वित्त वर्ष 2023-24 के प्रावधानों का अध्ययन करने के बाद सभी विशेषज्ञ एक ही बात कह रहे हैं। उनका कहना है कि बजट में कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाया गया है जिसे किसी को भी किसी तरह की हानि पहुंचेगी। दरअसल बजट से पहले कहा जा रहा था कि लोगों को खुश करने के चक्कर में सरकार राजकोषीय मोर्चे पर समझौता कर सकती है।
बजट को लेकर एक सतर्क सोच रखना अपनी जगह सही है मगर कई ऐसी बातें हैं जिन्हें लेकर वित्त मंत्री और सरकार की सराहना की जानी चाहिए। खासकर, पूंजीगत व्यय बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया है। सरकार ने शहरी विकास एवं बिजली क्षेत्र में सुधार लाने के लिए राज्यों को राजकोषीय प्रोत्साहन भी देने की घोषणा की है। इस कदम की भी प्रशंसा की जानी चाहिए।
अप्रत्यक्ष कर के मोर्चे पर धारणा में एक अहम बदलाव यह देखा जा रहा है। ऐसी सोच बनती दिख रही है कि संरक्षणवादी रवैये से किसी का भला नहीं होगा। खासकर, ऐसे समय में जब भारत जी-20 देशों की अध्यक्षता कर रहा है और संरक्षणवादी रवैये से दुनिया में भारत की छवि पर प्रतिकूल असर होगा। यह धारणा बनती दिख रही है कि भारत को यह संदेश भेजना चाहिए कि दुनिया भर में आर्थिक संपन्नता वैश्विक व्यापार के विस्तार पर निर्भर है।
वैसे तो बुनियादी सीमा शुल्क में कोई बदलाव नहीं किया गया है मगर इसे तार्किक बनाने का प्रयास जरूर किया गया है। इसके तहत सीमा शुल्क की श्रेणियों को 21 से घटाकर 13 कर दिया गया है। स्पेशल स्टील, मोबाइल फोन, कैमरा, टेलीविजन और किचन चिमनी में इस्तेमाल होने वाले कल-पुर्जों पर सीमा शुल्क में कमी की गई है।
सीमा शुल्क में विभिन्न बदलावों के बीच उन उपकरणों के उत्पादन पर भी जोर दिया गया है जिनके विनिर्माण की संभावनाएं और क्षमता दोनों ही मौजूद हैं। इन क्षेत्रों को महत्त्वपूर्ण उपकरणों की जरूरत होती है और इनके उपलब्ध नहीं होने पर विनिर्माण कार्य मुश्किल हो जाता है। इस बजट में कुछ क्षेत्रों की संभावनाओं पर विचार करते हुए सीमा शुल्क में बदलाव की पहल की गई है। राजस्व बढ़ाने के उपाय के तौर पर सरकार ने सिगरेट की विशेष श्रेणियों पर राष्ट्रीय आपदा शुल्क (एनसीसीडी) 16 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है। इससे कुछ खास सिगरेट महंगी हो जाएंगी।
घरेलू स्तर पर विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कीमती धातुओं के क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया है। सोना एवं चांदी से बने आभूषणों पर शुल्क बढ़ा दिया गया है। इसका मकसद भारत में इन वस्तुओं का मूल्य वर्द्धन करना है। हीरा कारोबार क्षेत्र पर भी बजट में विशेष ध्यान दिया गया है।
भारत में प्राकृतिक हीरे का अभाव है जिसे खास तौर पर जेहन में रखा गया है। इसके साथ ही निर्यात जारी रखने के लिए आपूर्ति निर्बाध रखने पर भी जोर दिया गया है। इन दोनों बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने प्रयोगशालाओं में तैयार होने वाले हीरों को बढ़ावा देने के लिए एक योजना तैयार की है। प्रयोगशालाओं में तैयार होने वाले हीरे रासायनिक संरचना के लिहाज से प्राकृतिक हीरे की तरह ही होते हैं।
सरकार ने प्रयोगशालाओं में तैयार होने वाले हीरों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले बुनियादी तत्त्वों पर बुनियादी सीमा शुल्क घटा दिया है। अच्छी गुणवत्ता के हीरे तैयार करने के लिए विशेष शोध कार्यों में मदद दी जा रही है। इन उपायों से हीरे और इनसे बने आभूषणों के निर्यात में निरंतरता बनी रहेगी।
