शेयरों का बेहतर प्रदर्शन जारी रहता है तो आगे स्थिति सुधरनी चाहिए। पिछले 15 वर्षों में सबसे कमजोर प्रदर्शन को देखते हुए अधिकांश वैश्विक संस्थान इन बाजारों को लेकर बहुत कम उत्साहित हैं।
हालांकि, ये संस्थान अमेरिकी डॉलर से जुड़े जोखिम और मोटे लाभ के लिए अमेरिकी शेयरों पर अधिक निर्भरता को लेकर चिंतित हैं। जैसे ही रकम वापस ईएम शेयरों में आएगी वैसे ही भारत को भी इसका लाभ मिलेगा क्योंकि हालात इससे अधिक डांवाडोल होने वाला नहीं है। हम लगभग भूल ही गए हैं कि बाजार में एक साथ घरेलू और विदेशी निवेशकों की लिवाली का नजारा कैसा दिखता है क्योंकि पांच वर्षों से इस मामले में निराशा ही हाथ लगी है। इस तरह, हालात तेजी से संभलने की पूरी गुंजाइश दिख रही है।
वर्ष 2026 में कभी न कभी एआई व्यापार में एक उथल-पुथल जरूर आएगी। हालांकि, इसे लेकर आकर्षण खत्म नहीं होगा मगर उतार-चढ़ाव से इनकार नहीं किया जा सकता। रणनीति में बदलाव और संदेह स्वाभाविक हैं भले ही ये कुछ देर के लिए ही क्यों न हों। एआई के प्रति झुकाव कम होने से भारत को बहुत बड़ा लाभ होगा। हमने इस व्यापार में शिरकत नहीं की है इसलिए सब उथल-पुथल की स्थिति में भारत की तरफ ही देखेंगे। ईएम इक्विटी इंडेक्स का 75 फीसदी केवल चार बाजारों (चीन, ताइवान, भारत और दक्षिण कोरिया) से बना है। भारत को छोड़कर अन्य तीनों एआई व्यापार से लाभ उठाने वाले बड़े देश रहे हैं। एआई के प्रति आकर्षण कमजोर होने पर भारत पूंजी लगाने के लिए स्पष्ट तौर पर एक माकूल जगह होगी।
भारत सकारात्मक सुधारों का परिदृश्य भी तैयार कर रहा है। सरकार आर्थिक विकास को लेकर गंभीर दिख रही है, खपत बढ़ाने के उपाय कर रही है और संरचनात्मक सुधारों पर कदम आगे बढ़ा रही है। अंत में नियामकीय बाधाएं दूर करने के लिए कदम उठाए जाएंगे।
भारत को उसकी व्यापक आर्थिक स्थिरता के लिए पर्याप्त श्रेय नहीं दिया जा रहा है। हमने पिछले पांच वर्षों में राजकोषीय घाटा 500 आधार अंक तक कम लिया है और मजबूत आर्थिक वृद्धि दर्ज की है। हमारा अधिकांश राजकोषीय समायोजन पूरा हो गया है। किसी भी अन्य बड़ी अर्थव्यवस्था ने राजकोषीय समायोजन पर भारत की तरह सक्रिय कदम नहीं उठाए हैं। सभी व्यापक संकेतक सकारात्मक दिख रहे हैं। हालात स्थिर दिखने का सकारात्मक असर पूंजी पर कम लागत के रूप में सामने आना चाहिए।
यह कहना भी गलत नहीं होगा कि वर्ष2026 में अमेरिका के साथ व्यापार समझौता होने की पूरी गुंजाइश है। भारत इस समय चीन से अधिक शुल्क का भुगतान कर रहा है। अगर अमेरिका चीन को अपना रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी नहीं समझेगा तभी भारत के साथ व्यापार समझौता नहीं हो पाएगा। उम्मीद तो यही है कि देर-सबेर अमेरिका की अक्ल ठिकाने आ जाएगी।
मूल्यांकन और रुपया दोनों मोर्चों पर हमने पहले ही अधिकांश समायोजन कर चुके हैं। वैसे तो हम हमेशा बाजार में मूल्यांकन सस्ता बनाए रखना चाहेंगे मगर फिलहाल मूल्यांकन सितंबर 2024 के शिखर की तुलना में लगभग 15-20 फीसदी कम है। अब हम दीर्घकालिक औसत के साथ अधिक तालमेल दिखा रहे हैं। रुपया एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रही है। यहां से हमें स्थिरता और डॉलर से जुड़े जोखिम भी कम दिखने चाहिए। कच्चा तेल इस समय 60 डॉलर प्रति बैरल है इसलिए चालू खात से जुड़ी कोई समस्या भी नहीं है। रुपये में आगे और अधिक कमजोरी शायद नहीं आएगी।
आपके उत्साहित होने के लिए एक वजह यह भी है कि घरेलू स्तर पर निवेश मजबूत बना हुआ है। पिछले 15 महीनों में किसी तरह का रिटर्न न मिलने के बाद भी म्युचुअल फंडों में खुदरा निवेश प्रति महीने 3 अरब डॉलर की दर से जारी है। निवेशकों की संख्या और प्रवाह दोनों में ही छोटे शहरों की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी जारी है। मगर यह रफ्तार कम पड़ जाती है तो फिर सभी संभावनाएं धूमिल हो जाएंगी। बाजार अपने पांव नहीं जमाए रख पाएगा। भारत संरचनात्मक घरेलू प्रवाह के दम पर ही ऊंचा प्रीमियम मूल्यांकन बनाए रखने में सक्षम है।
एक और चिंता नए निर्गमों और मोटे सौदों (ब्लॉक डील) से शेयरों की बाढ़ है। उम्मीद तो यही है कि निवेशक स्वयं अपने पर नियंत्रण रखेंगे और केवल अच्छी गुणवत्ता वाले शेयर वाजिब मूल्यांकन पर बाजार में आने देंगे। यह द्वितीयक बाजार में बड़े अवसर खोल रहा है क्योंकि निवेशक नए निर्गमों के पीछे भागते हैं। अगर इन पर नियंत्रण नहीं हुआ तो बाजार ठिठक सकता है।
कुल मिलाकर, मुझे लगता है कि 2026 में संभावनाएं 2025 की तुलना में कहीं बेहतर हैं। बाजार 20 फीसदी सस्ता है। भारत को लेकर निवेशक पहले ही अपनी प्रतिक्रिया दिखा चुके हैं और 30 वर्षों में इसके सबसे खराब सापेक्ष प्रदर्शन का दौर भी लगभग खत्म होने वाला है। कमाई में तेजी आ रही है, सरकार सुधार के इरादे दिखा रही है और कोई व्यापक असंतुलन की स्थिति भी नजर नहीं आ रही है। इनके साथ घरेलू प्रवाह मजबूत बना हुआ है।
इस तरह, भारत दांव लगाने के लिए एक दमदार अवसर पेश कर रहा है। एआई को लेकर जारी दिलचस्पी जारी रहने पर भी हमें अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए मगर एआई को लेकर आकर्षण कम हुआ तो भारत का प्रदर्शन तुलनात्मक रूप से और बेहतर हो जाएगा। एआई और अमेरिका में निवेश से जुड़े जोखिम कम करने के इच्छुक वैश्विक निवेशकों के लिए एक विकल्प के रूप में भारत मजबूत दावेदारी पेश कर रहा है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)