मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ऊर्जा संक्रमण यानि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम कर सौर, पवन, जल विद्युत, हाइड्रोजन आदि वैकल्पिक स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास हुए थे। हालांकि, इन प्रयासों पर लोगों एवं समाचार माध्यमों का कम ध्यान गया था। हाल ही में इस समाचारपत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट में अफ्रीका के दर्जनों देशों के साथ नए समझौते करने या पुराने समझौते अद्यतन करने से जुड़े प्रयासों रेखांकित किए गए थे।
इसी वर्ष भारत सरकार ने अर्जेन्टीना में पांच लीथियम ब्राइन खदानों के अन्वेषण और विकास के लिए लिए वहां की सरकार के साथ समझौता किया था। इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) में उपयोग होने वाली बैटरियों के लिए लीथियम की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अर्जेन्टीना के साथ यह समझौता हुआ है।
कुछ महीने पहले सरकार ने भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों की खोज के लिए देसी एवं विदेशी निजी खनन कंपनियों को आकर्षित करने के प्रयास किए थे। बोलीदाताओं की तरफ से ठंडी प्रतिक्रिया मिलने के बाद 20 महत्त्वपूर्ण खनिज खदानों की नीलामी की पेशकश पिछले महीने रद्द करनी पड़ी। मगर यह बात सिद्ध हो गई कि सरकार अति महत्त्वपूर्ण खनिजों के महत्त्व को बखूबी समझ रही थी।
अब शपथ लेने के बाद नई सरकार को इन प्रयासों को जारी रखने एवं इन्हें तेज करने की जरूरत है। पूर्व की तुलना में अपने प्रयासों के बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए नीतियों में थोड़े बदलाव की भी आवश्यकता होगी। पिछले पांच वर्षों के दौरान मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में यह महसूस किया कि महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए भारत आयात, खासकर चीन, पर काफी निर्भर है।
हालांकि, इस समस्या का समाधान खोजने के लिए सरकार ने जो प्रयास किए हैं वे अधिक सार्थक सिद्ध नहीं हुए हैं। सौर ऊर्जा उपकरण (सोलर पैनल) और ईवी बैटरियों के लिए लीथियम, कोबाल्ट, निकल, कैडमियम, जर्मेनियम, नायोबियम, बेरिलियम, वैनेडियम और कई अन्य खनिजों की आवश्यकता होती है। लीथियम सबसे अधिक चर्चा में रहता है क्योंकि वर्तमान इलेक्ट्रिक वाहनों में लीथियम-आयन बैटरी रसायन का इस्तेमाल होता है। इसके अलावा मोबाइल एवं टैबलेट में भी इसका उपयोग होता है।
दूसरे खनिजों की भी अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है मगर उनमें प्रत्येक ऊर्जा संक्रमण के लिए उतने महत्त्वपूर्ण नहीं माने जाते हैं। हम इनमें सभी खनिजों के लिए आयात पर (विशेषकर चीन पर) निर्भर हैं। भारत को यह बात समझने में थोड़ी देर हो गई कि चीन से आपूर्ति पर अत्यधिक निर्भरता के कारण ऊर्जा संक्रमण का लक्ष्य आसानी से नहीं साधा जा सकता है।
भारत एकमात्र ऐसा देश नहीं है जिसे देरी से इस सच्चाई का भान हुआ है। अमेरिका ने अब जाकर यह अनुभव किया है कि उसने को महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति व्यवस्था में चीन को अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर दे दिया। जहां तक इन महत्त्वपूर्ण खनिजों के प्रामाणिक भंडार की बता है तो चीन इस मामले में सबसे आगे नहीं है मगर वह अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में खनिज संपन्न संपन्न देशों के साथ दशकों से अपने संबंध मजबूत करता रहा है।
