अल्फाबेट का विशाखापत्तनम में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का बड़ा केंद्र बनाने का निर्णय भारत के तेजी से बढ़ते डेटा सेंटर उद्योग को पूरी तरह बदल देने वाला हो सकता है। गूगल की मूल कंपनी द्वारा इस परियोजना में अगले 5 साल के दौरान 15 अरब डॉलर का निवेश करने की बात कही गई है। यह निवेश ऐसे समय में आ रहा है जब अमेरिकी शुल्क वृद्धि के कारण भारत और अमेरिका के बीच हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। गूगल की यह अमेरिका के बाहर अब तक की सबसे बड़ी परियोजना होगी।
गूगल 12 देशों में डेटा सेंटर स्थापित कर चुकी है। यह निवेश भूराजनीतिक तनावों और संभावित कानूनी जटिलताओं के बावजूद किया जा रहा है। इसका मतलब यह है कि अल्फाबेट का प्रबंधन यह मानता है कि इसके संभावित लाभ, जोखिम से कहीं अधिक हैं। कानूनी मसलों के बावजूद अल्फाबेट भारत को एक प्रमुख बाजार मानता है। भारत ऐंड्रॉयड फोन का एक बड़ा बाजार है और इसके साथ ही दुनिया में सबसे अधिक यूट्यूब उपयोगकर्ता भी भारत में ही हैं। प्रस्तावित केंद्र से 1,88,000 नौकरियां तैयार हो सकती हैं।
अदाणी समूह और भारती एयरटेल गूगल के साथ साझेदारी करके अधोसंरचना विकास करेंगे। इसमें एक नया अंतरराष्ट्रीय सब-सी गेटवे (जहां ऑप्टिकल केबल समुद्र से बाहर आती हैं) स्थापित करने की बात शामिल है। इस परियोजना में क्लाउड और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस यानी एआई अधोसंरचना शामिल होंगी जो नवीकरणीय ऊर्जा व्यवस्था से संचालित होंगी और फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क से जुड़ी होंगी। यह आंध्र प्रदेश सरकार की 2029 तक 6 गीगावॉट डेटा सेंटर क्षमता हासिल करने की योजना का हिस्सा है।
ये सेंटर भौतिक सुविधाएं हैं जहां ऐसे कंप्यूटिंग और नेटवर्किंग उपकरण रहते हैं जिनका इस्तेमाल डेटा संग्रह, प्रसंस्करण, भंडारण और वितरण के लिए किया जा सकता है। अचल संपत्ति के अलावा इस व्यवस्था के संचालन और चीजों को ठंडा रखने के लिए बहुत अधिक बिजली की आवश्यकता होगी। यही वजह है कि डेटा सेंटर की क्षमताओं को गीगावॉट में आंका जाता है जो बिजली मापने की इकाई है, बजाय कि गीगाबाइट के।
इतना ही नहीं बिजली की 24 घंटे उपलब्धता आवश्यक है वह भी वोल्टेज में उतार चढ़ाव के बिना। यह इंजीनियरिंग की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण हो सकता है। राज्य सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए जमीन और बिजली सब्सिडी देने की घोषणा की है। वह डेटा सेंटर उद्योग को बढ़ावा देने वाले नीतिगत बदलावों का लाभ उठाने वाले शुरुआती राज्यों में शामिल है। वर्ष2027-28 तक इरादे के मुताबिक एक लाख करोड़ डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने के लिए भौतिक अधोसंरचना तैयार करने के लिए डिजिटल अधोसंरचना कायम करना जरूरी है।
भारत के पास अन्य लाभ भी हैं। डेटा सस्ता है और भारत दुनिया का सबसे बड़ा डेटा ग्राहक भी है। हमारे यहां बहुत बड़ी डिजिटल आबादी है जिसकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। परंतु भौतिक क्षमता और इकोसिस्टम के साथ विधायी और नियामकीय नीतिगत बदलाव भी अहम हैं। दुनिया की बड़ी कंपनियों को भारत में अपना डेटा सेंटर स्थापित करने के लिए आकर्षित करने में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों को यह विश्वास होना चाहिए कि उनका डेटा भारत में मौजूद सर्वर में पूरी तरह सुरक्षित है। भारत की नीति डेटा स्थानीयकरण पर जोर देती है और वह डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन ऐक्ट तथा संबंधित नियमों के जरिये सुरक्षित है। गूगल की प्रतिबद्धता और इसके पहले माइक्रोसॉफ्ट एवं एमेजॉन जैसी कंपनियों की भागीदारी इस नीति की पुष्टि करती है।
मुंबई, चेन्नई, पुणे, हैदराबाद, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, बेंगलूरु और कोलकाता जैसे शहरों में डेटा सेंटर की क्षमताएं विकसित हो रही हैं क्योंकि कई राज्य निवेश आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत की डेटा सेंटर क्षमता 2024 में 1 गीगावॉट पार कर गई जो 2019 की तुलना में 200 फीसदी अधिक है।
रोजगार के अलावा इस बड़ी परियोजना का भारत में मौजूद होना देश के अपने आर्टिफिशल मिशन को गति देने में मददगार होगा। इसके लिए अत्यधिक कंप्यूटिंग क्षमता की जरूरत होती है। खासकर ऐसे विशेष केंद्रों की मांग बढ़ रही है जहां चिप को कस्टमाइज्ड तरीके से डिजाइन किए गए सर्वरों में एकत्रित किया जा सके। विशाखापत्तनम और अन्य ऐसे केंद्रों से लिया सबक भारत को वह क्षमता विकसित करने में मदद करेगा जिसकी उसे जरूरत है।