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शहरी विकास के लिए व्यापक दृष्टिकोण जरूरी

मौजूदा दौर में हमें निश्चित तौर पर शहरों के बीच समानता पर जोर देना चाहिए और नागरिकों की संतुष्टि पर अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए। बता रहे हैं अमित कपूर और विवेक देवरॉय

Last Updated- December 28, 2023 | 9:06 PM IST
urban development

वर्तमान समय में जिस रूप में शहरों का अस्तित्व दिख रहा है उसे देखते हुए उनके किसी दूसरे स्वरूप या अतीत में उनकी अलग संरचना की कल्पना करना मुश्किल हो जाता है। इस समय अत्याधुनिक या स्मार्ट शहरों का हाल कुछ इस तरह है कि जैसे वे आरंभ से ही ऐसे थे। अगर आप गुरुग्राम जैसे शहर घूमने निकलें तो पहली नजर में ऊंची-ऊंची इमारतें और आधुनिक कार्यालय दिखेंगे।

सच्चाई तो यह है कि हरियाणा सरकार गुरुग्राम को ‘हरियाणा की साइबर सिटी’ के रूप में परिभाषित कर गौरवान्वित महसूस करती है। कुछ लोग इस शहर में सड़कों पर मरम्मत की बाट जोह रहे गड्ढों, भीड़-भाड़ वाली दुकानों, ठीक से काम नहीं कर रहे ट्रैफिक सिग्नलों और प्रदूषित निर्माण स्थलों का जिक्र करेंगे।

हालांकि, यहां समझना भी जरूरी है कि इस शहर के वास्तविक या मूल हिस्से का विस्तार हुआ है जिसे हम गुरुग्राम के नाम से जानते हैं। शहर के अंदरूनी हिस्से पुराने रंग-ढंग में दिखते हैं और अवशेष की तरह प्रतीत होते हैं। यह एक कटु तुलना हो सकती है मगर इससे जो सवाल पैदा होते हैं उन पर निश्चित रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है।

प्रश्न यह है कि क्या शहरी विकास किसी निश्चित दिशा का पालन करते हैं? शहरीकरण का प्रवाह क्या है? ये दोनों प्रश्न एक दूसरे से इस प्रकार से जुड़े हैं कि इसे समझकर हम यह जान पाते हैं कि कोई शहर कैसे अपना प्रसार या विस्तार करता है।

‘शहरीकरण का प्रवाह’ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों की तरफ आबादी के पलायन की ही केवल चर्चा नहीं होती है बल्कि इसमें शहरों के बीच आंतरिक गतिशीलता का भी जिक्र होता है जिसका संबंध शहरी विकास से होता है। यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि कोई एक शहर दूसरे शहर के विकास प्रारूप को परिलक्षित नहीं कर सकता है। शहरी विकास का प्रसार या इसका प्रवाह मुख्य रूप से किसी शहर की आंतरिक प्रकृति, इसकी मूल संस्कृति और अधिक तकनीकी रूप में भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ा होता है।

उदाहरण के तौर पर पुरानी दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी के इतिहास को बयां करने वाले तथ्य और इमारतें हैं। इस क्षेत्र का विकास हुआ है मगर अब भी यातायात और भीड़-भाड़ के बीच ऐतिहासिक गलियां, बाजार पूजा स्थल और पुरानी हवेली देखे जा सकते हैं। इसके उलट नई दिल्ली में तुलनात्मक रूप से आधुनिक संरचनाएं विकसित हुई हैं और लुटियन क्षेत्र भी है जिस पर उपनिवेशवाद की छाप दिखती है। नई दिल्ली क्षेत्र बेहतर नियोजन और शहरीकरण की योजना के तहत विकसित हुआ है।

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मुंबई शहर की बात करें तो इसकी भौगोलिक स्थिति और तेजी से बढ़ती आबादी शहरीकरण का प्रसार तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यहां एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी भी है जिसमें चार लाख से अधिक लोग रहते हैं। साथ ही, इस शहर में शहरी विकास की दिशा को निश्चित तौर पर परिभाषित कर पाना भी मुश्किल है क्योंकि इसके विकास से जुड़ी आवश्यकताओं पर कई सवाल खड़े होते हैं। मुंबई शहर अपनी घनी आबादी के लिए पर्याप्त रहने की व्यवस्था सुनिश्चित करने के साथ ही अधिक से अधिक औद्योगिक क्षेत्र विकसित करने की चुनौतियों के बीच खुद को घिरा महसूस करता है। भारत की वित्तीय राजधानी खराब शहरी नियोजन और दिशाहीन विकास की समस्या से जूझ रही है।

