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जमीनी हकीकत: स्वच्छ हवा के रास्ते में खड़ी चुनौतियां

आज दिल्ली फिर ई-बस परिवर्तन जैसी महत्त्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है, लेकिन यह योजना उतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ रही है, जितनी जरूरत है।

Last Updated- November 13, 2024 | 9:10 PM IST
Delhi Weather Update

ये साल के वे दिन हैं जब हर बार की तरह दिल्ली और इसके आसपास विस्तारित शहरों के लोग एक अनचाही मुसीबत का इंतजार करते हैं। सर्दियां दहलीज पर हैं। हवा की गति धीमी पड़ने लगी है और प्रदूषक तत्त्व वातावरण में ठहरने लगे हैं। आने वाले दिनों में यह समस्या इतनी गंभीर होने वाली है कि सांस लेना भी दूभर हो जाएगा।

हम केवल उम्मीद और प्रार्थना ही कर सकते हैं कि वायु और इंद्र देव की कृपा हो तो इस जानलेवा प्रदूषण से छुटकारा मिले। इसका कारण यह है कि वर्षों से हम इसी तरह वायु प्रदूषण से जूझ रहे हैं, लेकिन इससे निपटने के लिए कोई खास उपाय नहीं किए जा रहे हैं।

प्रदूषण से बचाव के फौरी उपाय के तौर पर आपात चेतावनी प्रणाली के रूप में ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रैप) लाया गया था। वायु प्रदूषण बढ़ने पर यह इकलौता काम है, जो प्रदूषण से निपटने के तौर पर हम करते हुए दिखते हैं। लेकिन, यह कदम भी इतनी देर से उठाया जाता है कि उस समय इसका कोई खास फायदा नहीं होता।

इसी समय बताया जाता है कि सरकार कृत्रिम बादलों के जरिये वर्षा कराएगी, जिससे प्रदूषक तत्त्व धुल जाएं और आसमान साफ हो। ऐसी खबरें उस स्थिति में आती हैं जब हम सब इस तथ्य से वाकिफ हैं कि प्रदूषक तत्त्व हवा में फैली नमी से लिपट जाते हैं और बारिश से नमी बढ़ेगी तो यह समस्या दूर होने के बजाय और जी का जंजाल बनेगी।

इसलिए हमें हवा-हवाई बातें न कर, यह समझना होगा कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए आखिर क्या किया जा सकता है। सबसे पहले तो यह देखना होगा कि हमने अभी तक वायु प्रदूषण समाप्त करने के लिए क्या कदम उठाए हैं। यह बात है 1990 के दशक की जब सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायरनमेंट (सीएसई) ने ‘स्लो मर्डर’ यानी ‘तड़पा कर मारना’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसी के साथ सीएसई ने प्रदूषण से निपटने के लिए एक वृहद कार्ययोजना भी पेश की थी।
इसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं कि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत गाडि़यों से निकलने वाला धुआं, तेल ईंधन की खराब गुणवत्ता और वाहन विनिर्माताओं द्वारा उत्सर्जन मानकों का उल्लंघन करना आदि हैं। ईंधन गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने 1990 के अंत में महत्त्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए थे। इनके तहत गाडि़यों के लिए उत्सर्जन मानकों का पालन अनिवार्य कर दिया गया था। यह वह समय था जब भारत स्टेज (बीएस) 1, 2, 3, 4 के दौर से गुजर रहा था और दिल्ली-एनसीआर में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को बेहतर बनाने पर जोर दिया जा रहा था। आज हम बीएस 6 पर काम कर रहे हैं।

वर्ष 1998 में अदालत ने दिल्ली की सड़कों पर 11,000 बसें उतारने का फरमान जारी किया था, ताकि निजी गाडि़यां कम चलें और प्रदूषण से निजात मिले। आज लगभग 26 साल बाद इसकी आधी बसें भी नहीं आ पाई हैं। लेकिन, इस दिशा में पेट्रोल और डीजल जैसे पारंपरिक ईंधन की गुणवत्ता सुधारने पर जोर देने के बजाय त्वरित विकल्प के तौर पर कम्प्रेस्ड नैचुरल गैस (सीएनजी) लाई गई।

सीएनजी ने बड़ी राहत दी और लगातार जहरीली होती हवा के नाजुक दौर में यह महत्त्वपूर्ण कदम साबित हुआ। सन 2000 के दशक में दिल्ली में रहने वाला कोई भी व्यक्ति यह बात बता सकता है कि सरकार के इस फैसले से कितना विवाद खड़ा हुआ, लेकिन यह कदम पासा पलटने वाला था। आज जब हम इलेक्ट्रिक वाहन व्यवस्था अपनाने की तरफ मुड़ रहे हैं तो वाहनों को सीएनजी में बदलने के उस दौर से काफी सबक सीखे जा सकते हैं।

