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Editorial: अरावली पर संकट गहराया, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बढ़ेगा खनन

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार किए गए मंत्रालय के मानदंड के अनुसार अरावली उन भूआकृतियों को कहा गया है जो स्थानीय भूभाग से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई पर मौजूद हों

Last Updated- December 01, 2025 | 10:24 PM IST
Aravalli

धूल से होने वाला भीषण प्रदूषण और तेजी से कम होता हुआ भूजल स्तर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर के समक्ष मौजूद सबसे प्रमुख चुनौती है। सर्वोच्च न्यायालय का विगत 21 नवंबर का निर्णय इन समस्याओं को और बढ़ा सकता है तथा इस क्षेत्र के पर्यावास को गंभीर चुनौती पेश कर सकता है।

न्यायालय ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अरावली पर्वत और श्रृंखलाओं की दी गई परिभाषा को स्वीकार कर लिया है जिसके चलते दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक के बड़े हिस्सों में खनन और निर्माण संबंधी गतिविधियां बढ़ सकती हैं। इससे गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के बड़े हिस्सों में क्षरण और मरुस्थलीकरण की गति तेज हो सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार किए गए मंत्रालय के मानदंड के अनुसार अरावली उन भूआकृतियों को कहा गया है जो स्थानीय भूभाग से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई पर मौजूद हों। इसका मतलब यह है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले इलाकों में खनन और निर्माण की इजाजत होगी। इस परिभाषा की समस्या यह है कि यह भ्रामक रूप से छलावा है क्योंकि इस पर्वतमाला का अधिकांश भाग 100 मीटर की उच्चतम सीमा से नीचे ही है।

यह बात एक अन्य सरकारी संस्थान के आंतरिक आकलन से एकदम स्पष्ट है। उसका नाम है फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया। उसने कहा है कि अरावली श्रृंखला का 90 फीसदी से अधिक इलाका 100 मीटर से नीचे है। न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत परिभाषा में मंत्रालय ने गत वर्ष गठित आंतरिक तकनीकी समिति की परिभाषा की अनदेखी कर दी।

समिति ने ढाल की ऊंचाई और उसके कोण के मानक स्पष्ट किए थे जिससे और भी अधिक पहाड़ियां खननकर्ताओं और डेवलपर्स के बुलडोजरों के दायरे से बाहर हो जातीं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश खनन और अन्य विकास कार्यों के लिए खुली छूट नहीं देता। उसने यह शर्त रखी है कि जब तक सरकार एक टिकाऊ खनन योजना प्रस्तुत नहीं करती, तब तक किसी नई लीज की अनुमति नहीं दी जाएगी।

इस प्रतिबंध से पर्यावरणविदों की चिंता दूर होती नहीं दिखती क्योंकि यह पर्वत श्रृंखला पहले ही दशकों के अवैध खनन और निर्माण के कारण मुश्किल हालात से जूझ रही है। तथ्य तो यह है कि 30 मीटर तक ऊंचे पर्वत भी एनसीआर को धूल से होने वाले प्रदूषण से बचा सकते हैं। वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक समिति नियुक्त की थी जिसने पाया कि राजस्थान में अरावली के 128 पर्वत शिखरों में से 31 अवैध खनन के कारण गायब हो गए हैं। इससे बड़े-बड़े गड्ढे बन चुके हैं जिनके जरिये थार के मरुस्थल की धूल एनसीआर की दिशा में उड़ती है।

पिछले वर्ष अगस्त में अरावली क्षेत्र में भूमि उपयोग पर किए गए एक अध्ययन से पता चला कि 1975 से 2019 के बीच लगभग 8 प्रतिशत क्षेत्र गायब हो गया, मानव बस्तियां 4.5 प्रतिशत से बढ़कर 13.3 प्रतिशत हो गईं, वनाच्छादित क्षेत्र 32 प्रतिशत घट गया और खेती योग्य भूमि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

ऐसी अनमोल पारिस्थितिक संपदा का अंधाधुंध विनाश पिछले कुछ दशकों में क्षेत्र में बढ़ते धूल प्रदूषण और अस्थिर मौसम का कारण बना है। इस बात को इसी महीने के आरंभ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने ही उस फैसले को पलटने के साथ जोड़कर देखें, जिसमें लगभग पूर्ण हो चुकी परियोजनाओं के लिए पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी पर रोक लगाई गई थी, तो यह स्पष्ट है कि पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों का लगातार कमजोर होना चिंताजनक है।

खासकर उस समय जब जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और अधिक बढ़ता जा रहा है। अरावली पर्वतों पर दिए गए अपने ​फैसले की तरह ही, सर्वोच्च न्यायालय ने तर्क दिया था कि आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध जनहित में नहीं होगा। लेकिन प्राकृतिक संसाधनों का विनाश, जो पारिस्थितिक असंतुलन को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाते हैं, जनहित में भी नहीं हो सकता, विशेषकर तब जब गरीब लोग पारिस्थितिकी की क्षति का सबसे अधिक खमियाजा भुगतते हैं। कम से कम इस परिभाषा पर पुनर्विचार जरूरी है।

First Published - December 1, 2025 | 10:06 PM IST

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