इसी तरह, हैदराबाद और सिकंदराबाद की बात करें तो इन दोनों शहरों की चर्चा लगभग एक साथ होती है। मगर अंग्रेजों के समय से ही इनका विकास असमान रहा है। सिकंदराबाद जहां अंग्रेजों के समय विकसित हुआ वहीं, हैदराबाद निजाम शासन के प्रभाव में रहा था। मगर अब इन दोनों शहरों के बजाय साइबराबाद की अधिक चर्चा होने लगी है। आधुनिक संरचना और आईटी कंपनियों की बहुलता के कारण यहां काफी लोग रहने लगे हैं। रहन-सहन के स्तर और समावेशी विकास के पैमाने पर सिकंदराबाद पिछड़ता प्रतीत होता है।

यद्यपि, प्रत्येक शहर एक दूसरे से किसी न किसी रूप में भिन्न होता है मगर सभी आधुनिक व्यवस्था के साथ विकास करना चाहते हैं। यह समझना बेहद जरूरी है कि ऐसे कौन से कारक हैं जो शहरों के विकास को प्रभावित करते हैं और क्या कोई तरीका है जिससे ऐसा नहीं हो कि कोई शहर बहुत आगे निकल जाए और कुछ पीछे छूट जाएं। यह तर्क दिया जा सकता है कि आर्थिक पहलू या कारक शहरीकरण के प्रसार को प्रभावित करते हैं। आर्थिक कारकों में श्रम बल, पूंजी, तकनीक और संचार के साधन हो सकते हैं। शहरों के बीच विकास के प्रवाह को समझने के लिए इन कारकों पर विचार किया जा सकता है।

आर्थिक कारकों की बहुलता वाले क्षेत्र के प्रति लोग अधिक आकर्षित होते हैं, वहां कार्यालय आदि स्थापित होने लगते हैं। इसका एक और असर यह होता है कि अधिक से अधिक लोग इन शहरों में रहना और बसना चाहते हैं जिससे आवासीय जायदाद की मांग बढ़ जाती है दाम आसमान छूने लगते हैं। इसके साथ ही घूमने-फिरने और मनोरंजन की जगह भी विकसित होने लगती है।

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यह कथन बिल्कुल उपयुक्त है कि शहरी विकास उन क्षेत्रों में अधिक होते हैं जहां आर्थिक कारक मौजूद होते हैं। मगर एक मूल प्रश्न यह है कि क्या यह विकास कुछ ही जगहों पर ही होना चाहिए? शहरीकरण के संबंध में चर्चा अक्सर शहरों के बीच विकास में भिन्नताओं पर टिकी होती है मगर प्रत्येक शहर में विकास से जुड़े पेचीदा पहलुओं को क्यों दरकिनार कर दिया जाता है?

यह कई कारकों जैसे शहरी ढांचा एवं नियोजन, विकास कार्यों में नगर निगम की सक्रिय भागीदारी और शहरों आंतरिक आवश्यकताओं की समझ पर निर्भर करता है। ऐसी समझ यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि विकास से जुड़े पहलू एक दूसरे से समानता रखते हैं, न कि भिन्नता।

मौजूदा दौर में हमें निश्चित तौर पर शहरों के बीच समानता पर जोर देना चाहिए और नागरिकों की संतुष्टि पर अधिक से अधिक ध्यान देना चाहिए। इसके लिए उन्हें पर्याप्त संसाधन और अवसर और रहने के लिए जगह मुहैया कराने की आवश्यकता है।

शहरीकरण के संबंध में इस तरह की सोच शहरों को अधिक समावेशी और विशेष जरूरतों और दिव्यांग लोगों के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है। शहरी विकास के पेचीदा पहलुओं पर विचार करते समय हमें एक ऐसे व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा। इसके अंतर्गत बाहरी रूप और आंतरिक गतिशीलता दोनों पर विचार और समानता और समावेशिता का ध्यान रखा जाता है।

(कपूर इंस्टीट्यूट फॉर कंपीटिटिवनेस, इंडिया के अध्यक्ष और यूएसएटीएमसी, स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हैं। देवरॉय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष हैं)

First Published - December 28, 2023 | 9:06 PM IST

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