जीएसटी संग्रह में 31 फीसदी का इजाफा हुआ है लेकिन इसमें आयात की बहुत अहम भूमिका है। इस विषय में बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य
चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही के कर संग्रह के आंकड़े हाल ही में जारी हुए हैं। आंकड़ों से संकेत मिलता है कि संग्रह में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है। प्रत्यक्ष कर जिसमें प्रमुख तौर पर कॉर्पोरेशन कर और व्यक्तिगत आय कर शामिल होते हैं, में 24 फीसदी का इजाफा हुआ जबकि वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी में 31 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली।
उत्पाद और सीमा शुल्क के लिए केवल पांच माह के आंकड़े सामने हैं और इनमें क्रमश: 17 प्रतिशत और 14 प्रतिशत की कमी आई है। बहरहाल, इन आंकड़ों से निकलने वाला रुझान कर संग्रह के बारे में कहीं अधिक बारीक कहानी कहता है।
आम बजट के नजरिये से और सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 6.4 फीसदी से कम के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के लिहाज से देखें तो कर संग्रह के आंकड़े यकीनन सार्वजनिक वित्त के लिए बेहतर हैं। वर्ष 2022-23 के सकल राजस्व संग्रह में दो फीसदी से कम वृद्धि होने का अनुमान था पहले पांच महीनों में दर्ज की गई 19 फीसदी की वृद्धि लक्ष्य से काफी अधिक है। यकीनन सरकार को पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पाद शुल्क में कमी के चलते राजस्व में गिरावट और अतिरिक्त व्यय की समस्या से भी निपटना होगा।
मुफ्त राशन योजना के विस्तार तथा उर्वरक सब्सिडी में बढ़ोतरी की तरह इसके लिए भी बजट में प्रावधान नहीं है। लेकिन कम खाद्यान्न खरीद और कुछ केंद्रीय मंत्रालयों के फंड का इस्तेमाल न होने के कारण बचत भी हुई है। कुल मिलाकर सरकार का यह विश्वास उचित ही है कि वह राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल कर लेगी।
उसने 2022-23 की दूसरी छमाही के लिए भी कम उधारी की योजना बनाई है। परंतु उच्च कर संग्रह का आकलन इस आधार पर भी होना चाहिए कि अर्थव्यवस्था के असमायोजित आकार में विस्तार के हिसाब से राजस्व कितना बढ़ा। वर्ष 2022-23 की पहली छमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है लेकिन पहली तिमाही (जीडीपी आंकड़े उसी अवधि के लिए उपलब्ध हैं) में कर संग्रह की तुलना अर्थव्यवस्था के आकार से की जाए तो एक अलग कहानी सामने आती है। अप्रैल-जून तिमाही के दौरान केंद्रीय सकल कर राजस्व 22 फीसदी बढ़कर 6.5 लाख करोड़ रुपये हो गया लेकिन कर-जीडीपी अनुपात में कमी आई है।
जीडीपी में कर राजस्व की हिस्सेदारी अप्रैल-जून 2021 के 10.35 फीसदी से कम होकर 2022 की समान अवधि में 10 फीसदी रह गई। सरकार ने 2022-23 में जीडीपी में सकल कर राजस्व की हिस्सेदारी 10.7 फीसदी रहने का अनुमान जताया था और ऐसे में पहली तिमाही का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं था।
ध्यान रहे कि सकल कर राजस्व में वृद्धि में पहले ही कमी आनी शुरू हो गई है। 2022-23 की पहली तिमाही में यह 22 फीसदी था और इस वर्ष के पहले पांच महीनों में यह 19 प्रतिशत रहा। यहां तक प्रत्यक्ष कर वृद्धि इस अवधि में धीमी हुई है और यह पहली तिमाही के 35 प्रतिशत से घटकर चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में 29 फीसदी रह गई है। एक अन्य मानक है अग्रिम कर संग्रह जो आने वाले महीनों में करदाताओं के आय और कर देनदारी के अनुमानों पर आधारित होता है। 15 जून तक अग्रिम कर संग्रह 33 फीसदी बढ़ा लेकिन 15 सितंबर के अंत तक यह वृद्धि केवल 12 फीसदी रह गई।
