तमाम घटनाओं से भरा हुआ वर्ष 2024 समाप्त हो गया है। इसी सप्ताह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की अर्द्धवार्षिक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) भी प्रकाशित हुई। यह रिपोर्ट देश की वर्तमान वित्तीय व्यवस्था को लेकर एक नजरिया पेश करती है और इससे आने वाले वर्ष में क्या कुछ हो सकता है, इसको लेकर व्यापक समझ भी मिलती है।
वित्तीय हालात की बात करें तो बैंकिंग तंत्र में सकल फंसा हुआ कर्ज (जीएनपीए) सितंबर 2024 में 2.6 फीसदी के साथ 12 साल के निचले स्तर पर आ गया। इसमें कम स्लिपेज, राइट ऑफ और ऋण मांग ने भी मदद की। जबकि विशुद्ध फंसा हुआ कर्ज 0.6 फीसदी रहा। हालांकि भारतीय बैंकिंग व्यवस्था की बैलेंस शीट बीते एक दशक में स्थिर ढंग से सुधरी है। अब यह इस स्थिति में है कि वह निजी निवेश और वृद्धि को मदद कर सके। एफएसआर ने यह रेखांकित किया कि बेसलाइन परिदृश्य में मार्च 2026 तक जीएनपीए में इजाफा हो सकता है और वह तीन फीसदी तक पहुंच सकता है। परंतु इस पर सावधानीपूर्वक नजर रखने की जरूरत है।
बीते साल के दौरान खुदरा ऋण पर काफी ध्यान रहा है। वर्ष 2023 के अंत में रिजर्व बैंक ने बैंकों तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों यानी एनबीएफसी से कुछ तरह के ऋण पर जोखिम भार बढ़ाया है। इसके परिणामस्वरूप खुदरा बैंक ऋण और एनबीएफसी ऋण दोनों में कमी आई। बैंकों के बही खाते के खुदरा क्षेत्र में 1.2 फीसदी जीएनपीए के साथ स्थिरता बनी रही। असुरक्षित खुदरा ऋण के लिए जीएनपीए 1.7 फीसदी के साथ मामूली रूप से ऊंचा रहा और इस क्षेत्र में स्लिपेज भी नए फंसे हुए कर्ज के लिए उत्तरदायी है।
उल्लेखनीय है कि छोटे फाइनैंस बैंकों के खुदरा पोर्टफोलियो में उनका जीएनपीए 2.7 फीसदी है और समस्या के बड़ा बनने के पहले उनके ऋण व्यवहार की समीक्षा होनी चाहिए। एनबीएफसी की बात करें तो उनकी कुल स्थिति अच्छी है। उनकी देनदारी में बैंक ऋण की हिस्सेदारी में इजाफा काफी कम हुआ है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। बहरहाल एनबीएफसी ने अपनी विदेशी उधारी बढ़ाई है। अगर मुद्रा में तेज उतार-चढ़ाव आया तो इससे जोखिम बढ़ सकता है। वर्तमान परिदृश्य में यह बिल्कुल हो सकता है।
हालांकि बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र स्थिर हैं लेकिन 2025 में अन्य स्रोतों से भी जोखिम उभर सकता है। दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद घटकर 5.4 फीसदी रह गया। हालांकि उम्मीद है कि वर्ष की दूसरी छमाही में इसमें इजाफा हो सकता है। परंतु मध्यम अवधि में टिकाऊ रूप से उच्च वृद्धि हासिल करने के लिए और प्रयासों की जरूरत होगी। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर के आने वाले महीनों में कम होने की उम्मीद है परंतु मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था को किस हद तक मदद पहुंचा सकती है यह देखना होगा।
2025 में बड़ी चुनौती वैश्विक अर्थव्यवस्था, खासकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था से उभर सकती है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने नीतिगत ब्याज दरों में कटौती के अपने अनुमान की समीक्षा की जिससे वित्तीय बाजारों में काफी अस्थिरता आई। अपेक्षाकृत ऊंची अमेरिकी ब्याज दरें अधिक पूंजी आकर्षित करेंगी जिससे डॉलर मजबूत होगा। इससे अन्य मुद्राओं, खासकर उभरते बाजारों की मुद्राओं पर दबाव बनेगा।
अगर अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इस महीने के अंत में पद संभालने के बाद अपनी घोषित नीतियां जारी रखते हैं तो दबाव और बढ़ सकता है। भारतीय रुपया अपेक्षाकृत स्थिर रहा है क्योंकि रिजर्व बैंक ने आक्रामक ढंग से हस्तक्षेप किया। यह शायद लंबी अवधि में टिकाऊ नहीं रह सके। जैसा कि एफएसआर रेखांकित करता है, वैश्विक सार्वजनिक ऋण के 2024 के अंत तक 100 लाख करोड़ डॉलर का स्तर पार कर जाने और 2040 तक जीडीपी के 100 फीसदी से अधिक हो जाने की उम्मीद है। वैश्विक ऋण प्राथमिक रूप से दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से संचालित है और यह वैश्विक वित्तीय तंत्र की स्थिरता के लिए खतरा है। भारतीय नीति निर्माताओं को आर्थिक वृद्धि के लिए हस्तक्षेप करने के अलावा ऐसे जोखिमों से बचने की भी तैयारी रखनी होगी।