इन्वर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर में त्रुटियां दूर करने के लिए दरों को तार्किक बनाने के प्रयास किए गए हैं। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि विनिर्माण के बीच के चरण में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की तुलना में कल-पुर्जों और तैयार उत्पाद पर शुल्क कम रहे। भारत विनिर्माण में अधिक मूल्य वर्द्धन के लिए कल-पुर्जों और उपकरणों पर सीमा शुल्क में बदलाव किए गए हैं।
यह तर्क दिया जा सकता कि उत्पाद संबद्ध प्रोत्साहन को और अधिक बढ़ावा देने के लिए कुछ विशेष कल-पुर्जों और उपकरणों पर सीमा शुल्क में और अधिक कटौती की जानी चाहिए थी। ये कल-पुर्जों और उपकरण वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) शुल्क के अध्याय 84 और 85 के तहत आते हैं।
जलवायु एवं पर्यावरण के हितों के लिए शुरू की गई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए एक अहम घोषणा की गई है। इसके तहत भी सीमा शुल्क घटाने का प्रस्ताव दिया गया है। उदाहरण के लिए एथेनॉल उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली सामग्री पर सीमा शुल्क कम कर दिया गया है। हालांकि यहां एक अहम अवसर भी हाथ से निकल गया है।
स्वच्छ कोयला तकनीक के लिए रकम जुटाने के लिए सरकार कोयले पर उपकर लगा सकती थी। भारत में प्राकृतिक गैस का अभाव है और इस वजह से जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ने में बाधा आ सकती है। इस बाधा को दूर करने के लिए प्राकृतिक गैस की जगह स्वच्छ कोयला तकनीक पर जोर देना जरूरी है।
बजट में मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सीमा शुल्क को 18 प्रतिशत से घटाकर कम से कम 10 प्रतिशत तक किया जा सकता था। ऐसा होने पर भारत इस मामले में इंडोनेशिया, थाईलैंड और वियतनाम के समकक्ष आ सकता है। सरकार सीमा शुल्क घटाती तो यह इसलिए भी एक अहम कदम माना जाता क्योंकि देश में विनिर्माण को बढ़ावा देने की जरूरत है और वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ने से आयात महंगा होता जा रहा है।
पेशेवर इस बात की आलोचना करते रहे हैं कि सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए उपकर और अधिभार का सहारा ले रही है लेकिन इनसे प्राप्त रकम राज्यों के साथ साझा नहीं करती है। 15वें वित्त आयोग में भी इस बात पर चिंता जताई गई है। राजस्व संग्रह और इसका बंटवारा संघीय व्यवस्था के अनुरूप होना चाहिए।
केंद्रीय बजट में जीएसटी परिषद द्वारा लिए गए महत्त्वपूर्ण निर्णयों के संबंध में भी घोषणाएं होनी चाहिए थी। जीएसटी परिषद में होने वाली चर्चा के उलट 1990 के दशक के बाद से बजट में लोगों की रुचि काफी बढ़ गई है। बजट में सरकार के सालाना आय-व्यय के अलावा महत्त्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों की घोषणाएं होने लगी हैं।
बजट को लेकर निष्कर्ष यही है कि कर के मोर्चे पर सरकार यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि कर भुगतान प्रणाली सरल बना कर और कानूनी विवादों से बचकर अधिक राजस्व अर्जित किया जा सकता है। बजट में यह भी संदेश देने का प्रयास किया गया है कि संरक्षणवादी नीति के बाद स्थिति पर पुनर्विचार हो रहा है।