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वर्ष 2023 के लिए पांच अहम सवाल

Last Updated- December 20, 2022 | 11:39 PM IST
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ये प्रश्न नव वर्ष में विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देंगे और भारत के लिए भी ये काफी मायने रखते हैं। इस विषय में जानकारी प्रदान कर रहे हैं अजय शाह 

हममें से कई लोगों की यह प्रवृत्ति होती है कि हम पुराने तरीके से सोचते हैं और भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखते हैं जिसके लिए आर्थिक स्वाधीनता एक राष्ट्रीय नीति हो। हालांकि दुनिया के साथ रिश्ता हमारे लिए भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। महामारी की अवधि में जैसा हमने देखा, विश्व अर्थव्यवस्था की घटनाएं भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाल सकती हैं। इस आलेख में हम पांच उन सवालों पर नजर डालेंगे जो 2023 में विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देंगे और भारत पर भी प्रभाव डालेंगे। भारत में वैश्वीकरण की राह में कई बाधाएं हैं। 2014-15 से लेकर 2021-22 तक चालू खाते में आवक सालाना औसतन 5.3 फीसदी बढ़ी। नॉमिनल अमेरिकी डॉलर में यह वृद्धि काफी धीमी है।

इसके बावजूद बाहरी क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है। सबसे पहले आकार पर नजर डालते हैं। 2021-22 में 0.84 लाख करोड़ डॉलर की राशि बाहर गई और 0.8 लाख करोड़ रुपये की राशि चालू खाते में आई। यह राशि बहुत अधिक है। दूसरा, निर्यात में वृद्धि भी महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था को संभालने की दृष्टि से अहम थी। महामारी के पहले मासिक गैर तेल, गैर स्वर्ण निर्यात 40 अरब डॉलर का था। विकसित बाजारों की वृहद नीति के चलते इनमें इजाफा हुआ और 2021 के आखिर तक यह प्रति माह 55 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह ऐसे समय में अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए एक अहम जरिया था जब घरेलू खपत और निवेश में कमजोरी थी। इस व्यापक बढ़ोतरी के आधार पर समझा जा सकता है कि इस समय बाहरी क्षेत्र की महत्ता कितनी अधिक है।

उसके पश्चात 2022 में हमें इस बात का एक और उदाहरण मिला कि वैश्विक घटनाएं भारतीय निर्यात वृद्धि को किस प्रकार आकार देती हैं? फरवरी में दो बाहरी घटनाएं हुईं: रूस ने यूक्रेन पर हमला किया और अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने दरों में इजाफा करना शुरू कर दिया। साथ ही यह वह समय था जब निर्यात में तेजी का दौर समाप्त हो रहा था, गैर तेल, गैर स्वर्ण निर्यात फरवरी से सितंबर 2022 के बीच करीब 55 अरब डॉलर प्रति माह पर ठहरा हुआ था। इससे वैश्विक घटनाओं और भारतीय निर्यात के बीच रिश्तों पर जोर पड़ा। ऐसे में अब जबकि वर्ष का अंत करीब है तो वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर एक नजर डालना दिलचस्प होगा ताकि उन पांच मुद्दों पर नजर डाली जा सके जो 2023 में मायने रखेंगे।

कई लोग सोचते हैं कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की सख्ती काफी हद तक पूरी हो चुकी है। अमेरिका में निरंतर मुद्रास्फीति और आर्थिक मजबूती को देखते हुए यह संभव है कि दरों में इजाफा जारी रहेगा और वह 5 फीसदी से ऊपर की सहमति पर रुकेगा। यह जिस हद तक होगा हमें उसी हिसाब से वैश्विक वित्तीय तनाव का केंद्रीकरण देखने को मिलेगा जो विकसित बाजारों में दरों में इजाफे के साथ होगा जबकि उभरते बाजारों में प्रतिफल की वांछित दर बढ़ेगी। भारत की बात करें तो अगर रिजर्व बैंक अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये में आ रही गिरावट को रोकना चाहता है तो हमें दरों में इजाफा देखने को मिल सकता है।

अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व मुद्रास्फीति के लिए दो फीसदी से अधिक का स्तर स्वीकार कर ले और इजाफा करना बंद कर दे तो? इससे भारत में फाइनैंसिंग आसान होगी। लेकिन तब परिदृश्य मध्यम अवधि में अमेरिका के कमतर आर्थिक प्रदर्शन का भी होगा। चीन कोविड शून्य नीति और शेष विश्व के साथ शत्रुता में उलझा हुआ है। चीन विश्व अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है और वहां हालात का सामान्य होना दुनिया के लिए मददगार होगा।

परंतु हम कोविड प्रतिबंधों के कम होने की संभावना पर नजर बनाए हुए हैं जबकि विदेशी टीकों की कवरेज कमजोर है। यह भारत की दूसरी लहर साबित हो सकता है। महामारी के दौरान दुनिया भर में सरकार, संस्था और व्यक्तिगत स्तर पर कर्ज का स्तर बढ़ा। मौजूदा ब्याज दर और 2023 में ऊंची ब्याज दर का संभावित परिदृश्य इनमें से कई दिक्कतों की वजह बना रहेगा। कमजोर वृद्धि और बढ़ती ब्याज दर के परिदृश्य में 2023 में कई संस्थाओं को ऋण संकट का सामना करना होगा। यूक्रेन युद्ध यूरोपीय अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रहा है। रूस यूरोप की ऊर्जा आपूर्ति रोककर उसे यूक्रेन का समर्थन करने से रोकना चाहता है और यूरोप इससे परेशान है।

यूरोप में ऊर्जा कीमतें बढ़ते ही नवीकरणीय ऊर्जा के लिए जमकर निवेश शुरू हुआ। संभव है कि 2023 में हालात बेहतर हों। दिसंबर, जनवरी और फरवरी में जाड़ों का तापमान मायने रखता है। 2023 के आखिर तक यूरोप में गैस इन्वेंटरी को लेकर चिंता उत्पन्न होगी और यूरोप पूरे 2023 के दौरान तरल प्राकृतिक गैस की निरंतर खरीद करेगा। प्रतिबंधों के कारण रूस की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई है जिससे युद्ध का अंत होने की संभावना बढ़ गई है। परंतु रूस का आक्रमण समाप्त होने के बाद भी लगता नहीं है कि वह रूस की मौजूदा सरकार पर ऊर्जा की निर्भरता स्वीकार करेगा। यानी यूरोप की ऊर्जा संबंधी कठिनाइयां धीरे-धीरे जाएंगी।

अमेरिकी ब्याज दरों, चीन की अर्थव्यवस्था, कर्ज की निरंतरता और यूक्रेन युद्ध के बीच एक संभावना यह भी है कि विश्व अर्थव्यवस्था का कुछ हिस्सा और भारत भी मुश्किल में पड़ जाए। अधिनायकवादी शासनों में राजनीतिक उथलपुथल की आशंका अधिक है। इसमें चीन, अमेरिका और ईरान आदि शामिल हैं। अंत में हम सामान्य समय से नहीं गुजर रहे हैं। ऐसे में आर्थिक चरों के बीच पारंपरिक मूल्य और रिश्ते कारगर नहीं होंगे। इन ऐतिहासिक रिश्तों का इस्तेमाल करने वाले चकित होंगे। यह ऐसा समय है जब एकाधिक अनुशासनों में विचार करना होगा तथा ऐसी व्यवस्था पर नजर डालनी होगी जो अनुशासन की सीमाओं को नहीं मानती।

हम 2023 के लिए पूर्वानुमान पर विचार करते हैं तो हल्की वैश्विक मंदी को लेकर लगभग आम सहमति है। अमेरिकी मौद्रिक नीति, चीन की आर्थिक स्थिति, उच्च कर्ज, यूरोप में सुधार की राह और अप्रत्याशित संकट ही 2023 में विश्व अर्थव्यवस्था को आकार देंगे। भारत के रणनीतिकारों को उन पर नजर रखनी होगी, उनमें से प्रत्येक को लेकर एक नजरिया विकसित करना होगा, यह विचार करना हागा कि कैसे वैकल्पिक परिदृश्य उसके उद्देश्यों को प्रभावित करेगा और साथ ही कई विपरीत परिस्थितियों के लिए रक्षात्मक रणनीति बनानी होगी।
(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published - December 20, 2022 | 9:10 PM IST

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