ओला इलेक्ट्रिक के भवीश अग्रवाल का मानना है कि पेट्रोल-डीजल इंजनों (आईसीई) पर चलने वाले स्कूटरों का उत्पादन बंद करने का वक्त आ गया है और ‘सार्थक’ और ‘गुणवत्तापूर्ण दोपहिया’ वाहनों में निवेश करने पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड को दिए गए साक्षात्कार में जो कुछ कहा उसकी व्याख्या देश के शीर्ष ई-दोपहिया वाहन कारोबारी के ऐसे वक्तव्य के रूप में की जा सकती है जिसमें वह अपने आईसीई प्रतिस्पर्धियों को संबोधित कर रहे हैं। अभी भी देश में आईसीई दोपहिया वाहन, ई-दोपहिया से बहुत आगे हैं।
उनके बयान को एक ऐसे प्रवर्तक का समुचित रुख भी माना जा सकता है जिन्हें पता है कि सरकार का लक्ष्य 2030 तक सड़क पर चलने वाले 80 फीसदी दोपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक बनाने का है। कंपनी चार नए ई-स्कूटर लॉन्च कर चुकी है और ई-मोटरबाइक भी प्रदर्शन के लिए प्रस्तुत कर चुकी है।
ऐसे में जाहिर है कि अग्रवाल की बातों में वजन है। पहले कदम के रूप में सॉफ्ट बैंक के निवेश वाली ओला के प्रवर्तक की बात अहम मानी जा सकती है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन को अभी भारतीय बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कड़ी मशक्कत करने की आवश्यकता है।
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हालांकि भारत का ई-दोपहिया बाजार 2019 के बाद से तेजी से बढ़ा है लेकिन अभी भी यह पूरे बाजार में बहुत छोटा हिस्सा है। उदाहरण के लिए 2022-23 में ई-दोपहिया वाहनों की बिक्री उससे एक साल पहले की तुलना में ढाई गुना बढ़कर 846,976 हो गई। यह आंकड़ा आकर्षक है लेकिन उसी वर्ष बिके 1.5 करोड़ आईसीई दोपहिया वाहनों की तुलना में यह अत्यधिक कम है।
यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि यह बिक्री मुख्य तौर पर सरकार की उस अहम पहल की बदौलत है जिसे फास्टर एडॉप्शन ऐंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड ऐंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल (फेम) का नाम दिया गया है। इस कार्यक्रम के दूसरे संस्करण की घोषणा 2019 में की गई थी जिसे 2024 तक चलना था।
इसमें विनिर्माताओं को ऐसी सब्सिडी दी गई जो वाहन की लागत का 40 फीसदी तक है। फेम 2 अपनी ही सफलता का शिकार हो गया। इसकी बदौलत ई-दोपहिया वाहनों की बिक्री तेजी से बढ़ी और जल्दी ही इसके लिए किया गया आवंटन समाप्त हो गया।
चूंकि यह उपभोक्ता केंद्रित पहल होने के बजाय एक ऐसी पहल थी जिसमें विनिर्माताओं को सब्सिडी दी जा रही थी इसलिए इसमें दिक्कतें होनी ही थीं। कुछ निर्माताओं ने उपभोक्ताओं से बैटरी के लिए अलग शुल्क वसूलने जैसी गतिविधियां शुरू कर दीं। इसकी बदौलत इस वर्ष 1 जून से फेम 2 सब्सिडी में भारी कटौती कर दी गई। मई से ही इनकी बिक्री में कमी आनी शुरू हो गई थी।
फेम से जुड़े अनुभव की विडंबना यह है कि देश में ईवी की पहुंच केवल पांच फीसदी है जबकि पूर्वी एशियाई देशों का औसत 17 फीसदी है। देश की आम जनता को ईवी खरीदने या ई-दोपहिया खरीदने के लिए प्रेरित करने के लिए कहीं अधिक बुनियादी बदलावों की आवश्यकता होगी। चार्जिंग की अधोसंरचना तैयार करना एक मुद्दा है जिस पर धीरे-धीरे काम हो रहा है।
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अब तक केवल 6,586 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन हैं जो अपर्याप्त हैं। चीन ने इस समस्या को समय रहते चिह्नित कर लिया था और वहां 18 लाख सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन हैं। इसके अलावा नीति आयोग ने बैटरी को बदलकर इस्तेमाल करने की एक नीति का मसौदा तैयार किया था लेकिन वह भी पारस्परिक इस्तेमाल के मानक स्पष्ट न होने के कारण अटका हुआ है।
विनिर्माता भी इसके खिलाफ हैं। वस्तु एवं सेवा कर के तहत इसके साथ होने वाले व्यवहार को लेकर भी भ्रम की स्थिति है जिसने समस्याओं में इजाफा ही किया है। बैटरी पर लगने वाला जीएसटी आमतौर पर आयातित वस्तुओं पर लगता है और इसकी दर 18 फीसदी है, हालांकि ईवी पर केवल 5 फीसदी जीएसटी है। ये सभी सवाल अहम हैं जिनके जवाब देना जरूरी है।