भारत जैसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था वाले देश में राज्य को स्थितियों के अनुरूप तेजी से ढलना चाहिए और आर्थिक कारकों को आर्थिक गतिविधियों पर ही केंद्रित रहने देना चाहिए। कराधान ऐसा ही एक क्षेत्र है जहां आम व्यक्ति और कारोबार का संपर्क राज्य से होता है। बजट की लगातार बढ़ती मांग के कारण सरकार अक्सर राजस्व बढ़ाने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित करती है। किंतु राजस्व सृजन को लंबे समय तक स्थिरता देने के लिए जरूरी है कि करदाताओं को अपने हिस्से का कर चुकाने में अधिक कठिनाई का सामना नहीं करना पड़े। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को आयकर विधेयक, 2025 संसद में पेश किया, जो इन्हीं लक्ष्यों को हासिल करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। सरकार फेसलेस असेसमेंट स्कीम आदि के जरिये करदाताओं का अनुभव बेहतर बनाने के लिए काम कर रही है और नया विधेयक इसे आगे ले जाने में मदद करेगा।
सीतारमण ने जुलाई 2024 के बजट भाषण में घोषणा की थी कि आयकर अधिनियम, 1961 की व्यापक समीक्षा की जाएगी। इसके पीछे विचार यह था कि इस अधिनियम को संक्षिप्त और स्पष्ट तथा पढ़ने-समझने में आसान बनाया जा सके। इसीलिए विधेयक में 622 पृष्ठ ही रखे गए हैं, जबकि वर्तमान कानून में 823 पृष्ठ हैं। इससे भी बढ़कर शब्द संख्या है, जो मौजूदा कानून के 5.20 लाख शब्दों से घटाकर विधेयक में केवल 2.60 लाख रखी गई है। ध्यान देने की बात है कि लक्ष्य कर व्यस्था को बदलना नहीं बल्कि कानून को आसान बनाना था ताकि करदाता उसे आसानी से समझ सकें। विभिन्न संशोधनों और बाद में जोड़े गए नए हिस्सों के साथ वर्तमान कानून बहुत जटिल हो चुका है।
इसमें एक अन्य खास बात है केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा ‘चार्टर ऑफ टैक्सपेयर्स’ आपनाया जाना, जिससे व्यवस्था में विश्वास और पारदर्शिता बढ़ने की उम्मीद है। मौजूदा कानून में आरंभ में केवल 298 धाराएं थीं मगर प्रावधान जुड़ते गए और अब कुल 819 धाराएं हो गई हैं। नए विधेयक ने इन्हें घटाकर 536 कर दिया है। वेतनभोगी करदाताओं के लिए हालात को सहज बनाने के इरादे से हर तरह की कटौती को एक ही धारा के तहत रख दिया गया है, जिससे इसे समझना भी आसान हो सके और इसका पालन करना भी। विधेयक ने आभासी डिजिटल परिसंपत्तियों को भी स्पष्ट किया है और बताया है कि इन पर कर कैसे लगेगा। सरलीकरण के लिए कर निर्धारण वर्ष और पिछले वर्ष जैसी अवधारणाओं को समाप्त किया गया। इसमें ‘कर वर्ष’ का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें आय अर्जित की गई और जिसके लिए कर चुकाना है। संसद से पारित होने के बाद नया कानून एक अप्रैल, 2026 से लागू होगा।
नए कानून के पीछे की मंशा को गलत नहीं बताया जा सकता मगर इसका वास्तविक प्रभाव इस बात पर निर्भर होगा कि इसे कितनी आसानी से लागू किया जाता है। इस समाचार पत्र में गत वर्ष प्रकाशित एक खबर के मुताबिक आयकर आयुक्त के समक्ष 5.44 लाख अपीलें लंबित थीं, जो 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि से जुड़ी थीं। कानून की वास्तविक परीक्षा यह होगी कि वह कर संबंधी मुकदमों में ला पाएगा या नहीं। इससे करदाताओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है और राज्य की क्षमता भी इसी काम में लग जाती है, जबकि उसका दूसरी जगहों पर बेहतर इस्तेमाल हो सकता था। इसके अलावा विधेयक का इरादा कर कानून को सरल बनाना है मगर कर व्यवस्था को सरल बनाना भी जरूरी है। व्यक्तिगत आयकर के मामले में सरकार ने नई सरल कर प्रणाली लागू करके बेहतर किया है। 1 फरवरी को पेश 2025-26 के बजट में घोषणा की गई कि 12 लाख रुपये तक की वार्षिक आय पर कोई कर नहीं लगेगा। लेकिन रियायतों और सात कर दरों के साथ ढांचा अब भी जटिल बना हुआ है। इसे सरल बनाने के लिए सरकार कराधान की सीमा तय कर सकती है और कर दरें घटाकर तीन कर सकती है। सरल कर ढांचा और सरल कानून सभी के लिए मददगार होंगे।