दूसरी तिमाही के अग्रिम कर के आंकड़े बताते हैं कि आर्थिक वृद्धि को लेकर हालात बहुत उत्साहवर्धक नहीं हैं। उत्पाद शुल्क संग्रह में कमी को समझा जा सकता है क्योंकि सरकार ने पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती की। इसके चलते अप्रैल-अगस्त 2022 में 17 फीसदी की कमी आई जो 2022-23 के बजट में अनुमानित 14 फीसदी की कमी से अधिक थी। आने वाले महीनों में यह अंतर और बढ़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के मौजूदा रुझान सरकार की मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने की इच्छा पर निर्भर करता है।
जीएसटी राजस्व की बात करें तो 2022-23 की पहली छमाही में कुल राजस्व संग्रह 31 फीसदी बढ़ा हालांकि माह दर माह आधार पर राजस्व वृद्धि मई के बाद लगभग स्थिर बनी रही। बड़ा सवाल यह है कि जीएसटी संग्रह में वृद्धि कितने समय तक बरकरार रह सकेगी? निश्चित तौर पर 20200 की अप्रैल-जून तिमाही में जीएसटी संग्रह की हिस्सेदारी 6.97 फीसदी थी। यह 2021 की समान तिमाही के 6.5 फीसदी और जनवरी-मार्च 2022 के 6.24 फीसदी से अधिक थी।
परंतु इस बात को समझना जरूरी है कि इस वृद्धि में आयात की अहम भूमिका है। अप्रैल-सितंबर 2022 में कुल जीएसटी 31 फीसदी बढ़ी लेकिन इसी अवधि में आयात पर लगने वाले एकीकृत जीएसटी यानी आईजीएसटी में 44 फीसदी का इजाफा हुआ। दूसरे शब्दों में कुल जीएसटी में आयात पर लगने वाले आईजीएसटी का योगदान बढ़कर 27 फीसदी हो गया। पूरे 2021-22 में यह हिस्सेदारी 25 फीसदी थी तथा 2019-20 में यह 22 फीसदी थी।
अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि बढ़ते आयात ने जीएसटी राजस्व को बेहतर बनाए रखने में मदद की है। यह बात हमें इस धारणा की ओर ले जाती है कि सीमा शुल्क राजस्व में कमी आ रही है। यह बात कई लोगों के लिए पहेलीनुमा हो सकती है कि भारत के वाणिज्यिक आयात में निरंतर इजाफे (अप्रैल-सितंबर 2022 तिमाही में 38 फीसदी वृद्धि) के बीच सीमा शुल्क संग्रह में गिरावट आई है।
परंतु तथ्य यह है कि कुल जीएसटी में आयात आईजीएसटी की बढ़ती हिस्सेदारी के साथ आयात पर कुल कर संग्रह भी निरंतर बढ़ा है। कोविड पूर्व वर्ष यानी 2019-20 में सीमा शुल्क राजस्व 1.09 लाख करोड़ रुपये था जो 2021-22 में बढ़कर 1.99 लाख करोड़ रुपये हो गया। इस अवधि में आयात पर आईजीएसटी 2.66 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 3.75 लाख करोड़ रुपये हो गया।
यह सही है कि 2022-23 के पहले पांच महीनों में सीमा शुल्क राजस्व में 14 फीसदी की गिरावट आई लेकिन आयात पर आईजीएसटी के साथ रखकर देखें तो इस अवधि में सरकार को आयात से हासिल होने वाला कुल कर राजस्व बढ़कर 24 फीसदी हो गया।
रुपये का अवमूल्यन और जिंस की ऊंची कीमतों ने भी इसमें योगदान किया होगा। परंतु जो लोग केवल भारत के सीमा शुल्क राजस्व पर नजर रखते हैं और इस नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि देश में आयात शुल्क संग्रह की दर अभी भी कम है, उन्हें इस विषय में दोबारा सोचना चाहिए।