पहला, प्रौद्योगिकी चुनौती। दुनिया के किसी देश ने 1990 के दशक में इतने बड़े पैमाने पर सीएनजी वाहन नहीं अपनाए थे, जितने दिल्ली में लाए गए। इसमें लागत भी एक महत्त्वपूर्ण कारक था। इसका मतलब था कि नीतियां सुरक्षा मानकों से लेकर बसों के मूल स्वरूप तक में प्रौद्योगिकी नवाचार का रास्ता दिखाती हैं।

ज्यादा से ज्यादा सीएनजी वाहन अपनाने के लिए लोगों को वित्तीय प्रोत्साहन का ऐलान किया गया, ताकि पुरानी बसों और तिपहिया वाहनों को आसानी से सड़कों से हटा कर सीएनजी वाहन लाए जा सकें।

दूसरा सबक डीजल-पेट्रोल के स्थान पर सीएनजी वाहन अपनाने की योजना को लागू करने की चुनौती और बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत का रहा। यह कोई थोड़े-बहुत सीएनजी वाहन अथवा बसें लाने का मामला नहीं था, अदालत ने डीजल-पेट्रोल गाडि़यों को पूरी तरह सीएनजी में बदलने का आदेश दिया था और वह भी दो से तीन वर्ष के भीतर। इसके लिए विभागों में आपसी तालमेल और तेजी से कुछ कड़े फैसले लिए जाने थे।

आज दिल्ली फिर ई-बस परिवर्तन जैसी महत्त्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है, लेकिन यह योजना उतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ रही है, जितनी जरूरत है। वर्ष 2023 में पंजीकृत वाहनों की संख्या इससे पहले के साल से दोगुनी दर्ज की गई। यह वृद्धि इस तथ्य के बावजूद है जब पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और घरेलू बजट का एक बड़ा हिस्सा परिवहन पर खर्च हो रहा है।

निजी कारों की संख्या बढ़ने का असर सड़कों पर जाम के रूप में ही सामने नहीं आता, बल्कि इससे नई सड़कें, हाईवे, फ्लाईओवर बनाने तथा प्रौद्योगिकी सुधार एवं ईंधन खपत के तौर पर भी सरकारी खजाने पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ता है। हमारी पुराने वाहनों को कबाड़ बनाने की योजना कारगर साबित नहीं हुई है।

नतीजतन, अभी भी बड़ी संख्या में पुरानी गाडि़यां सड़कों पर जहरीला धुआं निकाल रही हैं, जिनसे हवा प्रदूषित हो रही है। नई गाडि़यां भले प्रदूषण कम फैलाती हों, लेकिन इनकी अत्यधिक संख्या के कारण इस बदलाव का भी कोई फायदा नहीं हो रहा। यह सीधा सा गणित है- ज्यादा गाडि़यां होंगी तो प्रदूषण भी बढ़ेगा।

फेफड़ों को स्वच्छ हवा देने और पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने की जद्दोजहद में उत्सर्जन का दूसरा स्रोत घर के चूल्हे से लेकर फैक्टरियों और ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों में जलने वाला ईंधन है। इसमें सबसे अधिक जैव ईंधन या कोयला होता है। उच्चतम न्यायालय ने कुछ सबसे गंदे ईंधनों में शामिल पेट कोक यानी कार्बनयुक्त ठोस ईंधन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है।

दिल्ली सरकार ने कोयला जलाने पर प्रतिबंध लगाया था, जिसे बाद में पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में लागू कर दिया गया। इस बात पर भी सहमति बनी कि या तो थर्मल पावर संयंत्र स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल करें अथवा बंदी के लिए तैयार रहें। इस दिशा में कोई खास कार्रवाई नहीं हो पाई। सीएनजी अपनाने का एक सबक यह भी है कि किसी भी चीज पर प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए उसका विकल्प देना बहुत जरूरी होता है।

जब डीजल बसों पर रोक लगाई गई तो सीएनजी आपूर्ति व्यवस्था बेहतर की गई। कीमतों के मामले में भी इसे वहनीय रखा गया। उच्चतम न्यायालय भी इस बात से सहमत था कि गंदे ईंधन के मुकाबले स्वच्छ ईंधन को सस्ता रखने के लिए वित्तीय मोर्चे पर कदम उठाए जाने चाहिए। आज भले कोयला जलाने पर प्रतिबंध है, लेकिन प्राकृतिक गैस के ऊंचे दाम होने के कारण उद्योग प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए। हमें आगे बढ़ना है।

मुख्य बात यह है कि हमें हर हाल में यह समझना होगा कि साफ हवा के लिए पूरे वर्ष कार्रवाई करने की जरूरत है। ऐसा तभी हो सकता है जब सब मिलकर और व्यापक स्तर पर काम करें।

(लेखिका सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायरनमेंट से जुड़ी हैं)

First Published - November 13, 2024 | 9:02 PM IST

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