छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव (2023) में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत को नितिन नवीन के राजनीतिक जीवन का सबसे महत्त्वपूर्णमोड़ माना जाता है। पिछले हफ्ते ही उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष घोषित किया गया और वह इस पद को संभालने वाले अब तक के सबसे युवा नेता बन गए हैं। लेकिन उनके करियर को असली रफ्तार साल 2019 में मिली थी जब उन्हें सिक्किम विधान सभा चुनाव में भाजपा के अभियान की कमान सौंपी गई थी।
वर्ष 2019 के उन चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। हालांकि पीके चामलिंग के नेतृत्व वाली सिक्किम लोकतांत्रिक मोर्चे की हार हुई और मुख्यमंत्री के तौर पर उनके पांच बार के कार्यकाल का अंत हो गया। लेकिन इसका फायदा भाजपा को नहीं बल्कि उनके सहयोगी पीएस तमांग और उनके सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चे को मिला। भाजपा ने 32 सदस्यीय विधान सभा में से 31 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए लेकिन पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल सकी। शीर्ष नेतृत्व के लिए यह चौंकाने वाला नहीं था, क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियों के गढ़ में भाजपा को अक्सर मुश्किल होती है चाहे वह झारखंड, पश्चिम बंगाल या तमिलनाडु जैसे राज्य हों। लेकिन, इस नियुक्ति ने नवीन को युवा राजनीति से इतर केंद्रीय स्तर के बड़े नेताओं के साथ काम करने का मंच दे दिया।
नवीन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से हुई और वह भारतीय जनता युवा मोर्चा (बीजेवाईएम) से जुड़े और वर्ष 2010 से 2013 तक इसके राष्ट्रीय महासचिव रहे। इसके बाद वर्ष 2016 से 2019 तक फिर बिहार प्रदेश अध्यक्ष बने। वर्ष 2019 में उन्हें दिल्ली चुनाव के दौरान आरके पुरम विधान सभा क्षेत्र में मदद के लिए बुलाया गया और उन्होंने दिल्ली के सियासी गलियारों में भाजपा नेताओं के साथ अपने ताल्लुक बनाए, विशेषतौर पर रेखा गुप्ता के साथ। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं थी कि नितिन नवीन की नियुक्ति से खुश होने वाली दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता उन्हें सबसे पहले बधाई देने वालों में शामिल थीं।
वर्ष 2019 में अपने चुनाव की रणनीति बनाने के साथ ही (अपने पिता के अचानक निधन के बाद वह पहले ही विधायक बन चुके थे) उन्हें पूरे प्रदेश में भाजपा के भविष्य को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी। उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता उन पर निगाह बनाए हुए थे कि वह सिक्किम के मामले का प्रबंधन किस तरह करते हैं।
उन्होंने उम्मीद जगाई लेकिन इसके साथ ही एक और चुनौती सामने आ गई। वर्ष 2021 से 2024 तक, उन्हें विधान सभा चुनावों से पहले छत्तीसगढ़ का सह-प्रभारी नियुक्त किया गया। उनकी वरिष्ठ सहयोगी डी पुरंदेश्वरी थीं, जो दक्षिण भारतीय राजनीति से अधिक परिचित थीं और उनके बाद ओपी माथुर आए। आमतौर पर निराश जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय बनाने की जिम्मेदारी नवीन पर थी। उस समय पार्टी नेताओं ने खुलकर स्वीकार किया था कि उन्हें भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के सत्ता में लौटने की उम्मीद थी।
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इसलिए नवीन ने यशवंत देशमुख (जनसंघ-भाजपा नेता नानाजी देशमुख के पौत्र लेकिन अपनी पहचान बनाने वाले एक स्वतंत्र चुनाव विश्लेषक) जैसे चुनाव विश्लेषकों को गलत साबित करने का लक्ष्य रखा। नवीन के आकलन में महत्त्वपूर्ण मुद्दा कांग्रेस और भाजपा के बीच 1 से 1.5 फीसदी वोट हिस्सेदारी का अंतर था जिससे जीत और हार के बीच का अंतर तय होता। भाजपा को इसी अंतर को पाटने की जरूरत थी। देशमुख और अन्य लोगों का कहना था कि यह अंतर लगभग 5 फीसदी था।
छत्तीसगढ़ में चुनौती सिर्फ आंकड़ों की नहीं थी, बल्कि नेतृत्व की भी थी। रमन सिंह जैसे बड़े नेता जमीनी कार्यकर्ताओं से दूर हो चुके थे। नवीन ने बहुत कुशलता से इस दूरी को खत्म किया। विधान सभा की बड़ी जीत के बाद उन्हें लोक सभा चुनाव का प्रभारी बनाया गया, जहां भाजपा ने राज्य की लगभग सभी सीटें जीत लीं। जुलाई 2024 में उन्हें राज्य का प्रभारी बना दिया गया, जो उनके बढ़ते कद का प्रमाण था। छत्तीसगढ़ की पूरी टीम 2025 के बिहार चुनावों में उनके साथ चुनाव अभियान का प्रबंधन करने के लिए गई।
संगठन के साथ-साथ बिहार प्रशासन में मंत्री के रूप में नवीन के कार्यकाल पर कम गौर किया गया है जिसे उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ निभाया। उन्होंने 2021 से पथ निर्माण विभाग का कार्यभार संभाला और एक साल के लिए शहरी विकास विभाग को भी इसमें जोड़ा गया। कुछ हफ्ते पहले बिज़नेस स्टैंडर्ड को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि बिहार में अब एक व्यापक सड़क नेटवर्क बन गया है लेकिन कमी इसके रखरखाव में है। विधान सभा चुनावों से कुछ महीने पहले, नवीन ने सड़क रखरखाव नीति की घोषणा की और ऐसा करने वाला यह भारत का पहला राज्य था। नवीन ने इसे राज्य में एक बड़ी जरूरत बताई जहां अब लगभग 1 लाख किलोमीटर सड़कें हैं, जो 2005 में 8,000 किलोमीटर थीं।
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नितिन नवीन की सबसे बड़ी ताकत उनका मिलनसार स्वभाव और विनम्रता है। वह शायद ही कभी अपनी आवाज ऊंची करते हैं और हर कार्यकर्ता के लिए सुलभ रहते हैं। उनके कद के अन्य नेता दिखावा करते हैं। यह सब नवीन को पसंद नहीं है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सह सरकार्यवाह अरुण कुमार के माध्यम से नियमित रूप से उनसे संपर्क बनाए हुए है, जो संघ और भाजपा के बीच महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। संगठन अगले 15 वर्षों में नरेंद्र मोदी से परे भाजपा नेतृत्व को देख रहा है। मोदी और अमित शाह दोनों ही नवीन को पसंद करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि वह कभी पलटकर जवाब नहीं देंगे।