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GST 2.0 की रूपरेखा: कर संरचना सरल बनाने पर हो जोर

जीएसटी का अब तक का सफर अन्य सुधारों के लिए भी एक मिसाल है। दर युक्तिसंगत बनाने की प्रक्रिया से GST एक अच्छा और सरल कर ढांचा बन जाएगा। बता रहे हैं

Last Updated- July 01, 2025 | 11:11 PM IST
GST

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का पिछले आठ वर्षों का सफर देवताओं द्वारा समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से काफी मिलता -जुलता है। समुद्र मंथन में जिस तरह पहले विष निकला था और फिर अमृत बाहर आया था उसी तरह जीएसटी लागू होने के बाद शुरू में तकनीकी खामियों सहित कई अन्य बाधाएं आईं मगर बाद में इस नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के लाभ दिखने लगे। जीएसटी प्रणाली के बाद राजस्व संग्रह अधिक हो रहा है। लगातर दो महीने जीएसटी राजस्व 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा।

निःसंदेह जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बाद हुए सुधार लाभकारी एवं बड़े बदलाव लाने वाले रहे हैं मगर कुछ कार्य अब भी शेष हैं जिन्हें अंजाम तक पहुंचाना बाकी रह गया है। शुल्क के मोर्चे पर पेश आ रही चुनौतियों के बाद अब नीति निर्धारकों पर जीएसटी दरें युक्तिसंगत बनाने का दबाव बढ़ गया है। यहां एक प्रमुख मुद्दा यह है कि दरें युक्तिसंगत बनाने की प्रक्रिया को राजस्व संग्रह की प्रक्रिया के रूप में अलगाव में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि इसे भी व्यापार नीति एवं वृहद आर्थिक लक्ष्यों के साथ जोड़ा जाना चाहिए।

ब्रिटेन, यूरोपीय संघ (ईयू) और अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं में भारत गहन श्रम आधारित विनिर्माण खंडों जैसे परिधान, चमड़ा, खाद्य प्रसंस्करण और खिलौना के लिए बाजार में अधिक पहुंच दिए जाने की मांग कर रहा है। यह कहना भी ठीक है कि इन क्षेत्रों के उत्पादों पर घरेलू कर जीएसटी के अंतर्गत मेरिट रेट पर लगनी चाहिए। अब अहम सवाल यह है कि फिर मेरिट दर क्या होनी चाहिए? ज्यादातर लोग यह कह रहे हैं कि यह दर 5  फीसदी की जगह 8 फीसदी होनी चाहिए नहीं तो महत्त्वपूर्ण इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का अंबार लग जाएगा और ये उत्पाद प्रमुख आयातों पर आईटीसी का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।

आयात नीति के मोर्चे पर इन चार क्षेत्रों में केवल एक बार इस्तेमाल होने वाले सभी कच्चे माल एवं मध्यवर्ती वस्तुओं पर शून्य आयात शुल्क लगना चाहिए, साथ ही गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों सहित सभी गैर-व्यापार बाधाओं से भी छूट मिलनी चाहिए। जीएसटी दर युक्तिसंगत बनाने की प्रक्रिया और व्यापार नीति के बीच यह जुड़ाव निवेश में बदलाव के सापेक्ष रोजगार में बदलाव का अनुपात (निवेश की रोजगार लोच) बढ़ाकर रोजगार के नए अवसर तैयार करने में मददगार होगा। निवेश की रोजगार लोच वर्ष 2000 के 0.44 से गिरकर वर्ष2024 में 0.16 हो गई है।

मेरिट दर 8 फीसदी तय होने के साथ ही हम दवाओं और कपड़ों को इसके दायरे में लाने के बाद 12  फीसदी की श्रेणी का 18  फीसदी मानक दर श्रेणी में विलय कर सकते हैं। इससे कपड़ा क्षेत्र पर 5 फीसदी (कपास के धागे और कम मूल्य के परिधानों के लिए) और 12 फीसदी (उच्च मूल्य के परिधानों के लिए) की दोहरी दर लगनी बंद हो जाएंगी और 8  फीसदी की एक ही दर लागू होगी। इसके अलावा, सभी खाद्य उत्पादों को मेरिट रेट के तहत लाने से विभिन्न प्रकार के वर्गीकरण से जुड़े विवाद दूर हो जाएंगे जिन पर वर्तमान में मीडिया में काफी टीका-टिप्पणी हो रही है।

दरें युक्तिसंगत बनाने की प्रक्रिया के अगले चरण में सभी प्रकार की छूट एवं रियायतों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना होगा। इसके लिए यह मानक निर्धारित किया जाना चाहिए कि छूट केवल उन वस्तुओं तक सीमित रहेगी जो जीएसटी-प्रणाली लागू होने से पहले मूल्य वर्द्धित कर यानी वैट से मुक्त थीं। दोहरे नियंत्रण, अधिकतम सीमा और छूट पर गठित समिति ने अपनी 2015 की रिपोर्ट में ऐसा ही सुझाव दिया था। जिन उत्पादों पर छूट नहीं होगी उन पर मेरिट दर लागू होगी।

