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सही आकलन के लिए बेहतर आंकड़े जरूरी

जीडीपी के आंकड़ों में इस बार का संशोधन बता रहा है कि अभी बड़ा सुधार करने की जरूरत है। बता रहे हैं

Last Updated- March 12, 2025 | 10:20 PM IST
GDP

करीब साल भर पहले केंद्र के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने लंबे समय से अटके मगर बेहद जरूरी सांख्यिकीय सुधार की घोषणा की थी। उसने निर्णय लिया कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और उसके घटकों का आकलन करने के लिए छह के बजाय पांच ही संस्करण जारी किए जाएंगे। इस तरह देश की आर्थिक वृद्धि का अंतिम अनुमान तीन के बजाय दो साल में ही मिलने लगा। संशोधनों की संख्या और अवधि घटाने का फैसला 2021-22 के जीडीपी आंकड़ों के साथ लागू कर दिया गया और फरवरी 2024 के अंत में अंतिम अनुमान मिल गए, जो पुरानी व्यवस्था में फरवरी 2025 तक ही मिल पाते।

तमाम सांख्यिकीविदों ने इसका स्वागत किया किंतु सवाल बना रहा कि किसी वित्त वर्ष के जीडीपी आंकड़े जारी करने की अवधि तथा संशोधनों की संख्या और क्यों नहीं घटाई जा सकती। कई देश अपने जीडीपी आंकड़े कम संशोधनों के साथ साल भर में ही पेश कर देते हैं। भारत में तीन साल इसलिए भी लग जाते हैं क्योंकि कई सरकारी उपक्रम और सरकारी एजेंसियां अपनी आर्थिक गतिविधियों के अंतिम आंकड़े देने में बहुत समय लगा देती हैं। लगता है कि फरवरी 2024 तक एनएसओ ने उन्हें भी तेज काम करने के लिए मना लिया।

परंतु क्या एनएसओ एक ही वित्त वर्ष में जीडीपी के अलग-अलग अनुमानों में परेशान करने वाला अंतर दूर कर सका है? कई साल से यह चिंता का विषय रहा है। जीडीपी अनुमानों में कमी भी आई और इजाफा भी हुआ और आखिरी अनुमान भी पहले अनुमान से कम या ज्यादा रहे। जनवरी 2015 में आधार वर्ष को बदलकर 2011-12 करने के बाद नई जीडीपी श्रृंखला के आंकड़े देखे जाएं तो 2014-15 से 2022-23 तक नौ साल में वृद्धि के अलग-अलग अनुमान अजीब सी स्थिति दिखाते हैं। इस दौरान पहले अग्रिम अनुमान की तुलना में वृद्धि के अंतिम आंकड़े 2016-17 और 2020-21 में 1.2 से 1.9 फीसदी तक बढ़ गए। 2015-16, 2017-18, 2021-22 और 2022-23 में इसमें 0.3 फीसदी इजाफा हुआ। मगर 2018-19 और 2019-20 में इसमें 0.7 से 1.1 फीसदी कमी आई। केवल 2014-15 में दोनों अनुमान एक बराबर रहे। सरकार के कई क्षेत्रों के आंकड़े बाद में बदलने के कारण यह अंतर नजर आता है।

कोविड वाले साल यानी 2020-21 में जीडीपी के अंतिम आंकड़े पहले अग्रिम अनुमान से इसीलिए बहुत ज्यादा रहे क्योंकि आंकड़ों पर समय से काम करना मुश्किल था। मगर इसके बाद दो सालों में आंकड़ों में आधा फीसदी बदलाव की कोई तुक नहीं थी। 2016-17 की नोटबंदी के बाद जीडीपी के आंकड़े तेजी से बढ़ना और 7.1 फीसदी के पहले अग्रिम अनुमान से 8.3 फीसदी के अंतिम अनुमान तक पहुंचना भी चिंता की बात थी।

2018-19 में जीडीपी के आंकड़े कम होने से एक सवाल खड़ा होता है क्योंकि यह 2019 से आम चुनाव से ठीक पहले का साल था। उस वित्त वर्ष के पहले अग्रिम अनुमान चुनाव से कुछ महीने पहले जनवरी 2019 में जारी किए गए और 7.1 फीसदी वृद्धि दर का अनुमान जताया गया। तीन वर्ष बाद अंतिम आंकड़ों ने बताया कि वृद्धि 6.5 फीसदी यानी बेहद कम रही। 2019-20 में भी 5 फीसदी वृद्धि का पहला अग्रिम अनुमान था जो अंतिम अनुमान में 3.9 फीसदी ही रही।

