वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर के दौरान अर्थव्यवस्था सालाना आधार पर 7.6 फीसदी की दर से बढ़ी। इस बात ने अधिकांश विश्लेषकों को सकारात्मक ढंग से चौंकाया। अधिकांश अर्थशास्त्री आशा कर रहे थे कि वृद्धि दर 7 फीसदी के आसपास रहेगी।
बहरहाल, अक्टूबर में बिज़नेस स्टैंडर्ड के एक आयोजन में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि के आंकड़े सकारात्मक ढंग से चौंकाने वाले होंगे।
रिजर्व बैंक ने पहली तिमाही में 7.8 फीसदी की अनुमान से बेहतर वृद्धि के बावजूद पूरे वर्ष के वृद्धि अनुमान को 6.5 फीसदी रखा। दूसरी तिमाही में क्षेत्रवार प्रदर्शन को देखें तो विनिर्माण क्षेत्र ने 13.9 फीसदी की वृद्धि हासिल की, हालांकि यह आंशिक तौर पर कम आधार के कारण भी हासिल हुई। पिछले वर्ष की समान तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र का मूल्यवर्द्धन कम हुआ था।
श्रमिकों की अधिकता वाले एक अन्य क्षेत्र विनिर्माण में भी 13.3 फीसदी की वृद्धि रही। सबसे बड़ी निराशा कृषि और संबद्ध क्षेत्रों से आई जिनमें 1.2 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली। इससे संकेत मिलता है कि कुल खाद्य उत्पादन पर दबाव होगा जो खुदरा मुद्रास्फीति संबंधी नतीजों को भी प्रभावित करेगा।
चूंकि वित्त वर्ष की पहली छमाही में आर्थिक वृद्धि दर 7.7 फीसदी रही। ऐसे में पूरे वर्ष के 6.5 फीसदी वृद्धि के रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक देखें तो वर्ष की दूसरी छमाही में धीमापन आएगा।
ऐसे में संभव है कि रिजर्व बैंक तथा अन्य के पूरे वर्ष के पूर्वानुमान को संशोधित किया जाएगा। अहम बात यह होगी कि क्या आने वाली तिमाहियों में इस गति को बरकरार रखा जा सकेगा।
दूसरी तिमाही के कॉर्पोरेट नतीजों का विश्लेषण बताता है कि गति में कमी आ रही है जो आने वाली तिमाहियों में वृद्धि को प्रभावित कर सकती है। राष्ट्रीय लेखा के आंकड़े भी दिखाते हैं कि दूसरी तिमाही में अंतिम निजी खपत में व्यय में केवल 3.1 फीसदी की मामूली वृद्धि हुई जो अपने आप में एक पहेली है। ऐसा इसलिए कि वृद्धि के समग्र आंकड़े मजबूत हैं।
एक उत्साहित करने वाली बात यह है कि सकल स्थायी पूंजी निर्माण में 11 फीसदी का इजाफा हुआ। इससे लगता है कि निजी निवेश में सुधार हो रहा है। मध्यम अवधि में वृद्धि को बरकरार रखने के लिए यह आवश्यक है। विकसित देशों में मुद्रास्फीति की दर में कमी आई है।
भले ही मुद्रास्फीति की दर केंद्रीय बैंकों के तय लक्ष्य से अधिक है और वे ब्याज दरों को लंबे समय तक ऊंचा रख सकते हैं लेकिन वैश्विक वित्तीय हालात में सहजता आने लगी है और इससे भारतीय कंपनियों को पूंजी जुटाने में मदद मिलेगी।
वास्तव में प्राथमिक शेयर बाजार की गतिविधियां बताती हैं कि छोटी कंपनियां भी पूंजी जुटा रही हैं जिससे निवेश बढ़ाने में मदद मिलेगी। परंतु अगर निजी खपत कमजोर रहती है तो निवेश बरकरार रखना मुश्किल हो जाएगा।
यद्यपि स्थिर मूल्य पर समग्र वृद्धि प्रभावी नजर आ रही है और वह हर प्रकार के अनुमान से ऊपर रही लेकिन ध्यान एक बार फिर नॉमिनल वृद्धि पर केंद्रित रहेगा। दूसरी तिमाही में नॉमिनल जीडीपी 9.1 फीसदी बढ़ी।
पहली तिमाही में भी यह दर वास्तविक वृद्धि से मामूली रूप से अधिक थी। कमजोर नॉमिनल वृद्धि को कमजोर थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर से समझा जा सकता है लेकिन यह सरकार के लिए दिक्कतें खड़ी कर सकती है।
चालू वर्ष में केंद्र सरकार की कोशिश राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.9 फीसदी तक सीमित रखने की है और इस दौरान 10.5 फीसदी नॉमिनल जीडीपी वृद्धि का अनुमान है।
अगर नॉमिनल वृद्धि के रुझान दूसरी छमाही में भी जारी रहे तो घाटे को लक्षित स्तर पर सीमित रखना मुश्किल होगा। राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए राजकोषीय व्यय में संभावित कमी वृद्धि को प्रभावित कर सकती है और समस्या को और जटिल बना सकती है।