जीएसटी दरें युक्तिसंगत बनाने की दिशा में दूसरा कदम 28  फीसदी दर श्रेणी में उत्पादों की मौजूदगी कम करने की दिशा में होना चाहिए। एयर कंडीशनर और डिशवॉशर सहित सभी टिकाऊ महंगी वस्तुओं को 18  फीसदी दर श्रेणी में लाना चाहिए। इससे इन उत्पादों के बाजार का आकार बढ़ेगा जिससे घरेलू निवेश अधिक टिकाऊ हो जाएगा। इसी तरह, दोपहिया वाहनों को भी 18  फीसदी कर श्रेणी में लाया जाना चाहिए।

सीमेंट को 28  फीसदी दर श्रेणी से निकाल कर 18  फीसदी श्रेणी में लाना एक बड़ा बदलाव होगा। इससे राजस्व संग्रह को बड़ा नुकसान पहुंचेगा मगर निर्माण परियोजनाओं पर कम व्यय से इसकी आंशिक रूप से भरपाई हो जाएगी। यह उपाय किफायती आवास परियोजनाओं को भी बढ़ावा देगा, जो वर्तमान में पिछड़ रही हैं। सीमेंट से राजस्व हानि की भरपाई के लिए सरकार को सोने एवं इससे बने आभूषणों पर शुल्क 3  फीसदी से बढ़ाकर 6 फीसदी कर देना चाहिए। समानता बहाल करने के आधार पर यह बदलाव उचित ठहराया जा सकता है।

जीएसटी प्रणाली में सबसे बड़ी जटिलता मुआवजा उपकर से पेश आती है। यह सिगरेट, वायु मिश्रित पानी और पान मसाला जैसे हानिकारक उत्पादों पर विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल कर अलग-अलग दरों पर लागू किए जाते हैं। उपकर व्यवस्था अगले साल समाप्त होने वाली है, इसलिए इसे 40  फीसदी की सामान्य दर में विलय करने का यह एक अवसर है। यह 40  फीसदी कर सभी हानिकारक उत्पादों पर एक समान रूप से उनके मूल्य के आधार पर लगाया जाता है। वर्तमान में यदि हम मुआवजा उपकर को भी 28  फीसदी की दर के साथ जोड़ दें तो समग्र दर 36 फीसदी से 38  फीसदी के बीच पहुंच जाती है। औसत जीएसटी भार को बढ़ाने के लिए इसे 40 फीसदी तक पूर्णांकित किया जा सकता है, जो जीएसटी-पूर्व युग से कम है। दरें युक्तिसंगत बनाने की प्रक्रिया स्वच्छ ऊर्जा से भी जोड़ी जा सकती है।किसी भी आकार के सभी इलेक्ट्रिक वाहनों को वर्तमान 28 फीसदी से 18 फीसदी श्रेणी में लाया जाना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप न्यूनतम छूट और कई उपकर दरें धीरे-धीरे समाप्त होने के साथ 8, 18 और 40 फीसदी की तीन-स्तरीय कर श्रेणी की संरचना तैयार होगी।

प्रस्तावित जीएसटी संरचना कई उद्देश्य हासिल करेगी। यह दर ढांचा सरल बनाएगी, विभिन्न प्रकार के उपकर समाप्त करेगी, श्रम-गहन विनिर्माण को बढ़ावा देगी और जीएसटी को स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में भी ले जाएगी। यह मुद्रास्फीति बढ़ाए बिना जीएसटी कर भार मौजूदा लगभग 12  फीसदी से बढ़ा देगी। दवाओं, कपड़ों और किफायती आवास जैसी जनसाधारण के उपभोग की वस्तुओं पर कम कर लगने से आबादी के एक हिस्से को लाभ पहुंचेगा। इसके अलावा, व्यापार नीति और जीएसटी युक्तिसंगत बनाने की प्रक्रिया के बीच तालमेल स्थापित करने से व्यापार लागत कम हो जाएगी जिससे अधिक श्रम की जरूरत वाले विनिर्माण क्षेत्र में विदेशी और घरेलू निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।

जीएसटी की 2.0 संरचना लागू करने के बाद जीएसटी 3.0 शुरू की जा सकती है। इसके कार्यान्वयन के लिए बिजली, रियल एस्टेट और पेट्रोलियम क्षेत्र के कुछ हिस्सों को जीएसटी के दायरे में लाना होगा। यह कदम कारक बाजार सुधारों पर भी व्यापक प्रभाव डालेगा। राज्यों के साथ सहमति बनाने के लिए एक श्वेत पत्र (संभवतः मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड या सीबीआईसी के परामर्श से तैयार किया गया) प्रसार और चर्चा के लिए नीति आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इसे फिर मंजूरी के लिए जीएसटी परिषद में भेजा जा सकता है।

दर युक्तिसंगत बनाने की कवायद से जीएसटी एक अच्छा और सरल कर ढांचा बन जाएगा। जीएसटी का अब तक का सफर अन्य सुधारों के लिए भी एक मिसाल है। यह हमें बताता है कि जब केंद्र और राज्य ईमानदारी से सहयोगात्मक संघवाद के साथ आगे बढ़ेंगे तो इसके क्या लाभ हो सकते हैं।

(लेखक सीबीआईसी के सदस्य रह चुके हैं)

First Published - July 1, 2025 | 10:37 PM IST

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