ऐसा लगता है कि जब अर्थव्यवस्था की स्थिति अच्छी होती है तो अक्सर अंतिम जीडीपी अनुमान पहले अग्रिम अनुमान से ऊंचे रहते हैं। स्थिति खराब होने पर उलटा होता है। शायद कठिन हालात वाले साल में अति-आशावाद के कारण ऐसे आंकड़े रख दिए जाते हैं, जो चुनौतियों के कारण अंत में हासिल नहीं हो पाते। आलोचक यह भी कहेंगे कि आम चुनाव वाले साल में सरकारी संस्थाएं ऐसी तस्वीर पेश करती ही हैं, जो हकीकत से मेल नहीं खाती।

वजह जो भी हो मगर ऐसा भारी अंतर बार-बार आ रहा है और उस साल वृद्धि की चाल से इसका कोई लेना-देना नहीं है। पिछले महीने 2023-24 के लिए जीडीपी के आंकड़े सामने आने पर यह बात फिर उठी और उसके साथ कई और सवाल भी खड़े हुए हैं।

28 फरवरी, 2025 को एनएसओ ने 2023-24 के जीडीपी के प्रथम संशोधित अनुमान जारी किए। अंतिम आंकड़े इसके बाद जारी किए जाएंगे। पहले संशोधित अनुमानों के अनुसार 2023-24 में जीडीपी वृद्धि दर 9.2 फीसदी रह सकती है, जो मई 2024 में जताए गए 8.2 फीसदी के अनुमान से ज्यादा है। जनवरी 2024 में जारी 7.3 फीसदी के पहले अग्रिम अनुमान के मुकाबले यह 1.9 फीसदी ज्यादा है। 2024-25 के दूसरे अग्रिम अनुमान में वृद्धि दर 6.5 फीसदी बताई गई है, जो 6.4 फीसदी के पहले अग्रिम अनुमान से कुछ अधिक है।

जीडीपी के मांग और आपूर्ति पक्ष के घटकों में इजाफे को इस अंतर की वजह बताया गया। 2023-24 के लिए सरकारी खपत व्यय में दोगुनी वृद्धि हुई और सवाल उठे कि सरकारी खपत के आंकड़ों में इतना अंतर क्यों आना चाहिए। इसी प्रकार निजी खपत व्यय भी 1 फीसदी से अधिक बढ़ गया। दिलचस्प है कि विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दोगुनी हो गई और कृषि में भी वृद्धि तेज हुई। विनिर्माण क्षेत्र के आंकड़े आम तौर पर असंगठित क्षेत्र और मझोली तथा लघु औद्योगिक इकाइयों के रिटर्न के हिसाब से संशोधित होते हैं। तो क्या मझोले और लघु औद्योगिक क्षेत्रों में सुधार हो रहा है? ध्यान रहे कि यह बड़ा संशोधन केवल एक साल में और जीडीपी आंकड़ों के चार अनुमानों में आया है।

लोक वित्त के नजरिये से देखें तो इन संशोधनों का अर्थ है केंद्र का बेहतर राजकोषीय प्रदर्शन। 2023-24 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.6 फीसदी के बजाय 5.5 फीसदी रह गया। 2024-25 के लिए तो यह जीडीपी के 4.8 फीसदी से कम होकर 4.7 फीसदी ही रह गया और 2025-26 के लिए 4.4 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य कम मुश्किल दिख रहा है। इससे औसत सालाना वृद्धि के मामले में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का प्रदर्सन भी अचानक बेहतर लगने लगा। यह 4.6 फीसदी के पुराने अनुमान के बजाय 5 फीसदी के करीब नजर आ रहा है।

ये बदलाव अब दिख रहे हैं क्योंकि एनएसओ ने जीडीपी अनुमानों में काफी संशोधन कर दिया है। थोड़े-बहुत संशोधन तो चलते हैं मगर आंकड़े इतने बदल जाएं कि वृद्धि या राजकोषीय मजबूती के मामले में सरकार का प्रदर्शन बहुत अच्छा दिखने लगे तो आंकड़ों की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठेंगे। इससे अर्थव्यवस्था संभालना और भी कठिन हो जाएगा तथा देश की सांख्यिकीय प्रणाली में और भी सुधारों की जरूरत लगेगी। यदि ऐसे सुधारों से जीडीपी अनुमान में संशोधनों की संख्या और उनकी अवधि कम हो जाएं तो बिना देर किए ऐसा कर लेना चाहिए।

First Published - March 12, 2025 | 10:12 PM IST

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