चीन की कंपनियों ने आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन खनिज संपन्न देशों में खनन अधिकार हासिल किए हैं जबकि अमेरिका, यूरोप और यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया इन संभावनाओं का लाभ उठाने में सुस्त रहे हैं। चीन ने इन खनिजों के प्रसंस्करण एवं परिष्करण की विशाल क्षमता हासिल कर ली है। इसका अभिप्राय हुआ कि विभिन्न देशों में खनन के बाद लीथियम से लेकर कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्त्व सभी महत्त्वपूर्ण खनिज अयस्क प्रसंस्करण के लिए चीन भेजे जाते हैं।
भारत को महत्त्वपूर्ण खनिजों के मामले में चीन पर निर्भरता कम करने के लिए त्रि-आयामी नीति अपनानी होगी। सबसे पहले इस बात का पता लगाना और भौगोलिक अध्ययन करना होगा कि भारत में इनमें एक या उससे अधिक खनिजों के भंडार उपलब्ध हैं या नहीं। पूर्व में यह धारणा रही थी कि भारत में इन खनिजों का अभाव रहा है।
हालांकि, सच्चाई यह है कि अब तक गंभीर स्तर पर अन्वेषण नहीं हुए हैं क्योंकि इन खनिजों की बहुत अधिक आवश्यकता महसूस नहीं हुई थी। खबरों के अनुसार पिछली मोदी सरकार ने भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण (जीएसआई) एवं अन्य एजेंसियों को देश के 3.2 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि क्षेत्र का सर्वेक्षण करने और नई तकनीक सहित नए डेटा संसाधनों का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए थे। यह कदम काफी आवश्यक है क्योंकि जब जरूरत महसूस हुई तो पिछले वर्ष जीएसआई ने जम्मू कश्मीर में 59 लाख टन लीथियम भंडार खोज निकाला था।
फिलहाल जिन खनिजों की खोज हो रही है सरकार को उनका दायरा भी बढ़ाना होगा। उदाहरण के लिए इस समय सफेद हाइड्रोजन की सक्रियता से खोज नहीं हो रही है जबकि इस बात की पूरी संभावना हो सकती है कि यह भारत की भौगोलिक सीमा में मौजूद हो।
यह सच है कि जितने भी भंडार खोजे जाएंगे वे सभी इस्तेमाल में नहीं लाए जा सकेंगे। इनमें कुछ पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में हो सकते हैं जहां सुरक्षा या अन्य चिंताओं के कारण जाने की अनुमति नहीं मिल पाएगी। उसके बाद सरकार को इस बात का भी विश्लेषण करना होगा कि क्यों नीलामी में कंपनियां अक्सर अधिक दिलचस्पी नहीं दिखती है। नीलामी में बड़ी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए नीतियों में बदलाव की जरूरत हो सकती है। केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों को मिलकर नीलामी एवं मंजूरी प्रक्रिया से जुड़े विभिन्न मसलों का समाधान खोजना होगा।
महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए देश से बाहर खनन अधिकार प्राप्त करना एक दूसरा महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। चीन एवं दूसरे देश इस बात को समझते हैं। कई यूरोपीय देश और अमेरिका पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण अपने कुछ लीथियम भंडारों को विकसित नहीं करना चाहते हैं और लैटिन अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से इनका आयात करने को तरजीह देते हैं।
अंत में, नई सरकार को भारत में इन खनिजों के परिष्करण एवं प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। अगर कच्चा माल परिष्करण या प्रसंस्करण के लिए चीन या दूसरे देश भेजा जाते रहा तो यह भारत के लिए लाभ की स्थिति नहीं होगी। भारत के ऊर्जा संक्रमण के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता सुनिश्चित करना अति आवश्यक है। नई सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस पहलू पर वाजिब ध्यान दिया जाए।
(लेखक बिज़नेस टुडे और बिज़नेसवर्ल्ड के संपादक रह चुके हैं और संपादकीय सलाहकार संस्था प्रोजेक व्यू के संस्थापक हैं)