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Editorial: जोखिम में विश्व व्यापार

खतरा इस बात का है कि ट्रंप के निर्देश सर्वाधिक तरजीही देश के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाले होंगे जबकि इस समय संपूर्ण वैश्विक व्यापार में यह धारणा लागू है।

Last Updated- February 17, 2025 | 10:13 PM IST
ASEAN's dilemma in Trump's second term ट्रंप का दूसरा कार्यकाल आसियान की दुविधा

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान टैरिफ में तेजी से इजाफा करके व्यापार नीति को नया आकार देने का अपना इरादा छिपाया नहीं था। ट्रंप को लंबे अरसे से इस बात की चिंता रही है कि पारंपरिक व्यापार व्यवस्था में अमेरिका के साथ न्याय नहीं किया गया है और अब वह एक बार फिर ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं, जहां वे पूरी दुनिया पर अपनी यह धारणा थोप सकते हैं। अपने पिछले कार्यकाल में वह विश्व व्यापार संगठन के विवाद निस्तारण ढांचे को कमजोर करने और उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते (नाफ्टा) पर नए सिरे से बातचीत करने के साथ-साथ अमेरिका को ट्रांस-पैसिफिक ट्रीटी जैसी अहम संधि से बाहर करके संतुष्ट थे। इन बातों ने वैश्विक व्यापार व्यवस्था को बहुत क्षति पहुंचाई, लेकिन नए कार्यकाल में उनकी योजनाएं ज्यादा चिंता उत्पन्न करती हैं। ट्रंप ने गत सप्ताह कहा कि वह अमेरिका में आयात होने वाली वस्तुओं पर ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ यानी पारस्परिक शुल्क लगाने वाले हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि इसका क्या अर्थ हो सकता है लेकिन यह मौजूदा विश्व व्यापार को बुरी तरह नुकसान पहुंचा सकता है और भारत जैसे देशों के लिए इसका जवाब देना मुश्किल हो सकता है।

पारस्परिक टैरिफ से ट्रंप का तात्पर्य समझ पाना मुश्किल है। यह उनके व्यापार अधिकारियों पर निर्भर करता है कि वे इसे आजमाएं और इसकी व्याख्या करें। उनके चुने हुए वाणिज्य मंत्री (जिनके नाम पर अभी तक अमेरिकी सीनेट की मुहर नहीं लगी है) कह चुके हैं कि प्रमुख अमेरिकी व्यापार साझेदारों का अध्ययन एक अप्रैल तक पूरा कर लिया जाएगा। यह राष्ट्रपति के एक मेमो की प्रतिक्रिया में कहा गया जिसमें आदेश दिया गया है कि वे टैरिफ की ऐसी सूची पेश करें जो अन्य देशों द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर लगे टैरिफ से मेल खाती हो और जिसमें निर्यात वाले देशों में मूल्य वर्धित कर और उस आकलन पर टैरिफ के अलावा दूसरे गतिरोध शामिल हों। पहली कठिनाई यह है कि उसे कम समय में तैयार नहीं किया जा सकता है। स्पष्ट है कि ऐसा मैट्रिक्स नहीं बन सकता है जो यह गणना करता हो कि हर देश अमेरिका से आने वाले हर उत्पाद पर कितना टैरिफ लगाता है। इस बात की संभावना अधिक है कि यह अमेरिकी वस्तुओं पर प्रत्येक व्यापारिक भागीदार के औसत टैरिफ की मोटी गणना होगी जिसे टैरिफ के अलावा बाधाओं को ध्यान में रखते हुए कुछ छद्म कीमतों को शामिल किया जाएगा।

ऐसे अधूरे और बेतुके अनुमान के बाद सवाल यह है कि अगर अमेरिका इसे लागू करने की ठान ले तो क्या होगा। वास्तव में खतरा इस बात का है कि ट्रंप के निर्देश सर्वाधिक तरजीही देश के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाले होंगे जबकि इस समय संपूर्ण वैश्विक व्यापार में यह धारणा लागू है। सर्वाधिक तरजीही देश के सिद्धांत के तहत विभिन्न देश कारोबारी साझेदारों में भेदभाव नहीं कर सकते। विश्व व्यापार संगठन की व्यवस्था के अंतर्गत पारस्परिक चर्चाओं के अनुसार द्विपक्षीय विशेषाधिकार अन्य सभी व्यापारिक भागीदारों को स्वयं ही मिल जाते हैं। इतना ही नहीं यह छोटे व्यापारिक देशों या मोलभाव की सीमित क्षमता वाले देशों को विश्व व्यापार और टैरिफ को कारगर तरीके से संभालने का मौका भी देता है। इससे व्यवस्था की जटिलता कम होती है और व्यापार बढ़ता है।

तरजीही देश का सिद्धांत नहीं हुआ तो स्रोत की जांच के नियमों को माल की हर खेप पर लागू करना पड़ सकता है। अगर तरजीही देश के सिद्धांत को त्याग दिया जाता है, तो जैसा कि पारस्परिकता पर ट्रंप का ध्यान देना बताता है यह वैश्विक व्यापार को आमूलचूल बदल देगा। यह बदलाव बेहतरी नहीं लाएगा। ट्रंप पर भारत का रुख चुनिंदा आयात में गुंजाइश करने का रहा है और शायद यह इस नए विश्व में सही न बैठे। व्यापार अधिकारियों को ऐसे तरीकों पर गंभीरता से विचार करना होगा ताकि बहुपक्षीय व्यवस्था बची रहे और अमेरिका पर संयुक्त दबाव बनाया जा सके। शायद प्रशांत पार साझेदारी पर व्यापक और प्रगतिशील समझौते जैसे व्यापार गुट में शामिल होना इन सवालों का जवाब हो सकता है।

First Published - February 17, 2025 | 10:12 PM IST

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