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Editorial: लाइसेंस राज की वापसी

अगर सरकार सुरक्षा जोखिमों को लेकर चिंतित है तो वह आसानी से खास देशों के संबंधित सिस्टम्स के आयात पर रोक लगा सकती है।

Last Updated- October 27, 2023 | 8:31 PM IST
Tamil Nadu laptop scheme

यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि सरकार को हमेशा सावधानीपूर्वक निर्णय लेने चाहिए। खासतौर पर तब जब ऐसे निर्णय बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित कर रहे हों और उनका दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव भी हो। परंतु अफसरशाही अक्सर ऐसे मामलों में चूक जाती है।

व्यापक सार्वजनिक आलोचना और चिंताओं के बाद विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने शुक्रवार को पहले लिए गए उस निर्णय को फिलहाल स्थगित कर दिया जिसके तहत उसने लैपटॉप, पर्सनल कंप्यूटर, टैबलेट तथा ऐसे अन्य उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी। अब यह निर्णय 1 नवंबर से लागू होगा।

इससे साफ संकेत मिलता है कि इस अहम उत्पाद के आयात पर प्रतिबंध लगाने और उन्हें लाइसेंस व्यवस्था के तहत लाने का निर्णय लेने के पहले इस पर अधिक सोच विचार नहीं किया गया। कहा जा सकता है कि वाणिज्य मंत्रालय ने अगर सरकार के भीतर ही अर्थशास्त्रियों से चर्चा की होती उसने ऐसा निर्णय नहीं लिया होता।

यह समझाना मुश्किल है कि आखिर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक, जो खुद को सूचना प्रौद्योगिकी और सेवा क्षेत्र का गढ़ मानती है उसने अचानक कंप्यूटरों तथा संबंधित उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध क्यों लगा दिया।

इसकी प्राथमिक वजह यह बताई गई है कि इससे सुरक्षा को खतरा है। बाद में यह स्पष्ट किया गया कि इस कदम का व्यापक लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि देश में भरोसेमंद सिस्टम और हार्डवेयर रहें। साथ ही घरेलू उत्पादन बढ़ाकर आयात पर निर्भरता कम करने को भी इसकी वजह बताया गया। ये लक्ष्य उपयुक्त हैं लेकिन निश्चित तौर पर इनके लिए लाइसेंस राज में वापस जाने की आवश्यकता नहीं है।

अगर सरकार सुरक्षा जोखिमों को लेकर चिंतित है तो वह आसानी से खास देशों के संबंधित सिस्टम्स के आयात पर रोक लगा सकती है। उदाहरण के लिए कई देश चीन में बने दूरसंचार उपकरण नहीं खरीदते। परंतु पूरी व्यवस्था को लाइसेंस की दया पर छोड़ देने से बचा जा सकता था। भारत ने जब लाइसेंस व्यवस्था को नकारा तब इसके लिए पर्याप्त वजह थी।

यह जानकारी भी सामने आई कि लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया सहज होगी लेकिन एक बार यह प्रक्रिया व्यवहार में आ जाने के बाद समस्याएं शुरू हो जाएंगी। लाइसेंसिंग करने से उपलब्धता और कीमत पर निश्चित रूप से असर पड़ेगा। लाइसेंस का आवंटन कुछ सुपरिचित दिक्कतें पैदा करेगी उदाहरण के लिए पक्षपात। यह समझना आवश्यक है कि कंप्यूटर हार्डवेयर आज की सेवा आधारित अर्थव्यवस्था में एक अहम और उपयोगी वस्तु है। इसकी कमी और कीमतों में इजाफा उत्पादन को दीर्घकालिक परिणामों के हिसाब से प्रभावित करेंगे।

ऐसे में लाइसेंसिंग के निर्णय को टालने के बजाय सरकार के लिए बेहतर होता कि वह इसे वापस ले लेती। अगर समूचे आयात की चिंता है तो लगता नहीं है कि नई व्यवस्था मददगार साबित होगी। सन 2022-23 में भारत का 8.8 अरब डॉलर मूल्य का आयात लाइसेंसिंग व्यवस्था के अधीन था। भारत का कुल वाणिज्यिक आयात बिल 700 अरब डॉलर का है।

बहरहाल, ऐसा प्रतीत होता है कि बड़ा लक्ष्य है विनिर्माताओं को भारत में उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करना। आईटी हार्डवेयर क्षेत्र के लिए उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना में वांछित स्तर की भागीदारी नहीं नजर आई है। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने आवंटन राशि बढ़ाकर दोगुनी कर दी। परंतु भारत का इतिहास बताता है कि आयात प्रतिबंध और लाइसेंसिंग के कारण घरेलू उत्पादन नहीं बढ़ता है। हां, ऐसे कदमों की बदौलत देश के निर्यात की प्रतिस्पर्धा अवश्य प्रभावित होती है। इसके अलावा वैश्विक मूल्य श्रृंखला में शामिल होने की क्षमता पर भी असर पड़ता है।

कंप्यूटर तथा ऐसे अन्य उपकरण जटिल मूल्य श्रृंखला से तैयार होते हैं और उन्हें भारत में रातोरात तैयार कर पाना मुश्किल है। व्यापक स्तर पर देखें तो यह मानना जरूरी है कि वर्षों के नीतिगत चयन के कारण ही प्रतिस्पर्धी वेतन भत्ते और इंजीनियरिंग प्रतिभाओं के बावजूद भारत ने स्वयं को वैश्विक मूल्य श्रृंखला से अलग रखा।

इस नीतिगत कमी की भरपाई के लिए सरकार कारोबारों को उच्च टैरिफ और विस्तारित राजकोषीय समर्थन की मदद से बचा रही है ताकि उत्पादन बढ़ाया जा सके। कुछ क्षेत्रों में कुछ समय तक यह कारगर हो सकता है लेकिन इसकी बदौलत देश औद्योगिक क्षेत्र में अग्रणी नहीं बन सकेगा।

First Published - August 7, 2023 | 1:00 AM IST

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