ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों की वृद्धि और खुदरा क्षेत्र पर उनके संभावित प्रभाव को देखते हुए केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने गत सप्ताह यह स्पष्ट किया कि सरकार ई-कॉमर्स के विरुद्ध नहीं है बल्कि वह ऑनलाइन और सामान्य खुदरा कारोबारियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है।
उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि ऑनलाइन खुदरा कारोबारियों के लिए नियमों का पालन करना महत्त्वपूर्ण है। गोयल ने सरकार की स्थिति साफ करके अच्छा किया लेकिन ऑनलाइन बनाम ऑफलाइन खुदरा के मुद्दे पर बहस जारी रहेगी। सरकार को अपनी नीतियों में भी इस प्रकार बदलाव करने पड़ सकते हैं ताकि बाजार में होने वाली स्वाभाविक उथलपुथल और गतिविधियां बाधित न हों।
नीतिगत नजरिये से देखा जाए तो यह समझना अहम है कि ई-कॉमर्स क्या कर रहा है और उसके क्या संभावित खतरे हैं। ग्राहकों के लिए ई-कॉमर्स ने चयन के विकल्प बढ़ाए हैं और खरीद को सरल बनाया है। कुछ ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के गहन नेटवर्क और लॉजिस्टिक क्षमताओं के कारण छोटे शहरों और ग्रामीण भारत के उपभोक्ताओं की पहुंच उन उत्पादों तक हो सकी है जो पहले केवल बड़े शहरों में रहने वाले लोगों की पहुंच में थे।
उत्पादक के नजरिये से देखें तो ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के साथ जुड़ाव ने पूरे देश को छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए भी एक संभावित बाजार में बदल दिया है। ऑनलाइन और ऑफलाइन वेंडरों और उपभोक्ताओं के एक सर्वेक्षण के बाद पहले इंडिया फाउंडेशन ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें क्रमश: 60 फीसदी और 52 फीसदी वेंडरों ने कहा कि ऑनलाइन बिक्री शुरू होने के बाद उनकी बिक्री और मुनाफा दोनों बढ़े हैं। जानकारी यह भी है कि वे अधिक लोगों को काम पर रख रहे हैं। ऐसे में यह स्पष्ट है कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़े विक्रेता और उपभोक्ता दोनों को लाभ हुआ है।
बहरहाल, नीतिगत नजरिये से देखें तो दो प्राथमिक चिंताएं हो सकती हैं। पहली, अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि कुछ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बहुत कम कीमत पर बेचने की रणनीति अपनाते हैं। इस तरह के व्यवहार की जांच जरूर की जानी चाहिए। वास्तव में ऐसे मामलों में प्रतिस्पर्धा नियामकों ने बड़े ऑनलाइन खुदरा कारोबारियों की जांच की है।
बहरहाल, विशुद्ध कारोबारी नजरिये से देखा जाए तो ऑनलाइन कारोबारियों के ऐसा व्यवहार अपनाने की कोई तुक नहीं समझ में आती। आमतौर पर ऐसा व्यवहार छोटे बाजारों में अपनाया जाता है जहां सीमित प्रतिस्पर्धा हो। यहां मामला ऐसा नहीं है।
दो बड़े विदेशी फंडिंग वाले ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म अब ढेर सारे घरेलू प्लेटफॉर्मों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रह हैं। इनमें कुछ ऐसे प्लेटफॉर्म भी हैं जिनका स्वामित्व देश के बड़े औद्योगिक घरानों के पास है। ध्यान रहे कि क्विक कॉमर्स यानी शीघ्र सामान पहुंचाने वाली सेवाएं अब जोर पकड़ रही हैं। ये भारी छूट वाली सेवाओं के मुकाबले तेजी से बढ़ रही हैं। इससे पता चलता है कि ऑनलाइन खुदरा कारोबार काफी प्रतिस्पर्धी है और यहां प्रवेश बाधा वैसी नहीं है जैसा पहले सोचा जाता था।
नीति निर्माताओं की दूसरी बड़ी चिंता रोजगार की हो सकती है। आमतौर पर बड़ी संख्या में लोग आजीविका के लिए आसपास की दुकानों पर निर्भर होते हैं। हालांकि ऑनलाइन खुदरा ने किराना दुकानों पर अधिक असर नहीं डाला है लेकिन उनकी इंटरनेट पहुंच के कारण आने वाले सालों में कुछ उथलपुथल हो सकती है।
कुल खुदरा कारोबार में ई-कॉमर्स की हिस्सेदारी 8 फीसदी है और यह तेजी से बढ़ रही है, जैसा कि रिपोर्ट बताती हैं। यह ध्यान देने लायक है कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के वेंडर अधिक लोगों को काम पर रखते हैं। इस क्षेत्र में रोजगार की प्रकृति में बदलाव आ सकता है। ऐसे में नीतिगत हस्तक्षेप करके यथास्थिति का बचाव नहीं किया जाना चाहिए।
उम्मीद है कि सरकार जल्दी ही नई ई-कॉमर्स नीति लाएगी। यह सुनिश्चित होना चाहिए कि नीति स्वामित्व या निवेश के आधार पर भेदभाव न करते हुए सबके लिए समान हो। एक निष्पक्ष नीति से निवेश बढ़ेगा, रोजगार तैयार होंगे और उपभोक्ताओं का भी कल्याण होगा।