समूचे नेपाल को एकदम ठप कर देने वाली हिंसा ने भले ही वहां के सत्ताधारी प्रतिष्ठान को चकित कर दिया हो लेकिन यह संकट कम से कम एक दशक से पनप रहा था। इसके मूल में नेपाली युवाओं की वह निराशा है जो सरकार की आर्थिक वृद्धि और रोजगार के अवसर तैयार कर पाने में नाकामी से उपजी है। भ्रष्टाचार ने हालात को और बुरा बना दिया। नेपाल के सार्वजनिक जीवन का कमोबेश हर क्षेत्र भ्रष्टाचार का शिकार है। नेपाल की आधी से अधिक आबादी 30 वर्ष से कम आयु की है। काठमांडू में विरोध प्रदर्शन करने वाले आबादी के इस अहम हिस्से को जेनजी के नाम से जाना जाता है। यह अपेक्षाकृत अधिक शिक्षित और वैश्विक माहौल से अवगत युवा हैं।
नेपाल में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले अच्छी खासी संख्या में हैं और ऐसे में सरकार द्वारा 26 मीडिया प्लेटफॉर्मों पर प्रतिबंध लगाने के बाद जो प्रदर्शन पहले छात्रों द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से शुरू किया गया था जल्दी ही उसमें असामाजिक तत्वों की घुसपैठ हो गई। इस व्यापक प्रतिबंध का कारण यह बताया गया कि व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे ये प्लेटफार्म पंजीकृत होने के लिए नेपाल के संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा तय समयसीमा का मान रखने में नाकाम रहे थे।
ऐसे में प्रतिबंध को लेकर हिंसक प्रतिक्रिया हुई और करीब 20 लोगों की जान चली गई। सत्ताधारी कुलीन वर्ग ने जमीनी हकीकतों को समझने में गलती कर दी थी। यह गलत आकलन अपने आप में बताता है कि इस लोकतांत्रिक गणराज्य की सत्ता संरचना में कितनी खामियां हैं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी) और नेपाली कांग्रेस के रूप में दो सबसे बड़े दलों के सत्ताधारी गठबंधन में उम्रदराज कुलीनों का वर्चस्व था। यह गठबंधन अपने ही लोगों से लगातार दूर होता जा रहा था। ये कुलीन वर्ग ही समय-समय पर सत्ता में आते और जाते रहे।
खड्ग प्रसाद ओली (73 वर्ष) जिन्हें हिंसा के बाद अचानक प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा उन्हें 2024 में चुना गया था और यह उनका चौथा कार्यकाल था। वह तब सत्ता में आए जब उनकी पार्टी ने पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ (70 वर्ष) के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया। प्रचंड तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं। सत्ता की साझेदारी की ताजा व्यवस्था के तहत ओली को 2027 में अगले चुनाव तक नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा के साथ बारी-बारी से प्रधानमंत्री का पद संभालना था।
देउबा पांच बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं। इस बीच अर्थव्यवस्था बहुत हद तक विदेश से भेजी जाने वाली राशि पर निर्भर हो गई जो नेपाल के सकल घरेलू उत्पाद का करीब एक चौथाई है। इसमें भारत का बहुत अधिक योगदान है। संयोगवश इस बार भारत उस दोषारोपण से मुक्त है जिसका सामना उसे अक्सर करना पड़ता है।
कानून और व्यवस्था कायम करने का काम अब सेना के पास है और एक पूर्व न्यायाधीश को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया है। इस प्रकार नेपाल का भविष्य अनिश्चितता का शिकार है। सत्ताधारी दल विफल रहे हैं। वर्ष 2008 में बेदखल राजशाही की वापसी तो मुमकिन नहीं नजर आती, हालांकि उसकी प्रतिनिधि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी प्रदर्शनकारियों की नाराजगी से बचने में कामयाब रही है।
नेपाल की राजनीति में पीढ़ीगत बदलाव के प्रतीक दो लोकप्रिय दावेदार अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं। एक हैं बालेन साह (35 वर्ष) जो पूर्व रैपर और काठमांडू के सफल मेयर रहे हैं। दूसरे हैं रवि लामिछाने (51 वर्ष) जो टीवी प्रस्तोता और पूर्व मंत्री हैं और जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सजा हुई थी और जो जेल पर हमले के बाद रिहा हो गए हैं। राजनीतिक व्यवस्था इन दोनों पर कितना भरोसा जताएगी यह देखना होगा।