वित्तीय बाजारों में बॉन्ड यील्ड में इजाफे को लेकर काफी चिंता का माहौल है। जैसा कि इस समाचार पत्र ने भी प्रकाशित किया, वाणिज्यिक बैंक तथा अन्य अंशधारकों ने रिजर्व बैंक को कई सुझाव दिए हैं ताकि बॉन्ड बाजार पर दबाव कम किया जा सके। यह सुझाव भी दिया गया है कि रिजर्व बैंक को बॉन्ड जारी करने का काम मार्च तक बढ़ा देना चाहिए बजाय कि इस सालाना बिक्री को फरवरी में बंद करने के। इससे बॉन्ड की साप्ताहिक आपूर्ति कम करने में मदद मिलेगी।
अंशधारकों ने यह सुझाव भी दिया है कि राज्य सरकारों द्वारा बॉन्ड की बिक्री का तरीका बदला जाए ताकि स्प्रेड को कम किया जा सके। यह भी कहा गया है कि अत्यधिक लंबी अवधि के यानी 30-50 वर्ष की अवधि के बॉन्ड जारी करने के चलन में कमी लाने की आवश्यकता है। बैंकों ने भी इस बात को रेखांकित किया है कि बॉन्ड को साप्ताहिक रूप से जारी करना काफी बढ़ गया है।
अंशधारकों द्वारा सुझाए गए उपाय कुछ दबाव कम कर सकते हैं लेकिन यह बात बहसतलब है कि यील्ड में इजाफा क्यों हुआ और आने वाली तिमाहियों में क्या हालात रहेंगे? 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड पर यील्ड जून में आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति द्वारा रीपो दर में 50 आधार अंक की कटौती के निर्णय के बाद लगभग 20 आधार अंक बढ़ गई।
सैद्धांतिक रूप से, जब केंद्रीय बैंक दर में अपेक्षा से अधिक कटौती करता है, तो बॉन्ड यील्ड में नरमी आनी चाहिए। लेकिन इस मामले में बाजार सहभागियों ने पारंपरिक सोच को नहीं अपनाया। इसका एक संभावित कारण यह हो सकता है कि बाजार ने जून की नीतिगत घोषणा, उसके बाद अगस्त की घोषणा, और मुद्रास्फीति के अनुमानों को मिलाकर यह संकेत लिया कि दर कटौती चक्र अब समाप्त हो चुका है।
अगस्त की नवीनतम नीति घोषणा में चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के लिए मुद्रास्फीति दर 4.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। इसके बाद 2026–27 की पहली तिमाही में यह दर 4.9 फीसदी तक बढ़ने की संभावना है। चूंकि मौद्रिक नीति को दूरदर्शी होना चाहिए, इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में तो आगे दरों में कटौती की कोई गुंजाइश नहीं दिखती।
वित्तीय बाजार संभावित राजकोषीय दबाव को भी ध्यान में रख रहे होंगे। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी परिषद ने गत सप्ताह दरों के ढांचे को युक्तिसंगत बनाने का निर्णय लिया। सरकार के अनुसार इससे राजस्व पर 48,000 करोड़ रुपये तक का असर पड़ सकता है। आने वाली तिमाहियों में काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार मांग को लेकर किस प्रकार प्रतिक्रिया देती है। बहरहाल दीर्घकालिक नजरिया अपनाएं तो परिषद ने औसत जीएसटी दर में कमी की है जिसका असर दीर्घकालिक राजकोषीय टिकाऊपन पर होगा। दरों को युक्तिसंगत बनाए जाने के पहले औसत दर 11.6 फीसदी थी जबकि एक सरकारी समिति द्वारा अनुशंसित राजस्व तटस्थ दर 15 से 15.5 फीसदी है।
ढांचागत रूप से कम जीएसटी दर और संग्रह केंद्र और राज्य सरकारों की राजकोषीय घाटा कम करने और उधारी कम करने की क्षमता को लगातार प्रभावित करेगा। इसके अलावा केंद्र सरकार अगले वित्त वर्ष के आरंभ से एक नए राजकोषीय ढांचे को अपनाएगी जहां वह केंद्र सरकार के कर्ज को सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में निरंतर कम करने का प्रयास करेगी। इससे केंद्र सरकार को बजट प्रबंधन में अपेक्षाकृत अधिक लचीलापन हासिल होगा। परंतु इससे बॉन्ड बाजार में अनिश्चितता भी पैदा हो सकती है।
इसके अतिरिक्त, वैश्विक परिस्थितियां भी अनुकूल नहीं हैं। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में उच्च यील्ड भारतीय सरकारी बॉन्ड की मांग को प्रभावित करेगा। उदाहरण के लिए, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने वर्तमान वित्त वर्ष में अब तक केवल 54.2 करोड़ डॉलर के भारतीय बॉन्ड खरीदे हैं, जबकि 2023-24में यह आंकड़ा 1.45 अरब डॉलर से अधिक था। इसलिए, मौद्रिक, राजकोषीय और बाह्य वातावरण को देखते हुए, बॉन्ड यील्ड में किसी ठोस नरमी के आसार बहुत कम है। निकट भविष्य में बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि बाजार मुद्रास्फीति को लेकर क्या अपेक्षाएं रखता है।